देवेश पाण्डेय सिलवानी रायसेन
हम सभी जिनके द्वारा चलित है जिनके द्वारा रचित है अर्थात जिनके बिना हम कुछ नहीं है आज उन्ही की परम कथा में हम बैठे है और उनकी कथा सुनने का अवसर हमें प्राप्त हुआ है। और अगर वो नहीं होते तो हम लोग भी नहीं होते। उस परम पूज्य परमात्मा की अनुकम्पा का ये दिव्य दर्शन है।
उक्ताश्य के उदगार झरा परिवार पिपरिया वालों की ओर से आयोजित की गई श्रीमद् भागवत कथा के पंचम दिवस श्री ब्रह्मचारी जी महाराज ने व्यक्त किए। भागवत कथा के पंचम दिवस की कथा की शुरुआत भागवत आरती और विश्व शांति के लिए प्रार्थना के साथ की गई। श्री ब्रह्मचारी जी महाराज ने श्री कृष्ण की बाल लीलाओं का सुंदर वर्णन भक्तों को श्रवण कराया। भक्तों ने महाराज जी के श्रीमुख से कथा का श्रवण की।
श्री श्री 1008 श्री ब्रह्मचारी जी महाराज ने कथा क्रम में दशम स्कन्द के विशेष जो की भागवत का प्राण है। भागवत का प्राण क्यों है क्योंकि इसमें भगवान श्री कृष्ण के बाल लीलाओं के विशेषता का वर्णन किया गया। और भगवान श्री कृष्ण की बाल लीलाओं का श्रवण, गायन दोनों ही जैसे एक चुम्बक, चुम्बक जैसे लोहे को अपनी तरफ खींचती है। वैसे भगवान की बाल लीलाएं श्रवण करने वाले का मन भगवान श्री कृष्ण पूर्ण युगेश्वर के शरणागति हो जाता है। चुम्बक की तरह खींचा हुआ चला जाता है। और वो भाग्यशाली है जिन्होंने अपने जीवन का धेव भगवान श्री कृष्ण के बाल चरित्रों को श्रवण करने का बना रखा है।
महाराज श्री ने आगे कहा कि शास्त्रों में, पुराणो में, रामायण में हर जगह पर मानव जीवन की विशेष बाते लिखी है की मानव जैसा जीवन किसी ओर का नहीं है। जब भगवान मानव जीवन देते हैं इसका मतलब है भगवान तुम्हे मुक्ति प्राप्त करने का, ईश्वर को प्राप्त करने का अवसर देते हैं। अगर तुम मानव जीवन में आ गए हो तो भगवान ने कह दिया है की मैं तुमसे मिलने के लिए तैयार हूं लेकिन ये तुम्हारे कर्मों पर निर्भर करता है की तुम अच्छे मानव बन पाए, भक्त बन पाए तो तुम मुझसे मिलने के अधिकारी हो जाओगे। कथा में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने कृष्ण बाल लीला का रसपान का अमृत श्रवण किया।