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राजेश बादल की नई किताब::“यह अंतिम था, जिसे पोर्टल प्रकाशित करने का साहस नहीं दिखा सका और मैंने यह कॉलम बंद कर दिया।“

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आलेख

पंकज चतुर्वेदी

अड़तालीस साल से पत्रकारिता के प्रत्येक माध्यम- प्रिन्ट, रेडियों, टीवी,डिजिटल में शीर्ष स्तर पर भूमिका निभाते हुए शब्द-संस्कार के अमिट निशान छोड़ने वाले राजेश बादल ने जब ये पंक्तियाँ लिखीं, तब भारत में पत्रकारिता बेहद विषम दौर से गुजर रही थी । असहमतियों के चलते बड़ी संख्या में पत्रकारों को अखबारों और टीवी से निकाला जा रहा था । कह सकते हैं कि सच को दबाने की भरकस कोशिशें हो रही थी । श्री बादल उन दिनों एक चर्चित न्यूज पोर्टल के लिए “मिस्टर मीडिया” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ लिखते थे। मीडिया की दिशा और दशा पर । यह संभवतया सबसे लंबे समय तक चलने वाला स्तंभ था , जिसमें उस कालखंड की उन घटनाओं का भी दस्तावेज़ीकरण था, जिन्होंने तत्कालीन पत्रकारिता को प्रभावित किया ।
यह पुस्तक उन सभी 178 लेखों का संकलन है जो भारत में पत्रकारिता के बदलते मानदंड और विश्वास से अविश्वास के अँधियारे में जाने के साक्षी हैं । “मिस्टर मीडिया” पत्रकारिता से जुड़े प्रत्येक संस्थान , प्रेस की स्वतंत्रता के समर्थक आम लोगों के साथ –साथ , स्थापित पत्रकारों के लिए भी उतनी ही अहम है जितनी कि पत्रकारिता में अपना भविष्य बनाने वाले छात्रों के लिए ।
राजेश बादल ( छतरपुर, मध्यप्रदेश) चार दशकों से पत्रकारिता में चर्चित नाम हैं। जनसत्ता, नईदुनिया,संडे आब्जर्वर एवं नवभारत टाईम्स के बाद टीवी की दुनिया में परख,दूरदर्शन के लोकप्रिय न्यूज़ एंकर,आज तक के साथ दस बरस तक संपादक बनने का सफर , सी एन ई बी, वायस ऑफ़ इंडिया,इंडिया न्यूज, बी ए जी फिल्म्स ( आज का न्यूज़ 24 ) चैनल से जुड़े रहे। संसद के “राज्यसभा टी वी” के संस्थापक कार्यकारी निदेशक रहते हुए इनके कार्यक्रमों और बायोपिक फ़िल्मों ने सरकारी मीडिया के प्रति लोगों का नजरिया बदल दिया था । रेडियो टीवी पत्रकारिता में सौ से ज़्यादा वृतचित्र, दस हज़ार से ज़्यादा टीवी रिपोर्ट्स, पाँच हज़ार से ज़्यादा आलेख, बीस से ज़्यादा विश्वविद्यालयों में अतिथि व्याख्यान देने वाले राजेश बादल गांधीवादी विचारों के विस्तार में कार्यरत हैं । अमेरिका के अनेक शहरों में व्याख्यान और हिंदी के लिए समर्पित। एक दर्जन से अधिक सम्मान । आपकी चर्चित पुस्तकें – हिंदुस्तान का सफ़र , शब्द सितारे, क्रांतिदूत पंडित परमानन्द ,सदी का संपादक राजेन्द्र माथुर , दास्तान ए जगजीत : कहाँ तुम चले गए आदि हैं ।

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