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संदेह के आसपास क्यो दिखती है चुनाव आयोग की भूमिका ?-अरुण पटेल

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आलेख

अरुण पटेल

भारत निर्वाचन आयोग ने हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव की घोषणा तो कर दी है परंतु उसने गुजरात के लिए ऐसा नहीं किया जबकि दोनों ही राज्यों में लगभग साथ ही चुनाव होना हैं। इस कारण एक बार फिर भारत निर्वाचन आयोग की कार्यप्रणाली को लेकर सवाल उठने लगे हैं और आयोग की भूमिका भी संदेह के दायरे में आ गई है तथा उस पर निष्पक्ष न होने का आरोप दबे स्वरों में लगने लगा है, जो तेज भी हो सकता है। यह जरुरी है कि चुनाव आयोग न केवल निष्पक्ष हो बल्कि उसके कार्यकलापों व कार्यप्रणाली से आम लोगों के मन में उसकी निष्पक्षता का एहसास भी हो।

2017 के बाद से अक्सर निर्वाचन आयोग की निष्पक्षता को लेकर संदेह का कुहासा घनीभूत करने के प्रयास होते रहे हैं और यदि यह भावना बढ़ती है तो उससे अंततः हमारी लोकतांत्रिक प्रणाली के ही कमजोर होने की संभावना बनी रहेगी। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान नवाचार करने और देश में सबसे पहले फैसले करने वाले राजनेता के रुप में अपना विशिष्ट स्थान बना चुके हैं। अब उन्होंने चिकित्सा शिक्षा हिन्दी में कराने का कदम उठाते हुए इसका आगाज इस सप्ताह के पहले दिन 16 अक्टूबर रविवार को देश के गृहमंत्री अमित शाह से कराने का ऐलान किया है। लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय संरक्षक और समाजवादी विचारक रघु ठाकुर ने इस पहल का स्वागत करते हुए इसे हितकारी फैसला निरुपित किया है।
पहाड़ी राज्य हिमाचल में आखिर चुनावी रणभेरी उस दिन बज ही गयी जिस दिन कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा एक चुनावी रैली को सम्बोधित कर कांग्रेस के चुनाव प्रचार अभियान का आगाज कर रही थीं। हिमाचल प्रदेश में भाजपा की ओर से जहां सीधे-सीधे चुनाव प्रचार अभियान नरेन्द्र मोदी के नाम पर होगा तो वहीं कांग्रेस में असली कमान प्रियंका गांधी के पास होगी और उन्हें ही गुजरात में भी कांग्रेस की नैया पार लगाने में अहम् भूमिका अदा करनी होगी। क्योंकि कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी अपने स्वास्थ्य के चलते अधिक प्रचार नहीं कर पायेंगी तो वहीं 19 अक्टूबर के बाद कांग्रेस की बागडोर संभालने वाले नेता चाहे वे मल्लिकार्जुन खड़गे हों या शशि थरुर उन्हें पहले अपनी धाक व साख जमाने में ही इतना समय लग जायेगा कि गुजरात व हिमाचल के चुनाव तब तक पूरे हो गये होंगे। कांग्रेस इन राज्यों में पहले से कितनी आगे बढ़ती है या नीचे फिसलती है इसका सारा दारोमदार प्रियंका गांधी पर ही निर्भर करेगा, क्योंकि वही एक प्रकार से स्टार प्रचारक होंगी। