दमोह से धीरज जॉनसन
दमोह। ऐतिहासिक महत्व के किले,भग्नावशेष,शिलालेख,बावड़ी,कुएं, नक्काशीदार आकृतियों से भरपूर इस जिले में आज भी बहुत से प्राचीन स्मारकों को संरक्षण की आवश्यकता है।
शहर में बहुत सी मूर्तियां चबूतरों या पेड़ों के नीचे रखी दिखाई देती है और नक्काशीदार पत्थर भी इनके इर्द गिर्द झाड़ियों में दबे हुए है अगर इन्हे संरक्षित कर दिया जाए तो यह लुप्त होने से बच जाएंगे।
स्थानीय फुटेरा तालाब जिसमें 1879 में टॉमसन साहब डिप्टी कमिश्नर ने सुधार कार्य किए थे इसके आस पास विष्णु वराह सहित एक चबूतरे में प्राचीन मूर्तियां दिखाई देती है एवं पास ही नक्काशीदार पत्थर भी है पुरातात्विक महत्व के इस स्थल को और अधिक संरक्षित भी किया जा सकता है
राय बहादुर हीरालाल द्वारा 1919 में लिखित गजेटियर दमोह-दीपक में भी इसका जिक्र मिलता है इसमें लिखा है कि दमोह में बहुत सी मूर्त्तियाँ कहीं कहीं चबूतरों या पेड़ों के तले इकट्ठी की हुई दिखाई पड़ती हैं। फुटेरा तालाब पर जो संग्रह है वह प्रक्षेणीय है,विशेषकर विष्णु और शिव पार्वती की मूर्तियाँ । यहाँ पर जो वराह की मूर्ति है वह नौहटा से लाई गई है। जिले साहब के बगीचे में भी बहुत से खुदावदार पत्थर रक्खे हैं। उन्हीं के बंगले में वृक्षों के नीचे शिलालेख पड़े हैं परंतु अब यहां शिलालेख दिखाई नहीं देते है।
स्थानीय निवासी नित्या प्यासी ने बताया कि यहां काफी मात्रा में प्राचीन धरोहर,मूर्तियां,नक्काशीदार पत्थर है जो खुले में पड़े हुए है कुछ चोरी भी हो गए है जिन्हे संरक्षित किया जाना चाहिए।
“भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा यह स्थान संरक्षित स्मारक की श्रेणी में सम्मिलित है इर्द गिर्द स्थानों से प्राप्त मूर्तियों को एकत्रित किया गया है,इन प्राचीन कृतियों को भी संरक्षित किया जा सकता है व स्टोर एवं प्रदर्शन की श्रेणी में रखा जा सकता है”
-डॉ सुरेंद्र चौरसिया मार्गदर्शक रानी दमयंती पुरातत्व संग्रहालय,दमोह
न्यूज स्रोत:धीरज जॉनसन