Let’s travel together.

वन संपदा के दोहन का भीभत्स नज़ारा ,फार्म हाउसमालिकों ने हजारों बीघा में कर रखी है खैर की फैंसिंग

0 239

- Advertisement -

जिला मुख्यालय से चंद किमी दूर था कभी खैर का जंगल अब बचे सिर्फ ठूंठ

गुणवत्ता के हिसाब से लगभग पांच हजार प्रति -क्विंटल तक में बिकने वाली खैर की लकड़ी की तस्करी के लिए माफिया ने

संजय बेचैन शिवपुरी

वन सम्पदा के दोहन का यदि भयानक मंजर देखना है तो आप *शिवपुरी वन मंडल* की शिवपुरी और सतनवाडा रेंज में आइये … यदि आपको वन और पर्यावरण से तनिक भी लगाव होगा तो आपकी आँखें यहाँ का मंजर देखकर नम हो जायेंगी । शासन से वन विकास के लिए तैनात अफ सर यहाँ नि न स्तर तक जाकर अवैध कृत्य करने वालों से उगाही में जुटे हैं एक भयावह मंजर जो हर गाँव वाले को नजर आया रहा है , प्रशासनिक अमले को दिखाई दे रहा है ,परन्तु वन अमले को नजर नहीं आ रहा है । वन अमले का आँखों पर पट्टी बांधकर बैठने का कारण सभी को समझ में आ रहा है ।
आपको बता दें गुणवत्ता के हिसाब से लगभग पांच हजार प्रति क्विंटल तक में बिकने वाली खैर की लकड़ी की तस्करी के लिए माफि या ने शहर से सिर्फ 25 किलोमीटर दूर मोहनगड सब रेंज जंगल को लगभग खत्म कर दिया है। दो चार साल पहले तक यहां मिलने वाले खैर के बड़े पेड़ अब नजर तो आ रहे हैं पर वे कुल्हाडी से कटकर दबंग खेत स्वामियों और फार्म हाउस स्वामियों की तार फैंसिंग में लोहे के एंगल की जगह लगे हैं जड सहित उखाडकर इन्हें नष्ट कर दिया गया और जंगल में अब सिर्फ ठूंठ ही बचे हैं। जो ठूंठ हैं उन्हें भी जलाकर नामोनिशान मिटाए जा रहे हैं । स्थिति यह है कि आठ से दस इंच का तना मुश्किल में ही कहीं मिलता है। शिवपुरी से खैर की तस्करी करने वालों ने वन अमले को कुछ पैसों के लालच में लेकर इस क्षेत्र की पहचान रहा और का यह जंगल अब लगभग खत्म कर दिया है। शिवपुरी और सतनबाडा रेंज के कई खेतों पर खैर की लकडी खुलेआम तार फैंसिंग में लगी है । जो वन अमले को नजर नहीं आ रही।

उल्लेखनीय है कि प्रदेश के जिन पांच जिलों में खैर के पेड़ सबसे ज्यादा हैंए उनमें ग्वालियर की सिंहपुर रैंज और शिवपुरी जिला शामिल हैं और अगर देश की बात करें तो पूरे देश का 1.70 प्रतिशत खैर सिर्फ मध्यप्रदेश में है। अंतर राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ भी पेड़ों की जो प्रजातियां खतरे में हैं, उनमें खैर को भी शामिल किया है। इसके बावजूद इनकी सुरक्षा के लिए जिम्मेदार वन विभाग के अधिकारी कोई ठोस कदम नहीं उठा रहे हैं और मैदान स्तर पर जिन वनकर्मियों पर सुरक्षा का दारोमदार है, वे भी अपना काम सही तरीके से नहीं कर रहे हैं। स्थानीय लोगों द्वारा दिए जा रहे लालच ने अब लोगों के मन से डर निकाल दिया है।

शहर से सिर्फ 25 किमी दूर था कभी खैर का -जंगल, अब बचे सिर्फ ठूंठ

विची से सुरवाया फोरलेन पर आने के लिए जो सिंगल रोड है सड़क के किनारे बसे गांव और अंदर की ओर बसे मजरों की तरफ के लोग कुल्हाड़ी लेकर निकलते हैं। लकड़ी लेकर आने वाले इसी मार्ग को शहर तक लकड़ी भेजने के लिए इस्तेमाल करते हैं।

