सहरिया क्रांति,गरीब मज़दूर हितेषी एक महायज्ञ
आज भी आदिम युग जैसा ही है मजदूर और मालिक का नाता
आरव कान्हा शिवपुरी
सोशल मीडिया से लेकर अखवारों में मजदूर दिवस की धूम है. मजदूर दिवस हर बर्ष मनाया जाता है। जिसका मुख्य उद्देश्य उस दिन मजदूरों की भलाई के लिए काम करने व मजदूरों में उनके अधिकारों के प्रति जागृति लाना होता है। मगर आज तक तो कहीं ऐसा हो नहीं पाया है। आज भी आदिम युग में जो हालत थे मजदूर और मालिक के बीच ठीक व्ही हालत आज भी हैं . शिवपुरी जिले का मजदूर वर्ग आज भी अत्यंत ही दयनीय स्थिति में रह रहा है। उनको न तो मालिकों द्वारा किए गए कार्य की पूरी मजदूरी दी जाती है और ना ही अन्य वांछित सुविधाएं उपलब्ध करवाई जाती हैं। गांव में खेती के प्रति लोगों का रुझान कम हो रहा है। इस कारण बड़ी संख्या में लोग मजदूरी करने के लिए शहर की तरफ पलायन कर जाते हैं। जहां ना उनके रहने की कोई सही व्यवस्था होती है ही उनको कोई ढंग का काम मिल पाता है। मगर आर्थिक कमजोरी के चलते शहरों में रहने वाले मजदूर वर्ग जैसे तैसे कर वहां अपना गुजर-बसर करते हैं । शिवपुरी के ग्रामीण अंचल से निकलकर जिला मुख्यालय पर छोटी –छोटी तंग गलियों वाले मोहल्ले में रहने वाला वर्ग आज हर समस्या से जूझ रहा है .
शिवपुरी का श्रमिक वर्ग श्रम कल्याण सुविधाओं के लिए आज भी तरस रहा है। जिले में मजदूरों का शोषण आज भी जारी है। मजदूर दिवस को लेकर श्रमिक तबके में अब कोई खास उत्साह नहीं रह गया है। बढ़ती महंगाई और पारिवारिक जिम्मेदारियों ने भी मजदूरों के उत्साह का कम कर दिया है। अब मजदूर दिवस इनके लिए सिर्फ कागजी रस्म बनकर रह गया है।वो भी उनको जो सोशल मिडिया पर सक्रिय हैं .बाकि 70 प्रतिशत को तो ये भी नहीं पता की मजदूरों का भी 365 दिन में एक दिन होता है .
शिवपुरी में कई बस्तियों में झोंपड़ पट्टी बस्तियों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है। जहां रहने वाले लोगों को कैसी विषम परिस्थितियों का सामना करता है। शहर में लगी महल सराय , फक्कड कोलोनी , करोंदी , लुधावली संजय कोलोनी के रहवासियों के हाल बेहाल हैं . इनकी बेहतरी की फ़िक्र न तो सरकार को है ना ही किसी राजनीतिक दलों के नेताओं को । झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले मजदूरों को शौचालय जाने के लिए भी घंटों लाइनों में खड़ा रहना पड़ता है। बस्तियों में ना पीने को साफ पानी मिलता है और ना ही स्वच्छ वातावरण। शहर के आसपास बसने वाली इन झोपड़ पट्टियों से थोड़े बेहतर मुर्गी के दडवे नुमा मकानों में रहने वाले गरीब तबके के मजदूर कैसा नारकीय जीवन गुजारते हैं, उसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता है। मगर इसको अपनी नियति मान कर पूरी मेहनत से अपने मालिकों के यहां काम करने वाले मजदूरों के प्रति मालिकों के मन में जरा भी सहानुभूति के भाव नहीं रहते हैं। उनसे 12-12 घंटे लगातार काम करवाया जाता है। घंटों धूप में खड़े रहकर बड़ी-बड़ी कोठियां बनाने वाले मजदूरों को एक छप्पर तक नसीब नहीं हो पाता है।
मजदूरी कर अपने परिवार का भरण पोषण करने वाला सुरेन्द्र कुशवाह का कहना है कि कोरोना के कहर का शिकार आज सब से ज्यादा मजदूर हुए हैं। काम धंधा एकदम चौपट हो गया है। परिवार के समक्ष गुजर-बसर करने की समस्या पैदा हो रही है। सरकार द्वारा प्रदान की जा रही सहायता भी मजदूरों तक सही ढंग से नहीं पहुंच पा रही है। इस कारण बहुत से लोगों के समक्ष रोजी रोटी का संकट व्याप्त हो रहा है। ठेकेदारों के यहां अस्थाई रूप से काम करने वाले श्रमिकों को ना तो उनका मालिक कुछ दे रहा है ना ही ठेकेदार। इस विकट परिस्थिति में श्रमिक अन्य कहीं काम भी नहीं कर सकते हैं। उनकी आय के सभी रास्ते बंद हो रहे हैं। सरकार को इस ओर गंभीरता से सोचना चाहिए
