ग्वालियर। मानव सभ्यता से जुड़े ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थलों के संरक्षण के प्रति जागरूकता के लिए 18 अप्रैल को विश्व धरोहर दिवस मनाया जाता है। ग्वालियर ऐतिहासिक धरोहरों का धनी है, यहां की सभ्यता व संस्कृति प्राचीन है। अब मान सिंह पैलेस ग्वालियर कई ऐतिहासिक रहस्यों को खोलेगा, इसके लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) ने यहां खोदाई शुरू कर दी है। ग्वालियरवासियों को इन रहस्यों को जानने के लिए पांच महीने (सितंबर 2023) इंतजार करना होगा। विशेषज्ञों ने मानसिंह पैलेस के नीचे पुरानी सभ्यता के दबे होने की संभावना जताई है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने मानसिंह पैलेस का सर्वे किया था। मशीनों से किए गए इस सर्वे में संकेत मिले थे कि पैलेस के नीचे प्राचीन इतिहास दबा हुआ है। ग्वालियर की पुरानी संस्कृति क्या थी, मान सिंह पैलेस की जगह पर क्या बसाहट थी, सभ्यता व संस्कृति कैसी थी, लोग कैसे रहते थे? इन सभी रहस्यों से राजफाश होगा। इसके लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण भारत सरकार को क्षेत्रीय कार्यालय भोपाल की ओर से प्रस्ताव भेजा गया था। प्रस्ताव को हरी झंडी मिलने के बाद मान सिंह पैलेस की खोदाई शुरू कर दी गई है। यह खोदाई जब तक जारी रहेगी, तब तक कि जमीन की मूल मिट्टी या पत्थर नहीं निकल आते। अधीक्षण पुरातत्वविद मनोज कुमार कुर्मी का कहना है खोदाई शुरू कर दी गई है, लेकिन अभी हम अंतिम निष्कर्ष तक नहीं पहुंचे हैं।
जानें क्यों खास है मानसिंह पैलेस
इतिहास में मानसिंह पैलेस का निर्माण 15वीं सदी का बताया है, जो राजा मानसिंह तोमर के नाम पर है। इस पैलेस पर राजपूतों का राज रहा है। इसके बाद मुगलों ने राज किया और फिर मराठा राजाओं ने भी राज किया, यह जानकारी इतिहास में क्रमबद्ध है। मानसिंह पैलेस में चार तल हैं, तीसरे तल पर कई कक्ष व आंगन हैं। महल के अंदर एक कारागृह भी है। 15वीं सदी के पहले मान सिंह पैलेस की जानकारी नहीं है।
– मानसिंह पैलेस के पहले व दूसरे तल के नीचे क्या दबा हुआ है, यह खोदाई के बाद पता चलेगा।
– मानसिंह पैलेस पर्यटकों का विशेष आकर्षण का केंद्र है, यहां पर देश-विदेश से बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं।
– किले के संरक्षण का दायित्व मध्य प्रदेश पुरातत्व सर्वेक्षण के पास है।
ग्वालियर धरोहरों का धनी
ग्वालियर ऐतिहासिक धरोहरों का धनी है, इसके आसपास भी धरोहरों की संख्या अधिक है। यहां प्राचीन मंदिर, दुर्ग व गढ़ी बड़ी संख्या में हैं। इन सभी का इतिहास भी काफी रोचक हैं। ग्वालियर की धरोहरें विश्व पटल पर पहचान पा चुकी हैं। यहां ऐतिहासिक धरोहरों के होने से विदेशी पर्यटकों का आकर्षण बढ़ा है।
– बटेश्वर धाम का भी इतिहास जानने के लिए एएसआइ द्वारा सर्वे किया जा रहा है।
ग्वालियर-चंबल संभाग में प्रतिहार कालीन मंदिर हैं। इन मंदिरों में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए सरकार टूरिस्ट सर्किट तैयार कर रही है। इस सर्किट के तैयार होने के बाद ग्वालियर-चंबल संभाग की विश्व पटल पर पहचान होगा। मितावली व पढ़ावली के मंदिर विशेष आकर्षण का केंद्र हैं। हमें भी अपने क्षेत्र की धरोहरों का प्रचार करना चाहिए। विश्व धरोहर दिवस को मनाकर संदेश भी देना चाहिए।
शांतिदेव सिसौदिया, इतिहासकार जीवाजी विश्वविद्यालय
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