आलेख
अरुण पटेल
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब से तीसरी बार सत्ता संभाली है और भाजपा के अल्पमत में होने के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की बैसाखियों पर आरूढ़ होकर जो अपनी सरकार का पहला पूर्ण बजट लाने का संकेत दिया है उसमें उन्होंने राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू के अभिभाषण में यह दावा कराया है कि भारत को ज्ञान की महाशक्ति बनायेंगे तो वहीं दूसरी ओर कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने राष्ट्रपति के अभिभाषण पर मीडिया से चर्चा करते हुए जो प्रतिक्रिया दी है उससे देश की राजनीति में एक नया विवाद खड़ा हो गया है और भाजपा और कांग्रेस एकदम से आमने-सामने आ गये हैं। यहां तक कि मोदी और सोनिया भी एक-दूसरे से सीधे-सीधे टकराने की मुद्रा अख्तियार किये हुये नजर आये हैं।
शुक्रवार 31 जनवरी को मीडिया से चर्चा करते हुये सोनिया गांधी ने कहा कि अंत तक राष्ट्रपति बहुत थक गई थीं और वह बड़ी मुश्किल से बोल पा रही थीं। इसमें नई रंगत लाते हुये लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने राष्ट्रपति के अभिभाषण को बोरिंग बता डाला। भाजपा को तो बस मानो एक अवसर की तलाश थी और जैसे ही उसे कोई ढीली-ढाली गेंद मिलती है तो वह छक्का मारने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देती और कांग्रेस पर पूरी ताकत से चढ़ाई कर देती है। भाजपा ने इसे तत्काल आदिवासी के अपमान से जोड़ दिया और उसने आरोप लगाया कि कांग्रेस के नेताओं ने आदिवासी महिला राष्ट्रपति का अपमान किया है और इसके साथ ही उसने एक नया मुद्दा बना डाला। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा का कहना था कि राष्ट्रपति के लिए जानबूझकर ऐसे शब्दों का प्रयोग किया गया है जो कांग्रेस की अभिजात्य, गरीब और आदिवासी विरोधी प्रकृति को दर्शाता है। कांग्रेस राष्ट्रपति और आदिवासी समुदाय से बिना शर्त माफी मांगे। लोकसभा सदस्य और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने स्थिति को संभालते हुए कहा कि मेरी माँ 78 साल की हैं और राष्ट्रपति का सम्मान करती हैं। उनका राष्ट्रपति का अपमान करने का इरादा नहीं था। उनके बयान को तोड़-मरोडक़र प्रस्तुत किया गया है। सोनिया के खिलाफ सीधे-सीधे मोर्चा प्रधानमंत्री मोदी ने खोला और दिल्ली के चुनावी मैदान में यह टिप्पणी सोनिया गांधी और राहुल गांधी के बिना नाम लिए की कि ‘कांग्रेस के शाही परिवार को आदिवासी दलित, पिछड़े गरीब लोगों को आगे बढ़ाना कतई पसंद बर्दाश्त नहीं है और अपमान करना उनकी आदत है।’ मोदी ने दिल्ली के द्वारिका में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए टिप्पणी की और उन्होंने कांग्रेस की एक प्रकार से घेराबंदी की। उन्होंने ‘एक्स’ पर लिखी एक पोस्ट में यह भी लिखा कि कांग्रेस का ‘शाही परिवार को राष्ट्रपति के साथ ही हमारे गरीब भाई-बहिनों, एससी-एसटी और ओबीसी समुदाय से माफी मांगना चाहिये’, यहां तक कि सोनिया गांधी की बात राष्ट्रपति को भी चुभ गई और राष्ट्रपति भवन से एक बयान जारी हुआ जिसमें कहा गया कि कांग्रेस के नेताओं की ऐसी टिप्पणियां स्पष्ट रूप से उच्च पद की गरिमा को ठेस पहुंचाती हैं, और अस्वीकार है। हाशिये पर पड़े समुदायों, महिलाओं और किसानों के लिये बोलना कभी भी थकाने वाला नहीं हो सकता। यह नेता हिंदी जैसी भारतीय भाषाओं के मुहावरे और संभाषण से परिचित नहीं हैं, ऐसी टिप्पणियां दुर्भाग्यपूर्ण हैं।
