अग्नि रूप में आग्नेय मां हिंगलाज तीर्थ के समीप से बाड़ी कलां लाकर की थी स्थापना
भविष्य में क्या होगा जान गए थे महातपस्वी महंत
सुरेन्द्र जैन “बाड़ी”
सती की देह के विभिन्न अंग गिरने से जो 51 शक्तिपीठ विख्यात हुए उनमे आग्नेय मां हिंगलाज तीर्थ एक प्रमुखतम शक्तिपीठ है यहां सती की देह का ब्रह्मरंध्र गिरा था
एक धार्मिक ग्रंथानुसार पिता द्वारा अपने पति का अपमान किये जाने से दुखी सती ने जब यज्ञ कुंड में आत्माहुति डाली तो शिवगण वीरभद्र शव को लेकर नृत्य करने लगे ओर भगवान विष्णु के चक्र से शव का छेदन होने से सती की देह के विभिन्न अंग विभिन्न स्थानों पर गिरने से जहां दांत गिरा वहां दंतेश्वरी जहां बाल गिरे वह बम्लेश्वरी इस तरह 51 शक्तिपीठ विख्यात हुए ओर
जिस स्थान पर सती की देह का ब्रह्मरंध्र गिरा वह स्थान आग्नेय मां हिंगलाज तीर्थ के नाम से विख्यात हुआ जो पाकिस्तान के बलूचिस्तान में स्थित है लेकिन इस आग्नेय मां हिंगलाज तीर्थ को पाकिस्तान के लोग नानी ओर वहां की यात्रा को नानी की हज के नाम से करते हैं ओर इत्र फुलेल आदि चढ़ाते हैं पाकिस्तान के अल्पसंख्यक ओर भारत के बहुसंख्यको अर्थात हिन्दुओ के दर्शनों पर पाकिस्तान सरकार ने रोक लगा दी थी अब यहां एक अहम सवाल यह उठता है कि क्या सैंकड़ों साल पहले बाड़ी स्थित श्री रामजानकी खाकी अखाड़ा मन्दिर के महातपस्वी महंत भगवान दास जी को उस समय यह यह ज्ञात था कि भविष्य में मां हिंगलाज के दर्शन भारतीय हिन्दूओ को मिलना मुश्किल होंगे और उन्होंने अपनी घोर तपस्या से मां हिंगलाज के साक्षात दर्शन कर अग्निरूप में बाड़ी कलां ले आये जहां आज भी मातारानी हिंगलाज के सभी भक्तों को दर्शन मिल रहे हैं दुनिया मे मां हिंगलाज के दो ही प्रमुख स्थान हैं प्रथम आग्नेय मां हिंगलाज तीर्थ जो प्रमुखतम शक्तिपीठ है दूसरा उसी की उपपीठ जो देश के ह्रदय प्रदेश मध्य प्रदेश के रायसेन जिले के प्राचीन धार्मिक स्थलों की नगरी बाड़ी कलां में विंध्याचल पर्वत की तलहटी में हिंगलाज उपशक्तिपीठ के रूप में विख्यात है जहां हमेशा भक्तों का तांता लगा रहता है विशेषकर चैत्र व शारदीय नवरात्रि में तो ब्रह्ममुहूर्त के पहले से ही भक्तों लंबी लंबी कतारें लग जाती हैं श्रद्धा भक्ति के साथ महिलाएं पुरुष बुजुर्ग बच्चे सभी दृर दृर से यहां पहुचते हैं जिनकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं वह बहुत दूर दूर से कोई नँगे पैर पैदल तो कोई सरें भरते हुए मां के दरबार मे पहुचते हैं जल चढ़ाते हैं और भक्तिभाव से पूजा करते हैं।
*स्वप्न में सुना आज्ञा शब्द और ठान ली यात्रा की*
श्रीरामजानकी खाकी अखाड़ा मन्दिर के अंतिम महामंडलेश्वर साकेतवासी तुलसीदास जी से जब उनके जीवित रहते बाड़ी प्रेस क्लब के तत्कालीन उपाध्यक्ष सुरेन्द्र ने उनके बकतरा स्थित निवास पर मातारानी हिंगलाज के इत्तिहास के संबन्ध में जानना चाहा तब महामंडलेश्वर जी ने स्वयं लिखकर इत्तिहास दिया था 7 पेजो में जो उन्होंने लिखा उसके अनुसार बाड़ी कलां स्थित श्री रामजानकी खाकी अखाड़ा मन्दिर के महातपस्वी महंत भगवान दास जी जो पीढ़ियों से मां भगवती के उपासक थे उन्हें एक दिन स्वप्न में मां भगवती हिंगलाज देवी ने दर्शन दिए और वह आज्ञा शब्द ही सुन पाए अब मां भगवती की आज्ञा क्या है इसी सोच में डूबे रहते ओर फिर एक दिन उन्होंने यात्रा का मन बना लिया अस्वस्थता के चलते सभी ने मना किया लेकिन जब महंत जी नहीं माने तो जिसे उन्होंने शिष्य रूप में स्वीकार किया था उसे साथ लेकर पैदल यात्रा पर निकल गए यात्रा बहुत लंबी थी जब शिष्य को थका हुआ देखते तब महंत जी कुछ समय आराम को ठहर जाते चलते चलते एक समय ऐंसा आया की शिष्य मूर्छित होकर गिर गया और महंत जी मां हिंगलाज की भक्ति में लीन चलते गए और