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स्त्री की पुरुष होने की चाह सशक्तिकरण नही:रक्षा चौबे

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– शालेय शिक्षा से भावनात्मक सशक्तिकरण हो:प्रीति

सँघर्ष नही सामंजस्य है समाज का आधार:डॉ राघवेंद्र

शिवपुरी से रंजीत गुप्ता की रिपोर्ट

समाज में महिला और पुरुषों के मध्य प्रतिस्पर्धा नहीं समन्वय और सामंजस्य की आवश्यकता है क्योंकि स्त्री का सशक्तिकरण उसके पुरुष होने में नहीं बल्कि अपनी अंतर्निहित क्षमता और कौशल को पूरी प्रामाणिकता के साथ प्रकटीकरण में सुनिश्चित है। यह बात आज चाइल्ड कंजर्वेशन फाउंडेशन इंडिया के 88 वी संगोष्ठी को संबोधित करते हुए सहायक जीएसटी आयुक्त श्रीमती रक्षा दुबे चौबे ने कहीं ।फाउंडेशन कि इस संगोष्ठी में अहमदाबाद से ख्याति प्राप्त कभी और ब्लॉगर प्रीति जैन अज्ञात भी जुड़ी उन्होंने उन्होंने इस बात की आवश्यकता पर जोर दिया कि बचपन से ही हमारी शालेय शिक्षा का स्वरूप ऐसा होना चाहिए जिसमें बच्चों को भावनात्मक रूप से सशक्त बनाने पर जोर दिया जाए ताकि आने वाला भविष्य बहुत ही खुशनुमा रहे।
श्रीमती चौबे ने देशभर से जुड़े बाल एवं महिला अधिकार कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि दुनिया में परिवर्तन सदैव चक्रीय रूप में होते हैं। इसलिए यह ध्यान रखना होगा कि स्त्रीत्व के सशक्तिकरण के अतिशय आग्रह भविष्य में पुरुषों के संरक्षण की अवधारणा को जन्म न देने लगे।उन्होंने कहा कि महिलाओं के लिए आत्मनिर्भरता का आशय स्वावलंबी गुणधर्मों का विकास होना चाहिए।स्त्री खुद के प्रति सचेत होकर स्वज्ञान अर्जित करें औऱ अपनी अंतर्निहित क्षमता, कौशल का उपयोग सुनिश्चित कर आगे बढ़े।श्रीमती चौबे ने स्वअनुशासन एवं स्वअनुभव के गुणों पर भी विस्तार से प्रकाश डाला।श्रीमती चौबे ने कहा कि सत्ता और प्राधिकार पथभृष्ट करते है चाहें इसका प्रयोग स्त्री करे या पुरुष। इसलिए आवश्यकता इस बात है कि सम्यक दृष्टि औऱ आचरण का भान विकसित किया जाए।
प्रीति अज्ञात ने अपने उदबोधन में उस मनोविज्ञान को प्रभावी तरीके से रेखांकित किया जिसने स्त्री और पुरूष के भेद को लोकजीवन का अनिवार्य हिस्सा बनाकर रखा है।उन्होंने कहा कि महिलाओं ने हर मोर्चे पर अतिशय जबाबदेही ओढ़ रखीं इसलिए कुछ धारणाएं निर्मित हो गई है कि पुरुष समाज,परिवार और कामकाजी क्षेत्रों में अलग काम के लिए निर्मित है।श्री मती जैन ने कहा कि घर और घर के बाहर की जबबदेहियों को हमें समन्वय के साथ पुरुषों से साझा करने की संस्क्रति विकसित करनी चाहिये।फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ राघवेंद्र शर्मा ने कहा कि समाज जीवन का विकास स्त्री पुरुष के संघर्ष नही बल्कि सामंजस्य का प्रतिफल है।पश्चमी परिदृश्य के समानांतर भारत में स्त्री विमर्श को खड़ा करने वाले कुछ घटनाओं को जीवन बताने की कोशिश करते है जबकि सच्चाई यह है कि घटनाएं जीवन नही बल्कि जीवन मे घटनाएं होती हैं।उन्होंने कहा कि जिन देशों का दामन ऐतिहासिक रूप से स्त्री सशक्तिकरण में दागदार रहा है वे हमें ज्ञान और दृष्टि देनें की कोशिश करते है।
फाउंडेशन के सचिव डॉ कृपाशंकर चौबे ने कहा कि जीवन सामंजस्य का नाम है औऱ भारतीय जीवन सदैव इसका पक्षधर रहा है कि स्त्री पुरुष अलग इकाई न होकर पूरक है।डॉ चौबे ने मौजूदा परिस्थितियों में शिक्षा को स्त्री सशक्तिकरण का सबसे अहम हथियार बताया।कार्यक्रम का संचालन सुश्री नीतू पांडेय ने किया आभार प्रदर्शन श्रीमती माया पांडेय द्वारा व्यक्त किया गया।इस संगोष्ठी की खासबात यह रही कि इसके समस्त संचालन सूत्र महिला दिवस के उपलक्ष्य में फाउंडेशन की महिला सदस्यों के हाथों में रहे।

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