सुरेंद्र जैन धरसीवां
56 साल तक कठिन तपस्या करने वाले महान तपस्वी दिगंबर जैन आचार्य विद्यासागरजी की यम सल्लेखना समाधि को एक साल पूरा हो गया है.छत्तीसगढ़ के प्रथम हैं तीर्थ चंद्रगिरी डोंगरगढ़ सहित देशभर में उनके अनुयायि धार्मिक अनुष्ठान कर रहे हैं . आचार्यश्री ने बीते साल चंद्रगिरी में यम सल्लेखना पूर्वक देह का त्याग किया था वह एक मात्र ऐसे महा तपस्वी हुए हैं जिन्होंने 22साल की उम्र में मुनि दीक्षा के पश्चात शकर सहित सभी प्रकार के मिष्ठान, फल फ्रूट हरि सब्जियां नमक आदि का आजीवन त्याग किया रात्रि विश्राम भी कुछ घंटे एक ही करवट करते थे ओढ़ने बिछाने सर्दी गर्मी बरसात कभी कुछ नहीं लेते थे…आत्मकल्याण के मार्ग पर चलते हुए उन्होंने कठिन तपस्या की इसी के साथ वह प्राचीन भारत को अंग्रेजों द्वारा दिए गए इंडिया नाम की गुलामी से मुक्ति दिलाने निरंतर प्रयास किए.पूर्व राष्ट्रपति रामनारायण कोविंद पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत जैसे देश के दिग्गज नेता उनके दर्शन कर उनसे समय समय पर देशहित में मार्गदर्शन भी प्राप्त किए और भारत को प्राचीन भारत की तरह आत्म निर्भर बनाने के क्षेत्र में आचार्यश्री ने अनगिनत कार्य किए.आचार्यश्री ने प्राणी मात्र की रक्षा के लिए दयोदय पशु संरक्षण एवं संवर्धन केंद्र की स्थापना की जिसके माध्यम से भारतवर्ष के दस राज्यों में सौ से अधिक गौशालाएं बर्तमान में देश के विभिन्न राज्यों में संचालित हो रही हैं जहां लाखो गौवंश की सेवा हो रही है गौरक्षा के प्रति आचार्यश्री हमेशा गंभीर रहते थे गाय को वह धरा पर साक्षात लक्ष्मी कहते थे.आचार्यश्री ने बच्चियों को संस्कार आधारित शिक्षा के लिए ज्ञानोदय विद्यापीठ की स्थापना की छत्तीसगढ़ सहित देश के कई राज्यों में इसके माध्यम से प्रतिभा स्थली संचालित हैं जहां बालिकाओं को सुरक्षित माहौल में संस्कार के साथ शिक्षित किया जा रहा ओर वहां से शिक्षा प्राप्त कर बालिकाएं प्रशासनिक पदों पर भी पहुंच रही हैं.आचार्य श्री विद्यासागरजी ने भारत को आत्मनिर्भर बनाने बेरोजगारी खत्म करने चरखा हथ करघा की भी शुरुआत की चंद्रगिरी डोंगरगढ़ रामटेक जबलपुर बीना बारह कुंडलपुर खजुराहों सहित देश के कई राज्यों में अहिंसक वस्त्र खादी के वस्त्र बनाने की शुरुआत कराई.चंद्रगिरी तीर्थ डोंगरगढ़ खजुराहो आदि में प्रशिक्षण प्राप्त कर ग्रामीण अंचलों के हजारों गरीब परिवार चल चरखा हथकरघा केंद्रों से जुड़कर आज अपनी आजीविका चला रहे हैं…..आचार्यश्री ने हिंदी में ही प्रत्येक कार्य करने की प्रेरणा देते हुए हिंदी माध्यम में सीबीएसई कोर्स की शुरुआत प्रतिभास्थली में की.भारत को प्राचीन काल के भारत की तरह समृद्ध शाली भारत बनाने उनके योगदान को कभी भूलाया नहीं जा सकता. महातपस्वी आचार्यश्री ने 56साल की कठिन तपस्या के बाद बीते साल चंद्रगिरी डोंगरगढ़ में यम सल्लेखना पूर्वक देह का त्याग किया.6फरवरी 2025 को आचार्यश्री को की यम सल्लेखना समाधि दिवस पर देश भर में धार्मिक अनुष्ठान के माध्यम से उन्हें याद किया जा रहा है