दमोह से धीरज जॉनसन की रिपोर्ट
आधुनिक युग में प्राचीन समय की झलक अगर देखना हो तो, आज भी कुछ लोग ऐसी जगहों पर निवास करते मिल जाएंगे जो विकास की बाट जोह रहे है।
जिले की पथरिया तहसील से करीब 12 किमी दूर ग्राम सेमरा लखरोनी के निकट बसे हुए सौ से अधिक लोगों को देखकर आश्चर्य भी होता है कि मुख्य मार्ग से मात्र डेढ़ किमी दूर होने के बावजूद यहां तक आने के लिए खेतों की मेढ़ ही सहारा है। स्थानीय लोग इस जगह को कारीगरों का हार/मोहल्ला भी कहते है।
उबड़ खाबड़ और पगडंडियों के बाद जब यहां पहुंचते है तो जानकारी मिलती है कि सिर्फ एक कुंआ ही पेयजल का माध्यम है, जिसका पानी भी काफी नीचे जा चुका है, नाली दिखाई नहीं देती है और दिन में छोटे बच्चे पेड़ के नीचे खेलते रहते है और बुजुर्ग चबूतरे पर पथराई आंखों से निहारते रहते है।
यहां अधिकतर घरों में आज भी महिलाओं को धुंआ और गर्मी सहन कर चूल्हे पर खाना बनाते और कुंए से पानी भरते देखा जा सकता है और पुरुष लकड़ी और उपले इकट्ठे करते है।
स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे पैदल और साइकिल से अन्य ग्रामों में पढ़ने जाते है कुछ 12 किमी दूर पथरिया तो कुछ तीन किमी दूर केवलारी पहुंचते है,छोटे तलैया नामक स्थान पढ़ने जाते है जो करीब एक डेढ़ किमी दूर है।
यहां के स्थानीय निवासी राम सहाय,बिहारी,खेमचंद ने बताया कि वर्षो से सड़क मार्ग न होने से बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ता है कोई भी कार्यक्रम हो तो टेंट का सामान भी कठिनाई से यहां तक आता है, पहले एक सैर हुआ करती थी पर अब वह बंद हो गई है,जिसके लिए आवेदन भी दिया था।अब वे चाहते है कि कहीं तो सुनवाई हो जाए।बारिश के मौसम में और अगर कोई बीमार हो जाए तो बहुत दिक्कत होती है।
बच्चों ने बताया कि स्कूल जाते समय अक्सर जहरीले जीव जंतु दिखाई देते है अगर सड़क बन जाएगी तो आसानी से पढ़ने जा सकते है,अभी तक तो सिर्फ आश्वासन मिले है।
परिवर्तन का इंतजार कर रहे यहां के लोगों को देखने के बाद सुमित्रानंदन पंत की वह पंक्ति अनायास याद आ जाती कि
“यहां नहीं है चहल पहल,
वैभव विस्मृत जीवन की,
यहां डोलती वायु म्लान,
सौरभ मर्मर ले वन की,
आता मौन प्रभात अकेला,
संध्या भरी उदासी,
यहां घूमती दोपहरी में,
स्वप्नों की छाया सी”
न्यूज स्रोत:धीरज जॉनसन