आलेख
हरीश मिश्र
ना गीता पर, ना कुरान पर हाथ रखता हूं, ना ही संविधान की लाल किताब हाथ में रखता हूं। हां, मैं हाथ में कलम लेकर ,पिछले 365 दिन, 8760 घंटे में जो कुछ देखा, उस सच को अखबार के पन्नों पर लिखने की कोशिश कर रहा हूं। जबकि बहुत मुश्किल है, साल भर की अश्कों की कहानी का सच लिखना।
जानकीवल्लभ, त्रिलोक रक्षक भगवान राम को अयोध्या में पांच सौ साल बाद प्राणप्रतिष्ठा होने पर,”प्रबलप्रताप कोसलनाथ श्रीरामचंद्र जी की जय हो” का दिव्य घोष और गांव-गांव में आनंद देखा ।
भारतीय लोकतंत्र के गले पड़े युवा शहजादे, मुलायम देहधारी सुत, बंगाल मोहिनी ममता और हैदराबाद की टोपी, राम विमुखों को अट्टहास करते देखा।
भारत की माटी के लाल , राम रथी लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न से सम्मानित और दिव्य आत्मा पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, अनमोल रत्न रतन टाटा,ग़ज़ल गायक पंकज उधास, तबला के उस्ताद जाकिर हुसैन का दिव्य लोक गमन देखा।
ढाका में नारी का अपमान होते देखा।यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता: की पवित्र माटी हिंदुस्तान में ईमान वाले मजहब की बेटी हसीना को शरण देते और दो संस्कृतियों के अंतर को देखा।
प्रधानमंत्री मोदी की विदेश यात्राओं से काला धन वापस नहीं आया, लेकिन भारत को आर्थिक समृद्धि प्राप्त होते और विश्व गगन में तिरंगा ऊंचा होते देखा।
भागवत कथा में मोहन को हर मस्जिद के नीचे शिवालय न ढूंढने की सलाह और हिंदुओं को तीन बच्चे करने की नसीहत देते देखा।
जात-पात की विदाई का जय घोष करते, बाल संन्यासी को छोटे-छोटे कदमों से पदयात्रा करते, सनातन विरोधियों की ठठरी बांधते देखा।
हमारे लोकतंत्र का यह हाल हुआ कि स्वार्थपरता, सत्ता लिप्सा और भ्रष्ट आचरण ही लोकतंत्र का उत्सव बन गया। लोकसभा चुनाव में कुछ इच्छाधारी, दिग्गज राजनेताओं को सार्वजनिक संवाद की गरिमा गिराते और जुबां से जुबां तक जहर उगलते देखा। रामचरित मानस में सच लिखा है “जानि न जाइ निसाचर माया”… भारतीय नेताओं की माया को कोई नहीं जान नहीं पाया। यह इच्छा अनुसार रुप बदलते हैं।
ऊंचे पद पर बैठे गुजराती लाला को मंगलसूत्र, मटन और मुजरा जैसी हल्की टिप्पणी करते , औवेसी के गले में जिन्ना बैक्टीरिया का प्रकोप और भले मानुष को खटाखट महिलाओं के खातों में पैसा आने का भरोसा दिलाते देखा।
छप्पन इंच के सीने को तीसरी बार छप्पन भोग खाते, शपथ लेते देखे। भाजपा को वैशाखी पर चलते देखा। समाजवादी खानदान के उत्तराधिकारी , राष्ट्रीय विरासत के नाती को साइकिल पर बैठकर उत्तर प्रदेश में साइकिल दौड़ाते देखा।
भाई के हाथों में लाल किताब , होंठों पर अंबेडकर का नाम और बहन के कांधे पर फिलिस्तीनी झोला देखा ।
अनुराग ठाकुर की जीभ को सदन में खूब उत्पात मचाते देखा।
