केरल हाई कोर्ट ने कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) से कहा है कि वह कर्मचारियों और पेंशनभोगियों को पूर्व सहमति का प्रमाण पत्र देने की जरूरत के बिना अधिक अंशदान का विकल्प चुनने की अनुमति देने के लिए अपनी आनलाइन प्रणाली में प्रविधान करे। यदि आनलाइन सुविधा में उपयुक्त संशोधन नहीं किया जा सकता, तो आवेदन भौतिक रूप से जमा करने समेत अन्य व्यवहारिक विकल्प उपलब्ध कराए जाएं। उल्लिखित सुविधाएं आदेश की तिथि से 10 दिनों की अवधि के भीतर सभी कर्मचारियों और पेंशनभोगियों को उपलब्ध कराई जाएं।जस्टिस जियाद रहमान ए.ए. ने बुधवार को कर्मचारियों और पेंशनभोगियों की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह अंतरिम आदेश दिया। याचिकाओं में दावा किया गया था कि अधिक योगदान का विकल्प चुनते समय पूर्व अनुमति की एक प्रति देनी होती है, जो ईपीएफ योजना, 1952 के तहत अनिवार्य है। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि इस तरह की अनुमति देने के लिए ईपीएफओ ने कभी भी जोर नहीं दिया और वह उच्च योगदान को स्वीकार कर रहा है। उन्होंने कहा कि वे आनलाइन विकल्प फार्म में उक्त कालम को नहीं भर पा रहे हैं और पूर्व सहमति का प्रमाण दिए बिना वे सफलतापूर्वक आनलाइन विकल्प दाखिल नहीं कर पाएंगे। यदि वे तीन मई की अंतिम समयसीमा से पहले ऐसा नहीं करते हैं, तो वे योजना के लाभ से वंचित हो जाएंगे। सुप्रीम कोर्ट उच्च पेंशन का विकल्प चुनने के लिए तीन मई तक का समय दिया है। ईपीएफओ ने दलीलों का विरोध करते हुए तर्क दिया कि लाभ पाने के लिए अनुमति महत्वपूर्ण आवश्यकता है। सभी की दलीलों को सुनने के बाद हाई कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को अंतरिम राहत मिलनी चाहिए। अदालत ने कहा, “सुप्रीम कोर्ट ने विकल्प दाखिल करने के लिए अंतिम तिथि तीन मई, 2023 तय की है। अब ईपीएस योजना के पैरा 26(6) के तहत विकल्प का विवरण प्रस्तुत करने के लिए ईपीएफओ पूर्व सहमति के प्रमाण पर जोर दे रहा है। साथ ही इसके लिए प्रदान की गई आनलाइन सुविधा की विशिष्ट प्रकृति को देखते हुए उन्हें उक्त विकल्प को लेकर आवेदन जमा करने से एक तरह से रोका जा रहा है।” न्यायाधीश ने कहा कि यदि याचिकाकर्ताओं को अंतिम तिथि से पहले अपने विकल्प प्रस्तुत करने की अनुमति नहीं दी गई, तो वे न्यायालय के फैसले के तहत लाभ का दावा करने के अवसर से हमेशा के लिए वंचित हो जाएंगे।
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