18वीं लोकसभा के बजट सत्र के पहले दिन राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने संसद के दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन में लगभग 59 मिनिट का भाषण दिया और उनके इस अभिभाषण पर कांग्रेस नेताओं की टिप्पणी ने विवाद पैदा कर दिया। टिप्पणियां सदन के बाहर लेकिन संसद परिसर में की गई थीं। संसद परिसर में ही सत्र शुरू होने के पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विपक्ष पर भी निशाना साधा और कहा कि 10 सालों में यह पहला सत्र है जब कोई विदेशी चिंगारी नहीं सुलगी। हमारे देश में कई लोग इन चिंगारियों को हवा देने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते, वे हमेशा तैयार रहते हैं। विरोधियों पर तंज कसते समय मोदी ने कहा था कि 2014 से लेकर अभी तक का यह पहला संसद सत्र है जब संसद शुरू होने से पहले विदेशी चिंगारी नहीं सुलगी और यहां के लोगों ने उसे हवा नहीं दी। मैं कह सकता हूँ कि 10 साल में यह पहला सत्र है जिसमें किसी विदेशी ताकत ने आग लगाने की कोशिश नहीं की।
दिल्ली के नतीजों पर सबकी नजर
5 फरवरी को दिल्ली में विधानसभा चुनाव के लिये मतदान होने वाला है और इसके परिणामों पर सत्ता पक्ष-विपक्ष दोनों ही अपनी-अपनी नजरें गड़ाये हुये हैं और इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि ये चुनाव परिणाम किस दिशा में जाते हैं। सत्ता पक्ष को इस बात का इंतजार है कि दिल्ली में केजरीवाल यदि चुनाव जीतते हैं तो विपक्ष एकजुट होकर और अधिक हमलावर होगा इसके साथ ही विपक्ष में कलह भी होगी क्योंकि केजरीवाल और राहुल गांधी दोनों ने ‘इंडिया ब्लाक’ में होते हुए भी एक-दूसरे पर तीखा हमला बोला । यदि केजरीवाल हार जाते हैं तो इससे इस बात की पुष्टि होगी कि प्रधानमंत्री मोदी जिस दिशा में देश को आगे बढ़ाना चाहते हैं उस पर देश की राजधानी के मतदाताओं ने भी अपनी मोहर लगा दी है। वे अधिक उत्साह के साथ अपनी योजनाओं को आकार देने में जुट जायेंगे तो वहीं दूसरी ओर यदि केजरीवाल दिल्ली में जीत जाते हैं तो ‘इंडिया गठबंधन’ में शामिल दलों का हौसला बढ़ेगा और उन्हें लगेगा कि लोकसभा चुनाव में भाजपा के पिछडऩे का जो सिलसिला जो आरंभ हुआ था वह अभी भी कमोबेश जारी है। क्योंकि दिल्ली का चुनाव भाजपा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चेहरे को आगे रखकर ही लड़ रही है। जबकि यदि दिल्ली में भाजपा को अपेक्षित सफलता नहीं मिलती है तो फिर इंडिया गठबंधन के नेता इसी साल के अंत में होने वाले बिहार विधानसभा के चुनाव में अधिक जोशखरोश के साथ उतर सकेंगे क्योंकि वहां पर तो महागठबंधन बना हुआ है जिसमें इंडिया गठबंधन में शामिल दलों के अलावा कुछ अन्य दल भी शामिल हैं जो वामपंथी रूझान रखते हैं। केजरीवाल की जीत और हार का अपना राजनीतिक महत्व है जिस पर सबकी निगाहें लगी हुई हैं। फरवरी के बाद इन नतीजों का देश के रजनीतिक फलक पर असर पड़ेगा ही।
यह भी…
केंद्रीय चुनाव आयोग पर भी केजरीवाल ने हमला बोल दिया है और चुनाव आयोग ने भी उनसे सबूत मांग लिये हैं। यमुना के जहरीले पानी के आरोप के मामले में आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने यहां तक कह डाला कि दिल्ली की किसी एक सीट से वे चुनाव लड़ लें। केजरीवाल जब बोलते हैं तो फिर बोलते जाते है और आरोप लगाते हैं तो फिर आरोप लगाते जाते हैं। उनका कहना था कि राजीव कुमार सेवा निवृत्त होने के बाद की नौकरी तलाश रहे हैं इसलिये वह राजनीति कर रहे हैं। राजीव कुमार ने यमुना के पानी में जहर मिलाने के सबूत केजरीवाल से मांगे हैं।
-लेखक सुबह सवेरे के प्रबंध संपादक हैं
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