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चैत्र नवरात्रि:: कलश स्थापना से मां होती हैं प्रसन्न

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शक्ति की उपासना का पर्व चैत्र नवरात्र 2 अप्रैल से शुरू हो रहा है। नवरात्र के साथ ही हिन्दू नववर्ष की शुरुआत भी होगी। इस वर्ष नवरात्र पूरे नौ दिनों का है। 9 अप्रैल को अष्टमी तिथि होगी। 10 अप्रैल को दुर्गानवमी या महानवमी है। इसी दिन नवरात्र का समापन होगा।
नवरात्र के समय ग्रहों का संयोग मध्यम ही कहा जाएगा। सभी ग्रहों का युग्म बना रहेगा। मंगल और शनि मकर राशि में, शुक्र और गुरु कुंभ राशि में, सूर्य, बुध और चन्द्रमा सूर्योदय के समय मीन राशि में हैं। राहु मेष राशि में रहेंगे लेकिन सूर्योदय के कुछ देर बाद ही चन्द्रमा औरर राहु एक साथ हो जाएंगे। इस प्रकार आठ ग्रह दो-दो ग्रहों के युग्म में बंट जाएंगे। मकर से लेकर मेष राशि तक सारे ग्रह फैल जाएंगे। राहु और केतु आमने-सामने होते हैं, इसलिए वे युग्म का हिस्सा नहीं हो सकते। सौरमंडल की स्थिति दर्शाती है कि ग्रह सही स्थिति में नहीं हैं। जब ग्रहों का फैलाव चारों तरफ होता है तो संतुलन बनता है। युद्ध चल रहा है, ऐसे में मंगल और शनि का एक साथ होना बड़ी स्थिति को पैदा करता दिखाई दे रहा है। इससे अप्रिय स्थित बनी रहती है। कोरोना की पुनरावृत्ति भी संभव है। ग्रहों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं कही जाएगी।


नवरात्र में मां दुर्गा की पूजा जीवन में सुख समृद्धि और शांति लाती है। कलश स्थापना, जौ बोने, दुर्गा सप्तशती का पाठ करने, हवन और कन्या पूजन से मां प्रसन्न होती हैं। इसमें शक्ति और शक्तिधर दोनों की पूजा होती है। एक तरफ मां दुर्गा की, वहीं दूसरी ओर भगवान राम की भी आराधना की जाती है। मान्यता है कि भगवान राम का जन्म चैत्र शुक्ल नवमी के दिन हुआ था, इसलिए लोक में यह दुर्गानवमी और राम नवमी दोनों के नाम से विख्यात है।
महानिशा पूजा बलिदान के लिए 8 अप्रैल शास्त्रोक्त मान्य रहेगा। इस दिन महानिशा पूजा और देवी के निमित्त बलिदानादिक क्रियाएं संपन्न की जाएंगी। नवरात्र में नौ दिन, सात दिन, पांच दिन, तीन दिन, दो दिन या केवल एक दिन भी व्रत करतें हैं। यह परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है।
कलश की स्थापना चैत्र शुक्ल प्रतिपदा में ही की जाती है। धर्मशास्त्र के अनुसार कलश स्थापन के लिए द्विस्वभाव लग्न और अभिजित मुहूर्त अत्यंत प्रशस्त माना गया है। दो अप्रैल को मीन लग्न (द्विस्वभाव लग्न) प्रातः काल 5:51 से 6:28 बजे तक है। अभिजित मुहूर्त दिन में 11:36 बजे से 12:36 बजे तक है। पुनः दिन में 10:03 से 12:17 बजे तक मिथुन लग्न (द्विस्वभाव लग्न) और अपराह्न 4:48 से 6:10 बजे तक कन्या लग्न (द्विस्वभाव लग्न) है।
भगवती दुर्गा की पूजा करनी हो वहां की मिट्टी को अच्छी तरह से धोकर पवित्र कर लें। स्नानादि के बाद मां दुर्गा के चित्र के सामने, पूर्व अथवा उत्तर मुख होकर कर आसन पर विराजमान हो जाएं। पूजा की समस्त सामग्री तैयार करके रख लें। दाहिने हाथ में पवित्री धारण कर जल, अक्षत, चन्दन, सुपारी और पैसा लेकर संकल्प करें- ‘मम महामाया भगवती प्रीतये आयुर्बलवित्तारोग्यसमादरादि प्राप्तये नवरात्र व्रतंमहं करिष्ये। यह संकल्प करके कलश स्थापना करके षोडशोपचार विधि से पूजन सम्पन्न करें। यदि हो सके तो प्रतिदिन कन्याओं का पूजन भी करें। यदि प्रतिदिन कन्या न उपलब्ध हो अष्टमी या नवमी के दिन ही अर्चन किया जाए।
हिन्दू मान्यता के अनुसार नया वर्ष शुक्ल प्रतिपदा को प्रारंभ होता है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा नव वर्ष के अभिनंदन का पर्व है। पुराणों के अनुसार सृष्टि का आरंभ और सतयुग का आरम्भ भी इसी दिन हुआ था। वर्ष का आरंभ शनिवार से हो रहा है इसलिए वर्ष के स्वामी शनि होंगे। शनि वर्ष के स्वामी होंगे, इसलिए इस वर्ष चुनौतियां व मुश्किलें अधिक होंगी।

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