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गुरुग्रंथ साहिब को लेकर राजनीति नहीं, ठोस निर्णय हो

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इंदौर ।   सिंधी समाज और सिखों के बीच ग्रंथों को लेकर छिड़ी बहस में फिर नया मोड़ आ गया है। सनातन धर्म सभा में पांच प्रस्ताव सम्मलित करने को लेकर अब सिंधी समाज के किशोर कोडवानी सिंधी कालोनी में शनिवार से धरना देंगे। वे पांच प्रस्तावों को लेकर धरना देंगे। यह मांग पूरे घटना कि न्यायिक जांच करने, एफआरआई नहीं होने व सांसद कि समाज से दूरी कि निंदा, सिंधी धर्म स्थलों मे भगवान झूलेलाल कि मूर्ति जल कलश व अखंडज्योत स्थापना, धर्म स्थल कि आय परमार्थ मे व्यय हो न कि निजी संपत्ति बने, सिंधी विस्थापित/शरणार्थी नहीं सेनानी कहलाए को लेकर है।किशोर कोडवानी के अनुसार विगत 100 वर्षों से सिंधी धर्म स्थलों मे रखे गुरुग्रंथ साहिब विवाद को निहकों ने फिर नया विवाद 18 दिसंबर को बना दिया। सिंधी समाज ने गुरुदारा प्रबंध से संवाद स्थापित किया। प्रबंध कमेटी केंद्रीय कमेटी का निर्णय बताकर विवाद को बढ़ावा दिया। इसकी शिकायत करने पर पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। फलस्वरूप सिंधी समाज ने गुरुग्रंथ साहिब 12 जनवरी को सोपने का निर्णय लिया जिसे गुरूद्वारा प्रबंध कमेटी स्वीकृति प्रदान की। इस बीच नौ जनवरी को राजमहल कालोनी मंदिर से निहक दल ने भगवान की मूर्तियां हटवाई। घटना के 40 दिन बीतने के उपरांत भी कोई ठोस व स्थाई निर्णय नहीं करने व मात्र ओपचारिक सम्मेलन करने पर किशोर दीपक कोडवानी बुनियाद पांच प्रस्तावों को लेकर धरना देने कि घोषणा की है।

भारतीय धर्म, सभ्यता के बाशिंदे

नदियों के किनारे बसने वाले मानवों ने अपनी अपनी सभ्यता, संस्कृति विकसित की। इस क्रम में सिंधु घाटी ने सर्वश्रेष्ठ व पौराणिक पांच हजार से अधिक वर्ष पुरानी सभ्यता स्थापित की। सिंधु नदी के तटों पर स्वअनुशासन के लिए चार धर्म ग्रंथों की रचना की। चारों ग्रंथों में ईश्वर को निराकार मानकर निराकार धर्म आचरण की व्यवस्था बनाई गई है। जिसमें जल-अग्नि को मूलतत्व के रुप में स्थापित किया गया है। गुरुनानक देव जी ने निराकार मान्यता वाले 35 संतों और 167 सिंधी भट-ब्राह्मणों की वाणियों का संकलन किया। जिसे गुरु अर्जनदेव जी ने 419 वर्ष पूर्व गुरु ग्रंथ साहिब के रूप में स्थापित किया। इसकी मूल प्रति महाराजा रंजीतसिहंजी ने हैदराबाद व शिकारपुर के सिंधी पंचों को 230 वर्ष पूर्व सौंपी। संशोधित गुरु ग्रंथ साहिब को 11वीं पातशाही के रूप मे 318 पूर्व गुरू गोविंद सिंह जी में पुनः स्थापित कर सिख धर्म की स्थापना की। सिख धर्म से भी पूर्व सिंधी गुरु ग्रंथ साहिब को मानते आए हैं। साथ ही देवी- देवताओं को पूजते आए हैं।
विभाजन कि परिणीति में सिंधी मुस्लिम लीग व हिन्दू महासभा की धर्म आधारित राष्ट्र अवधारणा को मान्य करते हुए ब्रिटिश सरकार ने पंजाब, सिंध, बंगाल को जोड़कर पाकिस्तान बना दिया। बंटवारे में पंजाब व बंगाल के भाग भारत में शामिल हुए लेकिन बंटवारा सिद्धांत के विपरीत सिंध पूरा पाकिस्तान को दे दिया, जबकि सिंधी नेतृत्व ने अपने किसी अधिकार की मांग न करते हुए देश आजाद हो स्थापित हो गए। इतने बड़े बलिदान के बाद भी सिंधी देश में शरणार्थी कहलाए। पाकिस्तान में नगण्य हिन्दू होते हुए भी तीन सांसद हिन्दू हैं, जबकि भारत में एकमात्र सिंधी सांसद है। उसने भी ऐसे समय पर समाज से बेरुखी की। लिपी, भाषा, कला, नृत्य, गीत, संगीत संस्कृति से लुप्त होता जा रहा है। भाषा आधारित बैभुभागि होने से संवैधानिक मान्यता के उपरांत भी शासकीय सुविधाओं से वंचित है।

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