पाकिस्तान के बलूचिस्तान के समीप घनघोर जंगल मे अचानक उनके सामने एक वन कन्या आकर उनसे कुछ प्रश्न करने लगी जिन्हें सुनकर महंत जी समझ गए इतने घनघोर जंगल मे देवी स्वरूपी कन्या ओर ऐंसे प्रश्न हो न हो यह मेरी आराध्या देवी मां हिंगलाज देवी ही हैं और उन्होंने मां भगवती से उनके अग्नि रूप के दर्शनों की अभिलाषा की तब वन कन्या के शरीर से अग्नि प्रफुटित हुई और आवाज निकली भक्त तुम्हारी कामना पूर्ण हुई मेरी अग्नि प्राप्त कर लो और यथा स्थान स्थापना करना इस तरह महातपस्वी महंत भगवान दास जी ने मां भगवती के अग्नि रूप में दर्शन किये और कमंडल में अग्नि रूप में बाड़ी कला लाये जहां श्रीरामजानकी खाकी अखाड़ा मन्दिर के हाथी द्वार के सामने ही कमंडल से अग्नि स्वतः गिरी तब वहीं पर मां भगवती हिंगलाज देवी का मंदिर बनवाया गया यहां भक्तों की मनोकामना पूर्ण होने से भक्तों का तांता लगने लगा एक समय ऐंसा भी रहा जब यहां बड़ी संख्या में संतानहीन महिलाओं का दर्शनार्थ आना होता था मन्दिर के पृष्ठ भाग में उल्टा थापा लगाकर महिलाएं संतान प्राप्ति की कामना कर जाती थी और संतान प्राप्ति के बाद थापा सीधा कर मां का श्रंगार कर नृत्य कर खुशियां मनाती थी।हिंगलाज माता के दरबार के सामने ही सती का स्थान है वह भी बहुत प्रसिद्धि है।
हिंगलाज माता के दर्शनार्थ जाने वाले भक्तों को होशंगाबाद स्टेशन से 68 किलो मीटर पिपरिया पचमढ़ी स्टेशन से करीब 60 किलो मीटर भोपाल स्टेशन से 100 किलो मीटर जबलपुर से सड़क मार्ग से दो सौ सोलह किलो मीटर की दूरी जडक़ मार्ग से तय करनी होती है बाड़ी के चिंतामन चौराहे से उत्तर में दो किलो मीटर की दूरी पर विंदयाचल पर्वत की तलहटी में यह पवित्र उपशक्तिपीठ मौजूद है।
*अजय प्रताप सिंह पटेल के समय हुए कई कार्य*
श्रीराम जानकी खाकी अखाड़ा मन्दिर महामंडलेश्वर गादी रही है और यहां से कभी भोपाल के कमाली मन्दिर सहित 108 मंदिरों का संचालन होता था लेकिन अंतिम महामंडलेश्वर भगवान दास जी के बाद यह स्थान प्रशासन के अधीन आ गया प्रशसन के अधीन होने के बाद काफी समय तक तो कोई अच्छा कार्य नहीं हुआ लेकिन जब बाड़ी में नायब तहसीलदार के पद पर अजय प्रताप सिंह पटेल पदस्थ हुए तब उन्होंने यहां काफी कुछ अच्छे कार्य कराए बर्तमान में वह जिला मुख्यालय रायसेन में तहसीलदार के पद पर पदस्थ हैं लेकिन उनके द्वारा किये गए कार्यों को जनता कभी भुला नही पाएगी।
*संस्कृत विद्यापीठ*
श्री रामजानकी खाकी अखाड़ा मन्दिर ओर मां हिंगलाज उपशक्तिपीठ के दर्शनार्थ आने वाले तीर्थ यात्रियों की सुविधाओं को देखते हुए यहां धर्मशाला पेयजल की समुचित व्यवस्था तो है ही साथ ही यहां बच्चों को संस्कारित करने अपनी संस्कृति का ज्ञान कराने भविष्य उज्ज्वल बनाने संस्कृत विद्यापीठ भी संचालित हो रहा है जिसमे बच्चों को धर्म अध्यात्म की संस्कृत में शिक्षा देकर संस्कारित किया जा रहा है सप्त व्यसनों से दूर बच्चों में उज्ज्वल भविष्य के संस्कार डाले जा रहे हैं ।
*सैंकड़ों एकड़ जमीन आख़िर कहाँ है*
श्रीरामजानकी खाकी अखाड़ा मन्दिर के महामंडलेश्वर बनवारीदास जी के समय एक चमत्कारिक घटना से वशीभूत होकर भोपाल रियासत की तत्कालीन बेगम ने मन्दिर के आसपास की जमीन मन्दिर के रखरखाब के लिए जागीर में दी थी और उन्ही की तरफ से एक रुपये रोज भोग के लिए आना शुरू हुआ था जो अंतिम महामंडलेश्वर तुलसीदास जी के समय तक आता रहा।
जो जमीन खाकी अखाड़ा मन्दिर को जागीर में मिली थी वह लगभग बर्तमान में मौजूद जमीन से चार पांच गुना अधिक थी तो बांकी की जमीन कहाँ गई किन किन ने अतिक्रमण किया या फर्जीवाड़ा कर कब्जा किया इसके लिए चार पांच दशक पुराने रिकॉर्डों के आधार पर जिला प्रशासन को चाहिए कि वह पड़ताल करें और मन्दिर की जमीन को पूरा कराएं।