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श्रीमज्जिनेन्द्र पंचकल्याणक का पंचम दिवस-आदि तीर्थंकर ने असी मसी कृषि और ऋषि बनने का दिया ज्ञान

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नीलांजना की मृत्यु देख हुआ वैराग्य
सुरेन्द्र जैन सांकरा धरसीवा रायपुर
परम पूज्य संत शिरोमणि दिगंबर जैनाचार्य 108 विद्यासागरजी महामुनिराज जी के ससंघ सानिध्य में धर्म नगरी तिल्दा नेवरा में श्रीमज्जिनेन्द्र पंचकल्याणक जिन बिंब प्रतिष्ठा महामहोत्सव के पंचम दिवस बुधवार को होने वाले प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ प्रभु का तप कल्याणक मनाया गया जिसमें अयोध्या के चौदहवें कुलकर राजा नाभिराय मां मरुदेवी के पुत्र होने वाले तीर्थंकर युवराज आदि कुमार अपनी प्रजा को असी मसी कृषि व ऋषि का विद्या ज्ञान प्रदान करते हैं ओर फिर देव लोक से आई नीलांजना की मृत्यु देख उन्हें वैराग्य हो जाता है वह राजपाठ त्यागकर तपस्या करने वन को चले जाते हैं।


अयोध्या के चौदहवे कुलकर राजा नाभिराय व महारानी मरुदेवी के पुत्र युवराज आदि कुमार के समक्ष जब प्रजा के लोग पहुचते हैं ओर अपनी पीड़ा सुनाते हैं तब वह उन्हें शुभ सन्देश देते हैं ओर आत्मरक्षार्थ असी विद्या का ज्ञान कराते हुए अस्त्र शस्त्र चलाना सिखाकर सुरक्षा के लिए सेना की स्थापना करते हैं प्रजा को युवराज आदि कुमार अस्त्र शस्त्र विद्या सिखाते हुए सेनानायक के रुप में समझाते है कि इसका उपयोग आत्मरक्षा राष्ट्र की रक्षा में करना है किसी बेगुनाह को मारने या किसी अन्य देश पर चढ़ाई करने नहीं करना है अपने राष्ट्र की तरफ कोई दुश्मन आंख उठाये तब उसे जबाब देना है इसके पश्चात आदि कुमार प्रजा को मसी अर्थात विद्या का ज्ञान देते हैं अक्षर ज्ञान कराते हैं ओर शिक्षा को जीवन मे महत्वपूर्ण बताते हुए पढ़ाई लिखाई का शुभ सन्देश देते हैं युवराज आदिकुमार अपनी प्रजा को इसके साथ ही कृषि करने की विद्या सिखाते हैं और कृषि कार्य के लिए पशुधन की रक्षा का शुभ सन्देश देते हुए कहते हैं कि जमीन को हल से बखरना है बीज डालना है गोबर खाद पानी देना है इस तरह कृषि कर संसार का पालन करने कृषि करने की प्रेरणा देते हैं आत्मकल्याण के लिए ऋषि बनने की प्रेरणा देते है साथ ही वह अपनी दोनो पुत्रियों ब्राह्मी ओर सुंदरी को लिपि एवं अंक विद्या की जिम्मेदारी देते हैं आत्मा के कल्याणार्थ आत्मा को जन्म मरण के बंधन से मुक्ति दिलाने ऋषि मुनि बनकर तप करने की प्रेरणा देते हैं ।


असी मसी कृषि ऋषि में अपनी प्रजा को पारंगत करने के बाद अयोध्या के राजा आदिकुमार की सभा मे देवलोक से आई देवी नीलांजना नृत्य करती हैं नृत्य करते करते उनकी मृत्यु हो जाती है और सौधर्म इंद्र अपनी शक्ति से पलभर में दूसरी नीलांजना प्रगट कर देते हैं लेकिन युवराज आदिकार की दृष्टि नीलांजना की मृत्यु पर पड़ जाती है जिसे देखकर उन्हें वैराग्य हो जाता है वह अपने पुत्र भरत व बाहुबली को राजपाठ सौपकर आत्म कल्याणक के पथ पर आगे बढ़ जाते हैं और जंगल मे घोर तपस्या करने लगते हैं डोली से आदिकुमार को वन तक छोड़ने कौन जयगा इसे लेकर सभी अपनी अपनी बात करने लगते है तभी वह उपदेश देते है जो संयमी हैं वही डोली उठाएंगे ओर इस तरह आदिकुमार को वैराग्य होकर वह तपस्या करने वन में चले जाते हैं प्रतिष्ठाचार्य वाणी भूषण बाल ब्रह्मचारी विनय सम्राट भैया के मुखारविंद से कुशल संचालन में मंच पर इनका मंचन होता है।


वैराग्य होते ही पहुचे आचार्यश्री
अयोध्या के युवराज आदिकुमार को वैराग्य होते ही आचार्यश्री विद्यासागरजी महामुनिराज जी का महामहोत्सव स्थल पर मंगल पदार्पण होते है आचार्यश्री होने वाले आदि तीर्थंकर को दीक्षित कर उनका नाम आदि सागर मुनिराज रखते हैं तप की महत्वता समझाते हुए आचार्यश्री विद्यासागरजी आत्मतत्व का ज्ञान कराने अपनी देशना देते हैं।
आहार चर्या का शौभग्य चौधरी प्रवीन जैन परिवार को मिला
बुधवार को आचार्यश्री को आहारदान का शौभाग्य नेवरा निवासी चौधरी प्रवीन जैन प्रफुल्ल जैन वीरेंद्र रीटा जैन साधना जैन जिनेन्द्र जैन निशांत जैन यश जैन मनीष जैन परिवार को प्राप्त हुआ।

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