माघ माह का सनातन धर्म में विशेष महत्व है। इस दिन मास में कई पर्व व त्योहार आते हैं। इसी क्रम में नरक निवारण चतुर्दशी के बाद माघ मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मौनी या माघी अमावस्या का पर्व पड़ता है। इस दिन जप, तप, दान और पवित्र नदियों में स्नान का विशेष महत्व है। इस पवित्र दिन पर मौन व्रत रखकर ईश्वर का ध्यान करके मुनि पद की प्राप्ति की जाती है। अगर ज्यादा देर तक मौन रहना गृहस्थ लोगों के लिए संभव न हो तो पूजा-पाठ करके मौन व्रत तोड़ सकते हैं लेकिन ध्यान रहे कि इस दिन कटु शब्दों का प्रयोग न करें। इस दिन ग्रह-नक्षत्रों की ऐसी दशा बन रही है कि महोदय नामक योग बन रहा है। इस योग में संगम में स्नान और पितरों की पूजा करना शुभ फलदायी माना गया है। शास्त्रों में इस दिन कुछ चीजें ऐसी बताई गई हैं, जिनको नहीं करना चाहिए। ऐसी स्थिति से बचने के लिए कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना होता है, जिससे इस दिन शुभ फल प्राप्त किया जा सके अन्यथा इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। आइए जानते हैं मौनी अमावस्या के दिन कौन सी चीजें न करने के लिए कहा गया है।
मौनी अमावस्या के दिन चंद्रमा के काले साये में नकारात्मक शक्तियां जल्दी जागृत हो जाती हैं, जो इंसान के लिए नुकसानदेय हो सकती हैं। इसलिए इस रात को भूलकर भी सुनसान जगह जैसे श्मशान घाट, कब्रिस्तान या किसी सुनसान जगह के आसपास भी नहीं जाना चाहिए। इस दिन लोग टोने-टोटके भी करते हैं। इसलिए जहां तक हो सके, ऐसी जगहों पर जाने से बचें।
मौनी अमावस्या के पवित्र दिन पर अगर आपके घर कोई मांगने वाला आए तो उसे खाली हाथ न जाने दें। अमावस्या का संबंध न्याय के देवता शनि महाराज और पितरों से माना जाता है। इस दिन बने रहे महोदय नामक दिव्य संयोग पर कोई द्वार पर कुछ मांगने आ जाए तो शनि महाराज की कृपा मानकर उसको आदर पूर्वक दान करें और भोजन कराएं। इस दिन किसी भी गरीब व असहाय का अपमान न करें क्योंकि शनिदेव गरीबों का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनका अपमान करने से शनिदेव की नाराजगी मिलती है।
माघी अमावस्या मुनियों की अमावस्या है, इस दिन व्रत और मौन रखने से मुनि पद की प्राप्ति होती है। इसलिए इस दिन भूलकर भी छल-कपट और धोखा धड़ी नहीं करनी चाहिए। इस दिन साधन और तप करके ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए। माघी अमावस्य के दिन कोई भी विपरित कर्म कई गुना पाप का भागी बना सकता है। इसलिए इस दिन धन-दौलत का घमंड और लोभ न करें।
कौआ, कुत्ता, गाय का संबंध पितरों से माना गया है। शनिदेव के शुभ फलों की प्राप्ति में भी इन्हे सहायक माना जाता है। इसलिए अमावस्या के दिन इनके लिए भी भोजन में से कुछ टुकड़े निकालकर दें लेकिन इनको मारकर न भगाएं। इससे पितरों और शनिदेव की कृपा प्राप्त होती है।
मौनी अमावस्या के दिन सबसे ज्यादा ध्यान वाणी पर रखा जाता है। इस दिन वाणी और मन पर संयम रखना बेहद जरूरी माना गया है। मौनी का मतलब ही चुप रहने से है यानी स्नान से पूर्व कुछ भी न बोलें और इसके अलावा कोशिश करें कि पूरे दिन किसी का कुछ भी न शब्दों और न कर्मों से बुरा करें। वाद-विवाद और झगड़े से दूरी बनाकर रखने। वाणी पर संयम रखना ही इस व्रत का सबसे विशेष हिस्सा है।
मौनी अमावस्या का दिन उपासना का माना जाता है। अगर आप इस पवित्र दिन पर व्रत नहीं भी कर रहे हों तो कम से कम तामसिक भोजन जैसे मांस-मदिरा, लहसुन-प्याज के सेवन से परहेज करें। इस दिन सात्विक भोजन कर मन को पवित्र रखें और बुरी संगत से दूर रहें। लाल किताब के अनुसार, इस दिन तामसिक भोजन करने वाला खुद ही शनि महाराज को अपने सिर पर आने का निमंत्रण देता है अर्थात संकटों को बुलावा देता है।
मौनी अमावस्या के दिन जप, तप और दान का विशेष महत्व है। इस दिन मन पर संयम रखकर ईश्वर का ध्यान किया जाता है और मन को पवित्र रखा जाता है। ताकि पितरों का भी आशीर्वाद प्राप्त हो सके। इसलिए स्त्री और पुरुष दोनों को यौन संबंध बनाने से बचना चाहिए। ऐसा करने से पितृगण नाराज होते हैं और उनकी कृपा से वंचित रह जाते हैं। मौनी अमावस्या को मुनियों की अमावस्या कहा गया है, ऐसा करने से कई तरह के कष्टों का सामना करना पड़ सकता है।