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दिग्गजों की रार, कांग्रेस का कर न दे बंटाधार

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चुनावी साल में अपने ही नेता बढ़ा रहे पार्टी की मुसीबत
 
राष्ट्र चंडिका न्यूज़,भोपाल। 2020 में सत्ता से बाहर होने के बाद से ही  कमलनाथ सत्ता में वापसी की लगातार  कवायद में जुटे हुए हैं। इसके लिए लगातार बैठकों का दौर चल रहा है। रणनीति बनाकर काम किया जा रहा है। लेकिन जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं, वैसे-वैसे कांग्रेस के नेताओं में रार बढ़ती जा रही है। पिछले कुछ दिनों से पार्टी के दिग्गज नेताओं में इस कदर रार बढ़ गई है जिससे लगता है की कांग्रेस का बंटाधार हो जाएगा। प्रदेश में एक तरफ चुनावी घमासान तेज होता जा रहा है, वहीं कांग्रेस में अंतर्कलह बढ़ती जा रही है।

कभी वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के बीच मतभेद सामने आते हैं, तो कभी पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव और नाथ के बीच दूरियां दिखाई देती हैं। साथ ही मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर प्रश्न उठते हैं तो कांग्रेस की कार्यकारिणी के गठन के बाद कार्यकारी अध्यक्षों को लेकर बात उठती है। जीतू पटवारी अभी भी कार्यकारी अध्यक्ष पद नाम का उपयोग कर रहे हैं जबकि, नई कार्यकारिणी में इसका उल्लेख नहीं है। उधर, पटवारी को विधानसभा के बजट सत्र से निलंबित करने के बाद अध्यक्ष गिरीश गौतम के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव तो दिया गया पर जिस तरह आक्रामक होकर पार्टी को दबाव बनाना था, वह नहीं बनाया गया। इससे भाजपा को कांग्रेस को घेरने का मौका तो ही मिला ही, यह संदेश भी गया कि तमाम दावों के बाद भी पार्टी में सब-कुछ ठीक नहीं चल रहा है।
भावी मुख्यमंत्री अभियान की हवा निकली
विधानसभा चुनाव के लिए कार्यकर्ताओं में उत्साह का संचार करने पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ को भावी मुख्यमंत्री बताते हुए अभियान चलाया गया। इस पर प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव ने ही यह कहते हुए सवाल उठा दिया कि पार्टी में मुख्यमंत्री को चेहरा घोषित करने की परंपरा नहीं है। चुनाव के बाद विधायक दल प्रस्ताव पारित करता है और केंद्रीय नेतृत्व अंतिम निर्णय लेता है। भाजपा ने इसे अंर्तकलह से जोड़ते हुए सवाल खड़े किए और अंतत: पार्टी ने कमलनाथ को भावी मुख्यमंत्री बताना बंद कर दिया। हालांकि, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने कहा कि कमल नाथ प्रदेश अध्यक्ष हैं और स्वाभाविक तौर पर हमारे नेता हैं। उनके नेतृत्व में ही चुनाव लड़ा जाएगा लेकिन , यादव अब भी दोहरा रहे हैं कि वे अपनी बात पर कायम हैं। उधर, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी द्वारा घोषित प्रदेश इकाई की नई कार्यकारिणी में कार्यकारी अध्यक्ष की व्यवस्था नहीं रखी गई है।  जबकि, जीतू पटवारी अभी भी इस पद नाम का उपयोग कर रहे हैं। इसको लेकर सवाल भी उठे तो उन्होंने कहा कि उनकी नियुक्ति केंद्रीय संगठन ने की थी और अभी तक पद समाप्त करने या हटाए जाने की कोई सूचना नहीं है। प्रदेश इकाई को भी कोई स्पष्ट दिशा निर्देश नहीं हैं, इसलिए असमंजस की स्थिति बनी हुई है। जिला अध्यक्षों को लेकर विरोध हुआ तो इंदौर और खंडवा के पदाधिकारियों की नियुक्ति पर रोक लगा दी। इसे भी अंतर्कलह से जोड़कर देखा गया। हाल ही में महू में आदिवासी युवक की पुलिस की गोली लगने से मृत्यु पर जब कमल नाथ स्वजन से मिलने पहुंचे तो जीतू पटवारी नदारद रहे। इसको लेकर भी प्रश्न उठे। हालांकि, पटवारी का कहना है कि पार्टी में कोई अंर्तकलह या विवाद नहीं है। मैं पार्टी का समर्पित कार्यकर्ता हूं और हम सब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के नेतृत्व में चुनाव की तैयारी में जुटे हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने भी कहा कि अंर्तकलह की कहीं कोई बात नहीं है। पटवारी का निलंबन अलोकतांत्रिक है। पूरी पार्टी उनके साथ खड़ी है और एकमत होकर विधानसभा अध्यक्ष के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव संकल्प दिया है। पार्टी में सबको अलग-अलग जिम्मेदारी दी गई हैं और सभी अपने काम में लगे हैं।
कांग्रेस कर रही कड़ी मेहनत
मार्च 2020 में सरकार से बेदखल होने सहित एक गहरे संकट को देखने के बाद, पिछले कुछ सालों में मध्य प्रदेश कांग्रेस ने अपने कैडर को पुर्नजीवित करने और अपनी राजनीतिक जमीन को बढ़ाने के लिए कड़ी मेहनत की है। सबसे पुरानी पार्टी के भीतर संकट के बीच, कांग्रेस इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा के विपरीत अपने राज्य नेतृत्व पर अधिक निर्भर होगी। प्रदेश कांग्रेस के लिए रणनीति निर्माताओं की भूमिका निभाने वाले वरिष्ठ नेताओं ने दावा किया कि अगर आने वाले दिनों में उनके कुछ नेता भाजपा या किसी अन्य राजनीतिक दल में चले गए तो पार्टी चिंतित नहीं है।
बढ़ रही हैं दूरियां
मप्र में इस बार भी भाजपा और कांग्रेस के बीच ही मुकाबला है। भाजपा की तैयारियां जोरों पर है। वहीं विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे पास आते जा आ रहे हैं, वैसे-वैसे कांग्रेस में अंतर्कलह बढ़ती जा रही है। कभी वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमल नाथ के बीच मतभेद सामने आते हैं, तो कभी पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव और नाथ के बीच दूरियां दिखाई देती हैं। वे मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर प्रश्न उठाते हैं तो कांग्रेस की कार्यकारिणी के गठन के बाद कार्यकारी अध्यक्षों को लेकर बात उठती है। जीतू पटवारी जहां अभी भी कार्यकारी अध्यक्ष पद नाम का उपयोग कर रहे हैं। जबकि, नई कार्यकारिणी में इसका उल्लेख नहीं है। उधर, पटवारी को विधानसभा के बजट सत्र से निलंबित करने के बाद अध्यक्ष गिरीश गौतम के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव तो दिया गया पर जिस तरह आक्रामक होकर पार्टी को दबाव बनाना था, वह नहीं बनाया गया। इससे भाजपा को कांग्रेस को घेरने का मौका तो ही मिला ही, यह संदेश भी गया कि तमाम दावों के बाद भी पार्टी में सब-कुछ ठीक नहीं चल रहा है।

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