रिपोर्ट-धीरज जॉनसन, दमोह
दमोह जिले की सीमा से लगभग 25 किमी दूर और पन्ना जिले के अंतर्गत आने वाले गांव उडला के पास दिखाई देती नदी और इसके बीच चट्टानों की बनावट,कुंड,झरने व इन पर बनी पांच पिंडी इस स्थान के महत्व को प्रकट करती है।
प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर और धार्मिक आस्था का यह क्षेत्र उडला और पंडोन के पास स्थित है। नदी के जल का प्रवाह यहां काफी ऊंचाई से नीचे कुंड में गिरता है और छोटे प्रपात का रूप ले लेता है जो बहुत ही खूबसूरत दृश्य उत्पन्न करता है। कई सालों से तेज बहाव के कारण यहां अधिकतर चट्टानें सर्पीली और गोलाकार हो चुकी है और अनेकों प्रकार की आकृतियां परिलक्षित होती है। यहां अलग अलग ऊंची चट्टान पर पांच पिंडिया भी बनी हुई दिखाई देती है।
स्थानीय निवासी श्रीराम चोकरया ने बताया कि अलग अलग स्थानों से गुजर कर आने वाली स्थानीय सुनार,ब्यारमा, अलोनी, पतने, मिडासन, बघने,केन नदियां/धाराएं आपस में मिलकर यहां से निकलती है जो केन के नाम से ही जानी जाती है। चट्टानों पर पांच पिंडी भी दिखाई देती है।यह एक धार्मिक आस्था का स्थल भी है प्रतिवर्ष यहां मेला भरता है।
वैसे तो यह स्थान पन्ना जिले के अंतर्गत आता है परंतु सन 1919 में रायबहादुर हीरालाल द्वारा लिखित दमोह दीपक,गजेटियर में यह स्थान दमोह जिले के उत्तरीय अंतिम ग्राम के नाम जाना जाता है। जहां यह लिखा है
उड़ला, यह दमोह जिले का उत्तरीय अंतिम ग्राम है और चारों ओर पन्ना रियासत से घिरा हुआ है।
यह हटा तहसील में क्यान नदी के किनारे पर है। यहाँ पर एक सुन्दर जल प्रपात है। उस स्थान पर पांच पिंडियां चट्टान काटकर बना दी गई हैं, उनको पांच पंडवा कहते हैं। माघ मास में यहाँ पर १५ दिन मेला भरता है। पन्ना रियासत और हटा तहसील के लोग पंडवों के दर्शन और क्यान में स्नान करने को प्रतिवर्ष जाते हैं । क्यान प्रपात का दृश्य बड़ा मनोहर है। भेड़ाघाट के धुआंधार सा दिखता है । किसी ने इसे देखकर कहा है। “उड़लत उड़ला क्यान जिमि श्वेत दुग्ध की धार । अध धोये खोये गुना होय जगत उजियार” ।