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मप्र के रायसेन किले पर भी हुआ था रानी पद्मावती के जैसा जौहर …

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रायसेन में रानी दुर्गावती की याद में 6 मई को आज भी मनाया जाता हैं जौहर दिवस…!!

विजय सिंह राठौर,रायसेन

– फ़िल्म पदमावती के विवाद से चर्चाओं में आया जौहर शब्द मप्र के रायसेन जिले से भी जुड़ा हुआ है। दरअसल यहा चर्चा किसी विवाद को लेकर नही बल्कि रायसेन की 700 राजपूत रानियों के जौहर की गौरवगाथा की हो रही हैं। जी हां आज 06 मई हैं और 6 मई 1532 ई. को रायसेन की राजपूत रानी दुर्गावती ने 700 महिलाओं के साथ रायसेन दुर्ग पर ही जौहर किया था।रायसेन किले से जुड़े संघर्ष में 700 राजपूत रानियो के जौहर को आज 490 साल पूरे हो गए हैं। मुगलों के आक्रमण के दौर में जौहर की इस कहानी के बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं।

छह मई 1532 को रानी दुर्गावती ने 700 राजपूतानियों के साथ जौहर किया था। बात 6 मई 1532 की है जब रायसेन किले पर राजा शिलादित्य की रानी दुर्गावती ने बहादुर शाह के सामने झुकने की बजाय लड़ने की बात कही थी। दुर्गावती ने मुगलों के सामने घुटने टेकने की जगह किले पर वर्तमान में मन्दिर में कैद भगवान शिव को साक्षि मानकर 700 राजपूतानियों के साथ जौहर कर लिया था। रानी दुर्गावती मेवाड़ के महाराजा राणा सांगा की बेटी थीं, उनका विवाह रायसेन के तोमर राजा शिलादित्य से हुआ था। रायसेन के किले में हुए जौहर का उस समय के साहित्य और जनश्रुतियों में भी इसका प्रत्यक्ष प्रमाण मिलता है।

– राजपूत रानी दुर्गावती के जौहर के समय सिल्हादी का बेटा भूपति राय एक युद्ध अभियान पर गया था, जब उसे रायसेन में हुई इस घटना की जानकारी मिली तो वह लौटा और बहादुर शाह के सामंत को मार भगाया। रायसेन के इस प्रसिद्ध किले में रानी दुर्गावती के जौहर के कई प्रमाण आज भी मिलते हैं। रायसेन के गजेटियर में भी इसका उल्लेख है। मध्यकाल के इतिहास में रायसेन किले की अहम भूमिका रही है।

यह है रायसेन किले पर हुए जौहर की गौरवगाथा..

– 1531 ईस्वी मे गुजरात के शासक बहादुर शाह द्वितीय ने मालवा पर आक्रमण किया । तब तक रायसेन के शासक शिलादित्य से उसकी संधि हो चुकी थी और उधर दिल्ली में बाबर की मृत्यु के बाद हुमायूं गद्दी पर बैठ चुका था । इस समय उज्जैन, आष्टा,रायसेन, विदिशा आदि क्षेत्र शिलादित्य के अधिकार में थे । इस समय शेरशाह भी रायसेन पर विजय की योजना बना रहा था । और उधर बहादुर शाह भी महसूस कर रहा था कि रायसेन पर अधिकार किये बिना इस क्षैत्र पर उसका अधिकार स्थायी नही हो पाऐगा । इस लिए उसने रायसेन के शासक को जीतने हेतु धोखाधड़ी की एक घृणित योजना बनाई । ओर शिलादित्य को सहयोगियों के साथ बंदी बना लिया । जिसके बाद उसका पुत्र लक्ष्मण सेन अपनी छोटी सी सेना की टुकड़ी के साथ रायसेन दुर्ग की रक्षा हेतु रवाना हुए । भूपति राय भी खबर लगते ही चित्तौढगढ़ की सेना साथ लेकर रायसेन की ओर रवाना हुए ।

इधर तोमर राजवंश के राजा शिलादित्य की पत्नी रानी दुर्गावती भी अत्यंत चतुर एवं साहसी स्त्री थी उसने भी कहला भेजा कि यदि महाराज शिलादित्य की आज्ञा है तो वे स्वयं दुर्ग में आकर रानी से बात करें । भूपति राय से घबराए बहादुरशाह ने रानी की इस शर्त को स्वीकार कर लिया और 4 मई 1532 ईस्वी को शिलादित्य को अपने सिपहसालार मलिक शेर के साथ दुर्ग में पहुँचा दिया गया । दुर्ग में शिलादित्य की महारानी दुर्गावती एवं लक्ष्मण सेन आदि से भैट हुई । रानी ने कहा हम सबका अंतकाल निकट है , हम वीरों की तरह शौर्य का प्रदर्शन कर प्राण त्यागेंगे । हमने निश्चय किया है कि स्त्रियां जौहर की अग्नि में कूदकर प्राण न्योछावर करेंगी और पुरूष अंतिम समय तक शत्रु से लोहा लेते हुए लड़ेंगे, मगर जीते – जी दुर्ग दुश्मन को नहीं सौंपेंगे । इतने दिनो की कैद से निराश शिलादित्य भी महारानी के बिचार सुन जोश से भर उठा और दुर्गावती एवं लक्ष्मण सेन के साथ मरने-मारने पर उतारू हो गया ।

मलिक शेर ने शिलादित्य को समझाने की बहुत चेष्टा की और विफल होने पर लौट गया । फिर 6 मई 1532 ईस्वी को रायसेन दुर्ग पर रानी महल में एक कुंड में जौहर की ज्वाला धधक उठी और रानी दुर्गावती सहित 700 राजपूत स्त्रियों ने अपने बच्चों सहित अग्नि कुंड में प्रवेश कर लिया । उनका यह बलिदान युगों -युगों तक प्रेरणा का स्त्रोत बना रहेगा । शिलादित्य और लक्ष्मण सेन सहित सभी राजपूत मौत से जूझने निकल पड़े, सभी ने अपनी बीरता एवं शौर्य का चरम सीमा तक प्रदर्शन किया । महाराज शिलादित्य अंतिम समय तक सेना का नेतृत्व करते हुए 10 मई 1532 ईस्वी को वीरगति को प्राप्त हुऐ ।
– राजीव चौबे, इतिहासकार,रायसेन।

आज भी 6 मई को जौहर दिवस मनाते हैं रायसेन के राजपूत समाज के लोग..

– वीरांगना राजपूतानियो के जौहर एवं अग्नि पुत्र राजपूतो के इस अपूर्व बलिदान को रायसेन सदैव याद रखेगा। यह विवरण बादशाह के किसी दरबारी अथवा बाद के अन्य मुस्लिम इतिहासकारों ने भी अपने कई लेख में लिखा है कि राजपूत जो प्राणों को हथेली पर रखकर घूमते थे, सम्मान की रक्षा के लिए अपनी स्त्रियों और बच्चों को जौहर की अग्नि में भस्म होते हुए देखते थे। अपने शहर के गौरवशाली इतिहास को जानकर लोग आज भी गर्व महसूस करते है। और हर साल 6 मई को जौहर दिवस के रूप में मनाते है।
– अलर्क राजपूत, बबलू ठाकुर स्थानीय नागरिक

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