सहरिया क्रांति के सदस्य अजय आदिवासी का कहना है कि सबसे ज्यादा कोई प्रताड़ित व उपेक्षित है तो वो मजदूर वर्ग है। मजदूरों की सुनने वाला कोई नहीं है। शिवपुरी से कारखानों का अभाव है ऐसे में लेवर ठेकेदार के कहने पर अन्य राज्यों में किसी कारखाने में काम करने वाले मजदूरों पर अक्सर दोहरी मार पढती । कारखानों में प्रवासी कार्यरत मजदूरों से निर्धारित समय से अधिक काम लिया जाता है और विरोध करने पर काम से हटाने की धमकी दी जाती है। मजबूरी में मजदूर कारखाने के मालिक की शर्तों पर काम करने को मजबूर होता है। कारखानों में श्रम विभाग के मापदण्डों के अनुसार किसी भी तरह की कोई सुविधायें नहीं दी जाती हैं। इसके बाद कई मजदूरों का पैसा बीच में ही लेवर ठेकेदार हजम कर जाता है . अभी हाल ही शिवपुरी के बालापुर के 14 आदिवासी युवाओं को दिवास्प्न दिखाकर सारंगपुर जिला श्योपुर का कल्ली यादव दिल्ली पाइप लाइन की मजदूरी कराने ले गया दीपावली से होली तक उनसे हाड तोड़ म्हणत करवाई जब मजदूरी के पैसे मांगे तो सभी आदिवासी मजदूरों को चलता कर दिया . अब वे सहरिया क्रांति के माध्यम से न्याय मांग रहे हैं .
राजेश सोनिपुरा कहते हैं कि शिवपुरी की गरीब आदिवासी बस्तियों से जिन मजदूरों को ले जाते हैं उन मजदूरों से खतरनाक काम करवाया जाता है जिस कारण उनको कई प्रकार की बीमारियां लग जाती हैं। कारखानों में मजदूरों को पर्याप्त चिकित्सा सुविधा, पीने का साफ पानी, विश्राम की सुविधा तक उपलब्ध नहीं करवायी जाती है। मालिकों द्वारा निरंतर मजदूरों का शोषण किया जाता है मगर मजदूरों के हितों की रक्षा के लिये बनी मजदूर यूनियनों द्वरा भी मजदूरों की बजाय मालिकों की ज्यादा चिंता की जाती है।
शिवपुरी जिले में में मजदूरों की स्थिति सबसे भयावह होती जा रही है। एक भी कारखाना यहाँ नहीं है सेठों के गोदामों पर गिने-चुने मजदूर मजबूरी में हाड तोड़ मेहनत करने के बाद भी उचित मजदूरी नहीं पा पाते हैं .जिले का मजदूर दिन प्रतिदिन और अधिक गरीब होता जा रहा है। दिन रात रोजी-रोटी के जुगाड़ में जद्दोजहद करने वाले मजदूर को तो दो जून की रोटी मिल जाए तो मानो सब कुछ मिल गया। आजादी के इतने सालों में भले ही देश में बहुत कुछ बदल गया होगा। लेकिन शिवपुरी के मजदूरों के हालात तो आज भी नहीं बदले हैं तो फिर श्रमिक वर्ग किस लिये मजदूर दिवस मनाये।
मजदूरों के हितार्थ दिन रात काम करने वाले सहरिया क्रांति के संयोजक वरिष्ठ पत्रकार संजय बेचैन कहते हैं कि हर बार मजदूर दिवस के अवसर पर सरकारें मजदूरों के हित की योजनाओं के बड़े-बड़े विज्ञापन जारी करती हैं। जिनमें मजदूरों के हितों की बहुत-सी बातें लिखी होती हैं। किन्तु उनमें से अमल किसी बात पर नहीं हो पाता है। देश में सभी राजनीतिक दलों ने अपने यहां मजदूर संगठन बना रखे हैं। सभी दल दावा करते हैं कि उनका दल मजदूरों के भले के लिये काम करता है। मगर ये सिर्फ कहने सुनने में ही अच्छा लगता है हकीकत इससे कहीं उलटी है। शिवपुरी का मजदूर वर्ग राशनकार्ड तक गिरवी रखकर अपने इलाज पानी करवा रहा है , सरकारी राशन तक दबंग हडप रहे हैं पुलिस थाने भी इनकी समस्याओं को सुनना वक़्त जाया करना समझते हैं .