पूरे साल धार्मिक, मजहब के आधार पर ध्रुवीकरण देखा। उन्मादी भावनाओं का ज्वार उफान पर देखा। हर हिंदू को हर मुसलमान ने और हर मुसलमान को हर हिंदू ने संदेह की निगाह से देखा। योगी को बंटोगे तो कटोगे और मोदी को एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे का नारा लगाते देखा।
मंदिर-मस्जिद से लाउडस्पीकर उतरते देखे।तिरुपति मंदिर में प्रसाद के लड्डू में चर्बी मिलाने की खबरें और भोले बाबा उर्फ नारायण सरकार के चरणों की रज लेने के लिए भक्तों का सैलाब उमड़ते हाथरस में देखा। ख्वाब सब बिखर गए… अधूरी कहानी दफन होते देखी… अंधविश्वास की चौखट पर…आस्था को दम तोड़ते और सरकार को अधिकारियों की लापरवाही पर कफ़न ढांकते देखा।
आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया के विशेषज्ञों को बनारस , भोजशाला , संभल के पाषाण में हिन्दू-मुस्लिम इतिहास के साक्ष्य ढूंढते देखा। बहराइच, हल्द्वानी और संभल को धधकते और राजा छत्रसाल की नगरी में बुलडोजर से अपराधियों के हौसले टूटते देखा। सुप्रीम कोर्ट ने बुल्डोजर विध्वंस से मौलिक अधिकारों का उल्लघंन देखा। कोलकाता के आर.जी. मेडिकल कॉलेज की प्रशिक्षणार्थी डॉक्टर के दुष्कर्म और हत्या पर ममता की कठोरता, सड़कों पर कोहराम और सुप्रीमकोर्ट की फटकार देखी।केरल के वायनाड में मानवीय त्रासदी देखी।
किसानों को आंदोलन करते , रावण को संसद से सड़कों पर देखा। जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस को सत्ता में आते और रियासी जिले में आतंकी हमले देखे। बंसीलाल, भजनलाल के हरियाणा में कांग्रेस को सड़क पर और भाजपा की हर हर गंगे देखी।
महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस को फड़ पर बैठते और एक नाथ शिंदे को बासी चावल का मुंबई पुलाव बनाते देखा।
अजीत पवार को कांग्रेस में रहते बेनामी संपत्ति कमाते और भाजपा के समर्थन से स्वच्छता अभियान का ब्रांड एंबेसडर बनते देखा।
राष्ट्रीय खांसी पुरुष को जेल में गीता-रामायण -इंसुलिन मांगते, जेल जाते, बाहर आते, छलिया सत्ता का विसर्जन और आतिशी को मुख्यमंत्री बनते देखा।
सेक्स स्कैंडल के अपराधी प्रज्जवल पर भाजपा प्रवक्ताओं को चुप्पी साधते देखा।पुणे हादसे में नशे में लग्जरी कार से दो लोगों की जान लेने वाले नाबालिग को
माननीय न्यायाधीश द्वारा निबंध लिखने की सजा सुनाते देखा।
सुप्रीम कोर्ट में बाबा रामदेव और बाल कृष्ण को योग करते, माफ़ी मांगते देखा। मन की बात सुन गुमनामी चंदा देने वालों ने इलेक्टोरल बॉन्ड से दान देकर दीनदयाल के वंशजों को मालामाल होते देखा। वक्फ बोर्ड संशोधन बिल पर टोपी और टीके में तकरार देखी।
संसद सत्र में हमारे जनप्रतिनिधि स्वतंत्रता को स्वछंदता समझते, हर दिन लोकतंत्र के कपड़े फाड़ते, धक्के देते देखा। निर्मल हृदय को कठोर निर्णय लेते, पॉपकॉर्न पर अलग अलग जी एस टी लगाते देखा।
रस्म ही अदा करना हो तो हम बेशक नये साल का स्वागत कर सकते हैं।
पिछले साल भी राजनेताओं ने मूल्यहीन,आस्थाहीन और दिशाहीन पगडंडियों से संसद भवन तक की यात्रा की है। पूरी उम्मीद है कि 2025 में भी ऐसा ही करते रहेंगे।
लेखक – स्वतंत्र पत्रकार हे।