साइकलों से और ट्रेक्टरों से होता है परिवहन

क्षेत्र के जंगल में जाने वाले लोग अवैध कटाई करके साइकल पर लादकर लकडियां लाते हैं। इन लकडिय़ों को शहर की आरा मशीन या फिर लकडियों की टाल पर भी बेचा जाता है।
-खैर की लकड़ी को कत्था और केमिकल बनाने वाली फैक्ट्रियों में भेजा जाता है, जबकि स्थानीय स्तर पर लकड़ी की टालों पर हवन के लिए करीब 80 रुपए की पांच किलो लकड़ी मिलती है।
-खैर की लकड़ी के अवैध कारोबार की पहुंच हर महीने लगभग पांच से सात लाख रुपए हैं।
-लकड़ी काटने वाले दिन में जंगल में प्रवेश कर जाते हैंए हर दिन लकडिय़ों के पतले-मोटे तने काटकर अलग-अलग जगह रखे जाते हैं।
-इसके बाद इस लकड़ी को ढोने के लिए साइकल की मदद ली जाती है।
-इसके लिए सुबह पांच बजे और शाम करीब सात बजे का समय लगभग तय रहता है।

दुर्भाग्यपूर्ण हालात

खैर का जंगल तेजी से सिमट रहा है और वन विभाग ने इसे दुर्लभ वृक्ष की श्रेणी में रखा है। राष्ट्रीय वन नीति 1988 में पेडों की प्रजातियों को संतुलित रूप से इस्तेमाल में लाने की बात कही गई है जिससे वे खत्म न हों।अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ ने वर्ष 2004 में विश्व में तकरीबन 552 पेडों की प्रजातियों को खतरे में माना गया जिसमें 45 प्रतिशत पेड भारत से थे। इन्हीं में खैर का नाम भी शामिल है। इस पेड का इस्तेमाल औषधि बनाने से लेकर पान और पान मसाला में इस्तेमाल होने वाले कत्थाए चमडा उद्योग में इसे चमकाने के लिए किया जाता है। प्रोटीन की अधिकता के कारण ऊंट और बकरी के चारे के लिए इसकी पत्तियों की काफ ी मांग है। चारकोल बनाने में भी इस लकडी का उपयोग होता है। आयुर्वेद में इसका इस्तेमाल डायरिया, पाइल्स जैसे रोग ठीक करने में होता है। मांग अधिक होने की वजह से खैर के पेडों को अवैध रूप से जंगल से काटा जाता है।
तस्करी के मामलों में पुलिस व वन विभाग द्वारा वाइल्ड लाइफ एक्ट 1972 की धारा 50 के अंतर्गत गिर तारी करके कार्रवाई होती है। तस्करों के पकडे जाने पर तीन वर्ष की सजा व जुर्माने का भी प्रावधान है।

कम हो रहे खैर के जंगल

सूत्रों के मुताबिक अकेले शिवपुरी वन मंडल के सतनवाडा रेंज व मोहनगड, सुरवाया रेंज में ही पिछले पांच महीनों में 20 हजार खैर के पेड काट दिए गए। अफ सरों ने इस मामले में केवल खानापूर्ति की । हालांकि कितना जंगल कम हुआ है इसका ठोस आंकडा वन विभाग के पास उपलब्ध नहीं है।

Leave A Reply

Your email address will not be published.

नप अध्यक्ष हेमन्त चौधरी ने किया सी सी रोड के निर्माण का भुमि पूजन      |     ग्राम सियरमऊ में नवरात्रि पर्व पर निकली चुनरी यात्रा     |     माधव नेशनल पार्क में टाइगर पर भारी पड़ी बलारपुर माता के भक्तों की आस्था     |     नगर पालिका का 318 करोड़ से अधिक का बजट पास, बहेगी विकास की गंगा     |     नार्थ कोरिया ने 2 छोटी दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल का प्रक्षेपण किया      |     नगर निगम का बड़ा कदम, 43 करोड़ बकाया होने पर प्रतीक ग्रैंड सिटी सोसायटी सील     |     31 मार्च से बंद हो रही हैं ये दो एफडी स्कीम     |     ठेले पर पति का शव, पीछे-पीछे पत्नी, जिसने भी देखा ठिठक गया     |     दिनदहाड़े गांव से अपहरण कर खेत में लेजाकर किया घिनौना काम, आरोपी फरार     |     बरेली तहसीलदार अब होंगी विदिशा जिले की डिप्टी कलेक्टर     |    

Don`t copy text!
पत्रकार बंधु भारत के किसी भी क्षेत्र से जुड़ने के लिए इस नम्बर पर सम्पर्क करें- 9425036811