विकास से कोसों दूर, नदी किनारे और जंगल के बीच बिता रहे जीवन
दमोह से धीरज जॉनसन की विशेष रिपोर्ट
दमोह जिले में आज भी कुछ ऐसे क्षेत्र है जो मूलभूत सुविधाओं का इंतजार कर रहे हैं और आधुनिकता की चकाचौंध से दूर है पर आवश्यक सेवाए भी यहां नहीं पहुंच पाती है। जहां की बदहाली को देखकर लगता है कि ग्रामीण विकास के लिए अभी बहुत कुछ करना बाकी है।
बेबस नदी के किनारे और जंगल के मध्य बसे सेमर कछार के ग्रामीण सागर जिले की सीमा पर बसे हुए है जिनकी आबादी करीब 150 है परंतु यहां तक पहुंचने के लिए अब तक सड़क मार्ग उपलब्ध नहीं है, एक ओर नदी है जहां कम पानी होने पर ट्यूब की मदद से नदी पार कर लेते है परंतु पानी का बहाव अधिक हो जाने पर यह रास्ता बंद हो जाता है,दूसरी ओर जंगल के बीच में बनी पगडंडियों के सहारे उबड़-खाबड़ और कच्चे रास्ते से करीब तीन किमी चलने के बाद सड़क दिखाई देती है यह रास्ता भी इतना जटिल है कि बिना स्थानीय मदद के यहां तक पहुंचना मुश्किल है,क्योंकि जंगल में भटकने की संभावना बनी रहती है।
जंगली जानवरों का खतरा और कठिन मार्ग से पहुंचने के बाद यहां सर्वप्रथम दो कमरों वाला प्रायमरी स्कूल दिखाई देता है जिसकी हालत जर्जर हो चुकी है और इसकी छत से बारिश के मौसम में पानी टपकता रहता है, इसके बाद कच्चे और कुछ पक्के मकान है और चूल्हे से उठता धुंआ दिखाई देता है आस पास रखे छोटी छोटी लकड़ियों के ढेर इन चूल्हों के लिए ही काम आते होंगे। पर एक मोबाईल टावर अवश्य यहां दिखाई देता है जिससे नेटवर्क उपलब्ध हो सके।
आंगनबाड़ी और स्कूल
सेमर कछार में आंगनबाड़ी किसी निजी जगह पर है कारण यह कि अब तक इसका केंद्र नहीं बना है यहां कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ने बताया कि बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ता है रास्ता न होने से मीटिंग में समय से नहीं पहुंच पाते,नदी पार करते समय भी भीग जाते है दो बार तो गिर गए और काफी चोट आई। अन्य महिलाओं के चेकअप में भी परेशानी होती है।बिजली की भी समस्या है नियमित लाइट नहीं मिलती है।
यहां बने हुए स्कूल की हालत काफी खराब हो चुकी है, जिसे देखकर लगता है कि शायद ही यहां क्लास लगती होगी। सुदामा बताते है कि प्रायमरी स्कूल में शिक्षक बहुत कम आते है बच्चों ने भी बताया कि पढ़ाई कम होती है।भवन जर्जर हो चुका है और छत से पानी टपकता है। जिसमें सुधार की जरूरत है।
अस्पताल,बाजार और बिजली
सेमर कछार के ग्रामीणों को वैसे तो निकट के अस्पताल और बाजार पहुंचने के लिए कच्चे मार्ग से करीब आठ-नौ किमी का सफर तय करना पड़ता है,परंतु नदी में पानी का प्रवाह बढ़ जाने के बाद जंगल के रास्ते से जाना पड़ता है जो पथरीला भी है और दूरी भी बढ़ जाती है।
इसके साथ ही यहां विद्युत आपूर्ति के लिए पहुंची केबिल में अक्सर खराबी होने के कारण यहां पर्याप्त लाइट नहीं मिलती है।बुजुर्ग राधे और दयाराम बताते है कि वे सब लोग बहुत ही कठिन जीवन जी रहे है कभी भी केबिल खराब हो जाती है,सड़क नहीं है कोई बीमार हो जाए तो खाट पर ले जाना पड़ता है,कोई यहां आना नहीं चाहता इसलिए रिश्तों में दिक्कत होती है।प्रत्याशी और चुनाव प्रचार करने वाले चुनाव के समय आते है फिर दिखाई नहीं देते है,हमारे पास इतना पैसा भी नहीं है कि कहीं और चले जाएं।
न्यूज स्रोत:धीरज जॉनसन