शहर और गांव में बेचते है सामान:चूल्हे पर बनता है भोजन
महंगाई औऱ भविष्य की चिंता
धीरज जॉनसनदमोह
दमोह शहर के कचौरा शॉपिंग सेंटर के निकट लगभग 200-250 की आबादी वाला जनसमूह पिछले तीन- चार पीढ़ियों से लकड़ी से विभिन्न प्रकार के सामान को बना कर व उन्हें बेचकर जीवनयापन कर रहे है जिसमें समस्त परिवार इन कार्यो में सहयोग करता है परंतु महंगाई के बढ़ जाने से अब प्लास्टिक की सामग्री भी वे गांव व शहर में बेचने जाने लगे है,आने वाली पीढ़ी के लिए दिक्कतों का सामना न करना पड़े इसलिये बच्चों को पढ़ाई के लिए प्रेरित भी कर रहे है,काफी सघन क्षेत्र में बसे ये लोगों सार्वजनिक सुलभ कॉम्प्लेक्स का इस्तेमाल करते है जिसकी हालत भी कुछ ठीक नहीं है टूटे टाइल्स, दरवाजे औऱ छत के प्लास्टर इसकी जीर्ण शीर्ण अवस्था को दर्शाते प्रतीत होते है।
करन,सूरज,प्रकाश ने बताया कि फर्नीचर के लिए लकड़ी में खराद का काम करते है व बेलन,औऱ अगरबत्ती स्टैंड भी बनाते है,पहले ये काम हाथों से करना पड़ता था पर अब मशीनों के आ जाने से समय की बचत हो जाती है जो भोपाल और नागपुर में मिलती है पर गांवों में अभी भी हाथों से ही काम करना पड़ता है।
लकड़ियां खरीदकर लाते है जो सात-आठ रुपये किलो तक मिल जाती है अगर एक बेलन बनाने की कुल लागत देखी जाए तो 12 से 14 रुपये तक होती है पर वह 20 रुपये तक ही बिकता है।
अगर एक दिन में 100 बेलन बनते है तो उसमें परिवार के तीन सदस्यों का सहयोग रहता है एक लकड़ी को छीलता है दूसरा खराद का काम करता है और तीसरा उसे काटने के लिए बुरादा निकालता है, इस कार्य के दौरान लकड़ी के टुकड़े यहां बहुत इकठ्ठे हो जाते है इसलिये यहां महिलाएं चूल्हे पर ही खाना बनाती है।
लीलाबाई ने बताया कि वे पिछले 20-25 वर्षों से यह काम कर रही है उम्र अधिक होने के कारण अब काम कम कर दिया है।
अर्जुन,दीपक,महेश ने बताया कि निकट ही सुलभ कॉम्प्लेक्स है पर वहां के हालात ठीक नहीं है और स्वच्छता भी नहीं है पर कोई ध्यान नहीं देता है।
न्यूज स्रोत:धीरज जॉनसन