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को हिमाचल में मुख्य भूमिका दी गयी है तो वहीं राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व उनकी टीम के ऊपर गुजरात चुनाव नतीजों का दारोमदार रहेगा। भूपेश बघेल तो कई मर्तबा हिमाचल जा चुके हैं और वे अब लगभग अपनी पूरी टीम के साथ वहां डेरा जमाने वाले हैं। अशोक गेहलोत की टीम भी गुजरात में स्थानीय स्तर पर सक्रिय हो गई है और गेहलोत भी गुजरात में अपनी आमद दर्ज करा चुके हैं। आम आदमी पार्टी सुप्रीमो अरविन्द केजरीवाल की प्रतिष्ठा भी इन चुनावों में दांव पर लगी हुई है और इनके नतीजे ही यह बतायेंगे कि 2024 में राष्ट्रीय फलक पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का मुकाबला करने का जो सप्तरंगी स्वप्न केजरीवाल की आंखों में पल रहा है उसका क्या हश्र होता है।
हिमाचल में एक ही चरण में 12 नवम्बर को मतदान होगा और 8 दिसम्बर को मतगणना होगी। 17 अक्टूबर को चुनाव की अधिसूचना जारी हो जायेगी और 80 साल से ज्यादा के बुजुर्ग एवं दिव्यांग वोटर घर बैठे बैलेट पेपर से वोट डाल सकेंगे। मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने मीडिया से चर्चा करते हुए चुनाव कार्यक्रम का ऐलान कर दिया है। इस दौरान चुनाव आयुक्त अनूप चन्द्र पांडे भी मौजूद थे। चुनाव आयोग ने गुजरात के चुनावों के लिए अभी घोषणा नहीं की है लेकिन ऐसा समझा जाता है कि दीपावली के बाद चुनाव की तारीखों का ऐलान हो जायेगा। हिमाचल में मतदान और मतगणना के बीच 26 दिन का अन्तर है। गुजरात चुनाव की घोषणा न करने के सम्बंध मे पूछे गये सवालों के उत्तर देते हुए कहा गया कि दोनों राज्यों के कार्यकाल का अन्तर 40 दिन का है। हिमाचल में मौसम की काफी समस्या है विशेषकर ऊपरी पर्वतीय इलाकों में जहां बर्फबारी बहुत होती है ऐसे में आयोग ने मानकों को देखते हुए यह फैसला किया है। हिमाचल विधानसभा का कार्यकाल 8 जनवरी को खत्म हो रहा है। यहां विधानसभा की कुल 68 सीटें हैं जिनमें 20 सीटें आरक्षित हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने पूर्ण बहुमत के साथ यहां जीत दर्ज की थी। हिमाचल प्रदेश का चुनावी समीकरण देश के अन्य राज्यों की तुलना में अलग रहा है। 1985 के बाद से हर बार यहां के मतदाताओं ने मौजूदा सत्ता को उखाड़ फेंका है और इस हिसाब से कांग्रेस यह मानकर चल रही है कि इस बार जीतने की उसकी बारी है और वह हर हाल में अपनी सरकार बनायेगी। जबकि भाजपा अपनी जीत के प्रति पूरी तरह आश्वत है और उसे भरोसा है कि नरेन्द्र मोदी के आभामंडल और चुनाव जिताऊ छवि के सहारे वह ही फिर सरकार बनाने में सफल होगी। आम आदमी पार्टी भी यहां पर पूरी ताकत से चुनाव मैदान में उतरने का मन बना रही है, लेकिन उसे यहां कुछ झटके भी लगे हैं क्योंकि भाजपा ने इस बार यहां आम आदमी पार्टी के कुछ स्थानीय चेहरों को अपने साथ मिला लिया है तो वहीं उसके चुनाव प्रभारी दिल्ली सरकार के मंत्री सत्येन्द्र जैन फिलहाल ईडी के फेर में जेल में हैं। मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने कहा है कि हम विधानसभा के निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए प्रतिबद्ध हैं। उनका कहना था कि राजनीतिक दलों को यह बताना होगा कि वे घोषणापत्र में जिन वायदों को कर रहे हैं उन्हें कैसे पूरा करेंगे। आचार संहिता की अवधि भी 70 दिन से घटाकर 57 दिन कर दी गई है।


