भोपाल। जनजातीय संस्कृति की कला परंपराओं के केंद्र के रूप में मध्य प्रदेश जनजातीय संग्रहालय ने अपनी पहचान विश्व पटल पर बनाई है। संग्रहालय की स्थापना के एक दशक पूर्ण होने के अवसर पर छह से दस जून तक प्रतिदिन दोपहर 12 बजे से वर्षगांठ समारोह आयोजित किया जा रहा है। संग्रहाध्यक्ष अशोक मिश्र ने बताया कि समारोह में प्रदेश के जनजातीय कलारूपों के साथ ही देश के 12 राज्यों के कलाकार सहभागिता कर रहे हैं। इसमें नृत्यकार, शिल्पकार, चित्रकार हिस्सेदारी करेंगे। इसके तहत मध्यप्रदेश और अन्य 12 राज्यों लेह लद्दाख, आसाम, त्रिपुरा, मेघालय, सिक्किम, झारखंड, गुजरात, उत्तराखंड, तेलंगाना, प.बंगाल, ओडिशा, छत्तीसगढ़ राज्यों के जनजातीय कलाकार सम्मिलित हो रहे हैं।
आमंत्रण उत्सव है खास- समारोह में पांच से नौ जून तक शहर के मुख्य स्थलों पर आमंत्रण उत्सव आयोजित किया जाएगा। कलाकारों द्वारा शहर के अलग-अलग स्थलों पर प्रस्तुति दी जाएगी एवं प्रस्तुति के माध्यम कलाकार आमजन को संग्रहालय वर्षगांठ समारोह को अवलोकन के लिए आमंत्रित करेंगे। इनमें खानूगांव चौराहा, लालघाटी चौराहा, बैरागढ़, ईदगाह हिल्स, गोवन्दिपुरा, पिपलानी, अयोध्या नगर, आनन्द नगर, न्यू मार्केट, नेहरू नगर, नीलबड़, जवाहर चौक, 10 नम्बर मार्केट, शाहपुरा लेक, कोलार रोड, अशोका गार्डन, एमपी नगर एवं शिवाजी नगर, होशंगाबाद रोड़, बरकतउल्ला विश्वविद्यालय शामिल हैं।
गोंड जनजातीय रामायनी पर आधारित लछमन चरित लीला नाट्य प्रस्तुति से होगा शुभारंभ
समारोह में छह जून को शाम सात बजे गोंड जनजाति में प्रचलित रामायनी गाथा पर आधारित लछमन चरित लीला नाट्य प्रस्तुति से वर्षगांठ समारोह का शुभारंभ होगा। इसमें प्रदेश के करीब 40 जनजातीय और लोक कलाकार हैं। इस लीला का निर्देशन रामचंद्र सिंह, भोपाल द्वारा किया गया है।
शिल्प मेले में दिखेगा प्रदेश का कौशल- इस अवसर पर शिल्प मेले का आयोजन भी किया जा रहा है, जो दोपहर 12 बजे से शिल्पों के प्रदर्शन एवं बिक्री के लिये रहेगा। इसमें करीब 20 स्टाल लगाए जाएंगे, जिसमें बांस, धातु से निर्मित उत्पाद, कढ़ाई व जरी के उत्पाद, मिट्टी के बर्तन, बाग, दाबू, इंडिगो, भौरूगढ़ वस्त्र शिल्पी अपने उत्पादों का प्रदर्शन और बिक्री करेंगे। वहीं व्यंजन मेले में प्रदेश की जनजातीयों के सुस्वादु स्टाल भी होंगे।
इस पांच दिवसीय समारोह में गोंड चित्रांकन में कलाकारों की विशिष्टता एकाग्र चित्र शिविर का आयोजन भी किया जा रहा है, जिसमें चित्रकारों द्वारा अपने विशिष्ट प्रतीकों का अंकन किया जाएगा।
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