यहां दिखाई देती प्राचीन दीवार और कलाकृतियां पर बिखर रही धरोहर:पहुंच मार्ग कठिन,बाड़े के काम आ रहे प्रस्तर
रिपोर्ट धीरज जॉनसन,दमोह
प्राचीनकाल की वैभवशाली संस्कृति और सभ्यता से संपन्न दमोह जिले के अलग अलग हिस्सों में बेजोड़ कलाकृति,सुरक्षा के इंतजाम और संस्कृति दिखाई देती है जो वर्तमान में बिखरी हुई और कुछ तो विलुप्ति की कगार पर है अगर इन्हे संरक्षित किया जाए तो वर्तमान और भविष्य की पीढ़ी के लिए ज्ञानवर्धन के साथ साथ पर्यटन की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हो सकती है।
जिले के सिग्रामपुर और सेलवाड़ा के मध्य दोनी,धरीमाल और इसके आस पास मंदिरों के समूह के हिस्से, बावड़ी,मढ़े, प्रतिमाएं और प्राचीन दीवार भी दिखाई देती है जहां पहुंचने के लिए दुर्गम रास्तों को तय करना पड़ता है और शायद इसकी जानकारी अभी भी अधिकांश लोगों को नहीं है।
*बिखरी पड़ी है कलाकृतियां*
एक प्राचीन स्थल दोनी सिंग्रामपुर से लगभग ग्यारह किमी पश्चिम में दोनी ग्राम में स्थित हैं। यहां मन्दिरों का एक समूह है। इस क्षेत्र में यह एक मात्र स्थान है जहां मन्दिर समूह में बनाए गये है, परन्तु वर्तमान में ये सभी मन्दिर पूर्णतः नष्ट हो चुके हैं और अलग अलग हिस्सों में नक्काशीदार पत्थरों के ढेर दिखाई देते है। यहाँ के कई मन्दिरों के अवशेष द्वार- शाखाओं, ललाट, बिम्ब, हाथी, घोड़ा, मानव आकृतियों का अंकन किया गया हैं।
एक द्वार पर भी खूबसूरत नक्काशी दिखाई देती है।मन्दिर के शिल्पखण्ड के आधार पर यह अनुमान लगाया जा सकता कि यहां पर विशाल मन्दिरों का समूह रहा होगा। जिनके भग्नावशेष वर्तमान में भी उपलब्ध है। इस मन्दिर के निकट एक बावड़ी है जो आज भी सुरक्षित है,निकट ही छोटा सा एक टूटा हुआ मढ़ा और भग्नावशेष भी फैले हुए है, परंतु आश्चर्य यह है कि पुरातात्विक महत्व के इस स्थल तक पहुंचने का कोई रास्ता दिखाई नहीं देता,सड़क के किनारे किसानों के खेत है जहां तार फेंसिंग और गेट लगे दिखाई देते है,मंदिर के चारों तरफ भी खेत है कुछ लोगों ने तो यहां के पत्थर उठाकर दो खेतों के मध्य अस्थाई दीवार बना ली है।
इसके निर्माण योजना के आधार एवं स्थापत्य के अवशेष को देखकर लगता है कि यह कोई महत्वपूर्ण केन्द्र रहा होगा,वर्तमान में यहां के ग्रामीणों का कहना है कि ऐतिहासिक महत्व के इन स्थानों को सुरक्षित किया जाना चाहिए जो पर्यटन की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।
*प्राचीन दीवार*
दमोह जिले के ग्राम दोनी,धरी के आस पास मंदिर,किले के भग्नावशेषों के मध्य अनेक भग्न मन्दिरों के अवशेष वर्तमान में भी उपलब्ध है परंतु महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि दोनी अलोनी के मध्य दीवार के अवशेष प्राप्त होते है, इसके निर्माण में ईट और पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है।इसका गहन सर्वेक्षण एवं उत्खनन् कार्य अगर
होता है तो अनेक महत्वपूर्ण तथ्य और ऐतिहासिक जानकारियां सामने आ सकती है। इस दीवार का अंत भी पहाड़ी इलाके में जिले की सीमा पर है जहां का दृश्य बहुत ही विहंगम और खूबसूरत दिखाई देता है परंतु यहां तक पहुंचने के लिए दुर्गम क्षेत्रों से रास्ता तय करना पड़ता है। वर्तमान में भी यहां ईट पत्थर और जंगल में मध्य काफी दूरी तक दीवार के अवशेष दिखाई देते है।