हिंदी में होगी चिकित्सा की पढ़ाई
अंग्रेजी के स्थान पर क्षेत्रीय भाषाओं में तकनीकी और चिकित्सा की पढ़ाई के सम्बंध में उठ रही मांग को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मंशा के अनुरुप मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पहल कर एक और कीर्तिमान स्थापित करने में पूरे देश में अग्रणी होने का कीर्तिमान स्थापित कर दिया है। 16 अक्टूबर रविवार को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह राजधानी भोपाल में आयोजित एक भव्य समारोह में चिकित्सा शिक्षा से संबंधित तीन हिन्दी में तैयार की गयी पुस्तकों का लोकार्पण करेंगे। इससे हिन्दी भाषी छात्रों में काफी उत्साह है और जो छात्र अंग्रेजी भाषा के कारण चिकित्सा शिक्षा से दूर रहते थे उन्हें भी अब यह उम्मीद हो गयी है कि वह भी भविष्य में डाक्टर बन सकते हैं। हिन्दी में चिकित्सा की पढ़ाई आरम्भ कर मध्यप्रदेश गुलाम मानसिकता से मुक्ति का पर्व 16 अक्टूबर को मनायेगा यह कहते हुए शिवराज ने बताया कि इस दिन अमित शाह मेडिकल की पढ़ाई हिन्दी माध्यम से करने का शुभारंभ करेंगे। शिवराज की पहल के एक दिन पूर्व 15 अक्टूबर को लगभग हर जिले में हिंदी प्रेमी सम्मेलन आयोजित किए गए। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वी.डी. शर्मा ने कहा कि मैकाले की शिक्षा नीति समाप्त करने के लिए हमने लाठियां खाई हैं और हम लोग कहते रहे हैं कि देश की शिक्षा मूल्य आधारित हो, भारत केंद्रित हो।
और यह भी
समाजवादी चिन्तक और विचारक रघु ठाकुर ने अपनी प्रतिक्रिया में सरकार की पहल का स्वागत करते हुए कहा है कि 1960 के दशक में डॉ. राम मनोहर लोहिया के आह्वान पर संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के द्वारा अंग्रेजी हटाओ अभियान चलाया गया था और उन्होंने पूरी मजबूती के साथ राष्ट्रभाषा के सवाल को उठाया था और अंग्रेजी की अनिवार्यता के खिलाफ जमीनी एवं वैचारिक अभियान आरंभ किया था। उस समय अंग्रेजी के पक्षधरों ने कई तर्क दिए थे जैसे अंग्रेजी विश्व भाषा होने के साथ ही साथ तकनीकी व विज्ञान की भाषा भी है। उस समय लोहिया का तर्क था कि अंग्रेजी न तब विश्व भाषा थी और न ही अब, बल्कि एक बहुत ही छोटे समूह की भाषा है। उन्होंने कहा कि इस चुनौती को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग ने स्वीकार किया और चिकित्सा विज्ञान की पुस्तकों को हिन्दी में तैयार कराया। इस वर्ष से चिकित्सा विज्ञान के प्रथम वर्ष के पाठ्यक्रम में हिन्दी में चिकित्सा विज्ञान की पुस्तकें तैयार कराई हैं जो छात्रों को उपलब्ध कराई जायेंगी। यानी अब चिकित्सा विज्ञान का हिन्दी में ज्ञान दिया जायेगा। रघु ठाकुर कहते हैं कि भले ही सरकार भाजपा की हो जिसके कई विचारों से मेरी मतभिन्नतायें हैं परंतु मैं उनसे ऊपर उठकर सरकार के इस कदम और निर्णय का खुला समर्थन करुंगा। इससे चिकित्सकों को भविष्य में दवाइयों के नाम हिन्दी में लिखना आसान होगा और मरीज अपनी दवाओं के नाम और उनके तत्व जिनसे वह बनी हैं का जानकार हो सकेगा। इस प्रकार अनेक दवाओं की निरर्थक खरीदी व उपयोग से बचा जा सकेगा। दवा कम्पनियों को भी बाध्यता होगी कि वे दवाई के डिब्बों पर या ऊपर के पन्नों पर उनके विवरण हिन्दी में छापें जिससे आम उपभोक्ताओं को काफी ज्ञान और लाभ होगा। चिकित्सा शिक्षा क्षेत्र में अंग्रेजी का एकाधिकार छूटेगा और व्यक्ति अपनी भाषा में चिकित्सा प्राप्त कर सकेगा।

-लेखक सुबह सवेरे के प्रबंध संपादक हैं।
-सम्पर्क: 9425010804, 7999673990

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