हिंदू शास्त्रों में त्रिस्पृशा एकादशी का बहुत ही महत्व बताया गया है। ऐसा माना जाता है कि इस एकादशी का व्रत करने से सौ एकादशी के व्रत के समान फल मिलता है। लेकिन मन में सवाल उठेगा कि त्रिस्पृशा एकादशी क्या होती है। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार जब एक ही दिन में तीन तिथियों का स्पर्श हो तो वह दिन बहुत ही महत्वपूर्ण बन जाता है। ऐसी तिथि में मुख्यत: एकादशी का व्रत रखना सौ एकादशी व्रत के समान होता है। 27 फरवरी 2022 दिन रविवार को यह संयोग आ रहा है। 26 फरवरी को प्रातः 10:39 बजे एकादशी का आगमन होगा जो रविवार को प्रातः 8:12 बजे तक रहेगी। उसके पश्चात द्वादशी तिथि रहेगी और अगले दिन सूर्य उदय से पहले ही 5:42 बजे द्वादशी समाप्त होकर त्रयोदशी तिथि आरंभ हो जाएगी। अर्थात एकादशी, द्वादशी और त्रयोदशी तिथि का संयोग एक ही दिन पड़ रहा है। ऐसा संयोग कई वर्षों में एक बार आता है। फाल्गुन कृष्ण मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी विजया एकादशी के नाम से जानी जाती है। विजया एकादशी का व्रत करने से सभी कार्य में विजय प्राप्त होती है। ऐसा भगवान कृष्ण ने कहा है। वैष्णव संप्रदाय के लोग एकादशी का व्रत करते हैं।
कैसे करें एकादशी का व्रत
व्रत करने वाले व्यक्ति को एक दिन पहले ही शाम को भोजन छोड़ देना चाहिए ताकि शरीर में अन्न का अंश भी ना रहे। अगले दिन पूर्णतया निर्जला व्रत रखें अथवा गाय का दूध सेवन करे। भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी का आह्वान कर उनकी प्रार्थना,पूजा और मंत्र जाप करें। ’ओम् नमो भगवते वासुदेवाय। ओम् लक्ष्मीनारायणाभ्याम् नमः’ अथवा विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना इस दिन बहुत लाभदायक और पुण्य फलदायक होता है। जो व्यक्ति व्रत नहीं कर सकते, उन्हें एकादशी को चावल और जौ का सेवन नहीं करना चाहिए। मिथ्या आचरण, अभक्ष्यीय भोजन अथवा तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए। पूरे दिन नैतिक कार्य, सत्य भाषण और सात्विक भोजन करना चाहिए