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मध्यप्रदेश में “नाम” बदलकर दिल जीतने की सियासत

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भोपाल। कहा जाता है कि नाम में क्या रखा है? हालांकि, मध्य प्रदेश की सियासत में नाम में ही सब कुछ नजर आने लगा है। यही कारण है कि यहां के सरकारी विभाग से लेकर इमारतों, रेल्वे स्टेशन, बस अड्डे और विश्वविद्यालय तक के नाम बदले जा रहे है। साथ ही शहरों के नाम बदलने की आवाजें उठ रही है। इसके पीछे का मकसद मतदाताओं का दिल जीतना नजर आता है। राज्य में बीते कुछ अरसे में नाम को सियासत का नया हथियार बनाया गया है और इसके जरिए सियासी दलों में एक दूसरे को शिकस्त देने के लिए अपने अनुकूल सियासी मैदान तैयार किए जाने की हर संभव कोशिशें की जा रही है। इस बदलाव की बड़ी और पहली शुरूआत जनजातीय वर्ग के नायक बिरसा मुंडा की जयंती 15 नवंबर से हुई। इस दिन को जनजातीय गौरव दिवस मनाए जाने का ऐलान हुआ और इसी दिन भोपाल के हबीबगंज रेल्वे स्टेशन का नाम बदलकर गोंड रानी कमलापति के नाम कर दिया गया।

हबीबगंज रेल्वे स्टेशन का नाम रानी कमलापति के नाम किए जाने के बाद से नाम बदलने का सिलसिला चल पड़ा है। इंदौर के पातालपानी रेल्वे स्टेशन केा आदिवासियों के इंडियन रॉबिन हुड माने जाने वाले टंट्या भील के नाम से पहचाना जाएगा, तो यहां के बस स्टेंड और भंवरकुआं चौका को भी इन्हीं के नाम से जाना जाएगा।

राजधानी के पुराने विधानसभा भवन केा मिंटो हॉल के तौर पर पहचाना जाता रहा है, मगर अब इसका नाम भाजपा के पितृपुरुष कहे जाने वाले कुशाभाऊ ठाकरे के नाम कर दिया गया है। मिंटो हॉल का निर्माण 1909 में भोपाल के नवाब खानदान की बेगम सुल्तान जहां ने कराया था, वे भोपाल की चौथी और आखिरी बेगम थीं। उन्होंने तत्कालीन वायसराय ऑफ इंडिया लॉर्ड मिंटो के सम्मान में इस बिल्डिंग का नाम ह्यमिंटो हॉलह्य रखा था। इसमें पहले विधानसभा चली और 2018 में मिंटो हॉल का पुनर्निर्माण हुआ और इसे वर्तमान में कन्वेंशन सेंटर के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है।

पूर्ववर्ती कमल नाथ की सरकार ने छिंदवाड़ा में छिंदवाड़ा विश्वविद्यालय शुरू किया था, जिसका नाम बदलकर राजा शंकर शाह विश्वविद्यालय , छिंदवाड़ा कर दिया गया है। अभी हाल में ही बड़ा फैसला अध्यात्म विभाग का नाम परिवर्तित कर धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व विभाग करने का हुआ है। इसके अलावा आनंद विभाग भी बनाया गया है।

राज्य के शहरों के नाम बदलने की कवायद जारी है। होशंगाबाद जिले का नाम नर्मदापुरम करने की मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान घोषणा कर चुके है, इसका विधानसभा में अशासकीय संकल्प भी पारित हो चुका है, मगर सरकारी दस्तावेजों में अभी भी होशंगाबाद दर्ज है, क्योंकि केंद्र सरकार की मंजूरी का इंतजार है।

कांग्रेस के पूर्व मंत्री सज्जन वर्मा तो ग्वालियर के साथ इंदौर का भी नाम बदलने की पैरवी कर चुके है। इंदौर का नाम देवी अहिल्या बाई नगर किए जाने की मांग कई नेता उठा चुके है।

इतना ही नहीं राजधानी भोपाल का नाम राजा भोज के नाम पर भोजपाल करने के लिए स्थानीय नगर निगम प्रस्ताव पारित कर राज्य शासन को भेज चुकी है। इसी तरह ईदगाह हिल्स का नाम बदलकर गुरुनानक टेकरी करने की मांग उठी। कहा जाता है कि सिखों के पहले गुरु नानक देवजी यहां रुके थे। यहां उनके पैरों के निशान हैं।

राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती हलाली डेम का नाम बदले जाने की मांग कर चुकी है, भोपाल सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर भी भोपाल के इस्लाम नगर, लालघाटी, हलाली डैम और हलालपुरा बस स्टैंड के नाम बदलने की मांग उठा चुकी है।

कुल मिलाकर राज्य में नाम बदलने की सियासत तेजी से आगे बढ़ रही है। कांग्रेस के कुछ नेता भी कई स्थानों का नाम बदलने के पक्ष में है मगर कुछ प्रमुख नेता जरुर नाम बदलने पर सवाल उठाते रहे है वहीँ भाजपा उन स्थानों के नाम बदलने पर जोर-शोर से आगे बढ़ रही है जो गुलामी और परतंत्रता की याद दिलाते है।

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