दमोह से धीरज जॉनसन
प्राचीनता के प्रमाण,भग्नावशेष,किले,मठ,तालाब,कला कृतियों से संपन्न इस जिले में चहुँओर ऐतिहासिक महत्व की धरोहर देखने को मिल जाती है जिला मुख्यालय से करीब 50 किमी दूर ग्राम रनेह भी प्राचीनकाल की समृद्धता को प्रदर्शित करता है, जहां पुराने तालाब,मठ,बावड़ी,द्वार और कलाकृतियों के दर्शन होते है इनमें से कुछ तो संरक्षित और कुछ यत्र तत्र भी दिखाई देते है।कहते है कि यहां के तालाब और कुछ गांवों के नाम दमोह और आस पास के ग्रामों में नाम से मिलते जुलते है।
यहां एक मंदिर में काफी मात्रा में प्राचीन मूर्तियां सुरक्षित है और कुछ तालाब के पास रखी दिखाई देती है गांव में बनी पुरानी बावड़ियों को देखकर लगता है कि इनकी काफी समय से सफाई नहीं हुई है जिसमें अब गंदा पानी और कचरा भी दिखाई देने लगा है।एक प्राचीन मठ भी मौजूद है जो दो मंजिला है और पुरातत्व विभाग के अधीन है जिसके सामने भी मूर्तियां रखी हुई है,और तालाब के पास करीब चार पत्थर के शिलालेख भी मौजूद है।
राय बहादुर हीरालाल द्वारा 1919 में लिखित गजेटियर दमोह-दीपक में लिखा है कि हटा तहसील में हटा से ९ मील पर है। दन्तकथा के अनुसार इस को राजा नल ने बसाया था। इसका नाम नलेह पश्चात बिगड़ कर रनेह
पड़ गया।यहां पर बहुत से प्राचीन ध्वंसावशेष हैं। अनेक मूर्त्तियां और कई सती चीरे तमाम गांव और उसके आसपास फैले पाये जाते हैं।
एक प्राचीन मढ़ा सादे पत्थरों का बना हुआ अब भी मौजूद है। इसमें १६ खंभे हैं और यह दो मंजिला है। इसके सामने एक चबूतरे पर ब्रह्मा विष्णु इत्यादि की मूर्त्तियां रक्खी हैं।
सती के एक चीरे में संवत् १७२७ अंकित है और दूसरों में संवत् १८१६ से लेकर १८५७ तक की मिती पड़ी है। यहां पर २१ तलाब और बहुत से कुएं हैं। कहावत है “बावन कुआं चौरासी ताल । तऊ रनेह में पानी को काल ।”
पांच तालाबों के नाम ऐसे हैं जो दमोह के तालाबों के नामों से मिलते हैं। यथा कचौरा, पुरेना, बेला, फुटेरा और धोवा । पहिले तीन दोनों जगह एक ही नाम धारण किये हैं। रनेह में फुटेरा की जगह फूटा और धोबा की जगह धुबनी है। मालूम पड़ता है कि दमोह के तालाबों के नाम रनेह के तालाबों के नाम पर से धराये गये हैं। रनेह दमोह के आगे का बसा ज्ञात होता है।”
न्यूज स्रोत:धीरज जॉनसन