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अभिभावक,स्कूल और बच्चों के त्रिकोणीय संबंधों को संवेदनशीलता से समझने की आवश्यकता:डॉ पल्लवी

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– विद्यालय ऐसे हो जहाँ बच्चे निर्भय भाव की अनुभूति हो

– सीसीएफ की इंटरनेशनल संगोष्ठी आयोजित

शिवपुरी से रंजीत गुप्ता

कोविड के पश्चावर्ती दुष्प्रभाव स्कूली बच्चों को भी प्रभावित कर रहे है। स्कूल जाना दैनंदिन जीवनचर्या का हिस्सा था लेकिन अब यह भाव कमजोर पड़ रहा है।ऑनलाइन अध्ययन के करीब दो साल के अनुभव बता रहे है कि बच्चों के सामने साइबर बुलिंग की चुनौती खड़ी हो गई है क्योंकि ऑनलाइन प्लेटफार्म खुला होने के कारण तमाम बोगस आई डी के माध्यम से बच्चों को आपत्तिजनक कंटेंट के साथ जोड़ने का काम कर रहे है।यह बात केंद्रीय विधालय भोपाल की प्राचार्य डॉ ऋतु पल्लवी ने आज चाइल्ड कंजर्वेशन फाउंडेशन की 97 वी ई संगोष्ठी को संबोधित करते हुए बताई।

फाउंडेशन की इस संगोष्ठी में इंग्लैंड से मारना मेकनीट भी जुड़ी उन्होंने अपने देश मे फोस्टर केयर एवं अन्य बाल सरंक्षण योजनाओं की जानकारी प्रदान की। मुख्य वक्ता के रूप में डॉ पल्लवी ने बताया कि मौजूदा परिदृश्य में विद्यालयों की भूमिका बहुआयामी महत्व की हो गई है।हमारे बच्चे बेहतर शिक्षा के साथ एक जबाबदेह नागरिक के रूप में विकसित हो इसके लिए केवल स्कूलों की भूमिका ही नही है बल्कि अभिभावक,स्कूल,औऱ बच्चों के त्रिकोण संबंध को संवेदनशीलता के साथ समझने की आवश्यकता है।इसके लिए हर स्टेकहोल्डर्स को अपनी जबाबदेही धारण करनी चाहिये।विधालय एक ऐसा सुगम्य वातावरण सुनिश्चित करें जहाँ हर बच्चा खुद को अभिव्यक्त करने में निर्भय भाव की अनुभूति करता हो।डॉ पल्लवी के अनुसार अनुशासन के नाम पर विधालय भय और कुंठा का केंद्र बनता है तो यह शिक्षा के मानकों के साथ न्याय नही है।सभी स्कूलों में इस बात पर जोर दिया जाना चाहिए कि एक दायित्वपूर्ण अनुशासन के साथ बच्चों को कैसे संयुक्त किया जाए।बालमन की संवेदनशीलता को समझने के लिए एक विशिष्ट समझ की आवश्यकता होती है इसलिए सामुहिक भागीदारी,बच्चों की विकसित होती उम्र वय आवश्यकताओं को बहुत ध्यान से समझना चाहिये।क्योंकि बच्चों की उन्मुक्त ऊर्जा आसानी से नकारात्मक क्षेत्र में मुड़ जाती है इसे सकारात्मक बनाने की जिम्मेदारी अभिभावकों औऱ शिक्षकों की निर्णायक है।
ई संगोष्ठी को इंग्लैंड से संबोधित करते हुए सुश्री मरना मेकनीट ने कहा कि इंग्लैंड में फोस्टर केयर के लिए सरकार एवं समाज केंद्रित प्रयास किये जाते है।भारत में जहां 18 साल तक के बच्चों के लिए समेकित बाल सरंक्षण योजनाओं का लाभ दिया जाता है वही इंग्लैंड में 19 साल तक स्वास्थ्य और लोक कल्याण विभाग बच्चों की आवश्यकताओं के अनुरूप पुनर्वास प्रकल्प संचालित करते है।सुश्री मारना के मुताबिक चिन्हित बच्चों के बेहतर शैक्षणिक भविष्य के दृष्टिगत भी इंग्लैंड में प्रभावी प्रावधान है।उन्होंने बताया कि हर बच्चे का एक सुव्यवस्थित रोडमेप बनाकर बच्चों के बहुआयामी पक्षो पर उनके देश मे काम होता है।उन्होंने बताया कि इंग्लैंड में पश्चावर्ती देखभाल के लिए इंग्लैंड में भारत की तुलना में 26 बर्ष तक सरंक्षण के प्रावधान है क्योंकि हमारे यहां ऐसा माना जाता है कि इस आयु तक उच्च शिक्षा अर्जित की जाती है।भारत मे पश्चावर्ती देखभाल की आयु 21 साल निर्धारित है।
फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ राघवेंद्र शर्मा ने कहा कि भारत में बाल सरंक्षण योजनाएं वक्त के साथ वैशविक मापदंडों के अनुरूप होती जा रही है देश में हर स्तर पर बाल सरंक्षण औऱ विधिक प्रावधानों के प्रति जागरूकता का स्तर बढ़ रहा है।
फाउंडेशन के सचिव डॉ कृपाशंकर चौबे ने संगोष्ठी का बेहतरीन संयोजन करते हुए भारत और इंग्लैंड की योजनाओं का तुलनात्मक विवरण प्रस्तुत किया।डॉ चौबे ने बताया कि सीसीएफ उन आधारभूत विषयों पर काम कर रहा है जो जेजे एक्ट के समावेशन के लिए आवश्यक है। इस ई संगोष्ठी में मप्र, उप्र, बिहार, त्रिपुरा,आसाम, छत्तीसगढ़,राजस्थान,हरियाणा,दिल्ली,गोवा राज्यों के सीसीएफ सदस्यों एवं अन्य बाल अधिकार कार्यकर्ताओं ने भाग लिया।

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