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भारतीय ज्ञान परम्परा सबसे प्राचीन है जो विश्व मे आज भी प्रासंगिक है -डा.ए.डी.एन वाजपेयी

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भोपाल।विश्व मे सबसे प्राचीन और समृद्ध भारतीय ज्ञान परम्परा है ,अमेरिका और ब्रिटेन की अपनी कोई मौलिक ज्ञान परम्परा नही रही .विश्वविद्यालयों की अवधारणा का विकास भारत से ही हुआ है .आधुनिक संदर्भों में भारतीय ज्ञान परम्परा प्रत्येक प्राणी और पूरे विश्व कल्याण के लिए है.इसमें नैतिकता और समृद्धि का साथ साथ समावेश है.उक्त विचार डा.ए डी एन वाजपेयी कुलपति अटलबिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय बिलासपुर छत्तीसगढ़ ने अपने कीनोट एड्रेस में तथा डा रितु तिवारी विभागाध्यक्ष अर्थशास्त्र दयानंद आर्य कन्या महाविद्यालय नागपुर महाराष्ट्र ने विषय विशेषज्ञ के रुप में व्यक्त किए


बाबूलाल गौर शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय भेल भोपाल में उच्च शिक्षा म.प्र.शासन द्वारा प्रायोजित तथा महाविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग द्वारा आयोजित “आधुनिक संदर्भ में भारतीय ज्ञान परम्परा” विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय वेबीनार आयोजन किया गया.वेबीनार संयोजक डा. समता जैन ने बताया कि इस अवसर पर कीनोट (बीज वक्तव्य) एड्रेस करते हुए मुख्य वक्ता अटलबिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय बिलासपुर के कुलपति डा.ए.डी एन. वाजपेयी ने कहा कि विश्व मे सबसे प्राचीन और समृद्ध भारतीय ज्ञान परम्परा है,अमेरिका और ब्रिटेन की अपनी मौलिक कोई ज्ञान परम्परा नही रही .भारत सदैव से ज्ञान प्राप्ति का केन्द्र रहा है विश्वविद्यालयों की अवधारणा का विकास भारत से ही हुआ.नालंदा में विश्व भर से अध्ययन करने लोग आते थे.अंग्रेजों ने हमारी शिक्षा व्यवस्था ध्वस्त की है .आज समय की आवश्यकता है कि हमारी शिक्षा भारत को ग्लोबल सुपर पावर बनने मे सहायक हो ,राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 इस दिशा में सक्रिय भूमिका निभा रही है ,विद्याथिर्यों का समाज से सीधा सरोकार होना चाहिए तथा सभी में आत्मप्रेरणा से दायित्व निर्वहन की परम्परा का विकास होना जरुरी है,हमारे वेद पुराणों की शिक्षाएं आज भी प्रासंगिक है ,जीवन की प्रत्येक चुनौतियों का सामना करने का साहस प्रदान करतीं हैं. ज्ञान और परंपरा के बीच में अगर कोई तालमेल है तो प्रकृति के माध्यम से ही बैठाया जा सकता है . ऋग्वेद, यजुर्वेद ,सामवेद और आर्थर वेद चारों वेदों का जिक्र करते हुए यज्ञ की उपयोगिता समझाई , महाभारत, गीता, कालिदास ,गुरुग्रंथ साहिब रसखान ,कबीर के दोहों के महत्व बताते हुए उन्होंने परंपराओं बात की. आज हमारा देश विश्व गुरु बनने की सामर्थ रखता है जी-20 के उद्घाटन अवसर पर वसुदेव कुटुंबकम की धारणा की जब बात की गई तो इससे विदित होता है कि भारतीय ज्ञान परम्परा का आधुनिक संदर्भों में भी पालन हो रहा है आगामी सत्र में विभागाध्यक्ष अंग्रेजी डा इलारानी श्रीवास्तव द्वारा विषय विशेषज्ञ -डा.रितु तिवारी विभागाध्यक्ष अर्थशास्त्र दयानंद आर्य कन्या महाविद्यालय नागपुर महाराष्ट्र का परिचय देते हुए उन्हे उद्बोधन के लिए आमंत्रित किया .

डा रितू तिवारी ने अपने उद्बोधन में बताया कि भारतीय ज्ञान परम्परा हमेशा से पूरे विश्व के कल्याण के लिए रही है जो सभी प्राणियों को नमन करती है .वसुदेव कुटुंबकम की पक्षधर रही है जिसमे नैतिकता और समृद्धि के साथ साथ एक परिवार, एक राष्ट्र, एक पृथ्वी की अभिकल्पना का समावेश है .जो हमारा है वो सबका है .आधुनिक समय में अर्थशास्त्रियों को इन कसौटियों को परखना चाहिए.अर्थशास्त्र को कौटिल्य के अर्थशास्त्र की समग्रता से जोड़ते हुए बताया कि इंक्लूसिव ग्रोथ आज कितना भी हो जाए लेकिन मंदिर में दिए हुए दान से जो विकास किया जा सकता है उसके सामने किसी विकसित देश का भी ग्रोथ नहीं टिकती है डा तिवारी ने 10 सूत्रों श्लोक के माध्यम से वैदिकता नैतिकता और समर्पण की बात की है उन्होंने न्यूयॉर्क का उदाहरण देकर यह बताया कि किस प्रकार मुफ्त में मिलने वाली चीज से कभी भी व्यक्ति विकास नहीं किया जा सकता .वेबीनार के प्रारंभ में प्राचार्य डा.संजय जैन ने कुलपति डा एडीएन वाजपेई और डा रितु तिवारी विभागाध्यक्ष अर्थशास्त्र का स्वागत करते हुए महाविद्यालय का सौभाग्य माना कि उन्हें न केवल राष्ट्रीय वरन अंतर्राष्ट्रीय स्तर के विद्वानों से भारतीय ज्ञान परम्परा जानने का अवसर मिल रहा है .विभागाध्यक्ष डा .सीमा श्रीवास्तव एवं प्रो.प्रतिभा डेहरिया ने महाविद्यालय और अर्थशास्त्र विभाग का परिचय दिया.आभार डा .मीता बादल ने व्यक्त किया .

 

इस अवसर पर चयनित शोधार्थियों द्वारा अपने शोधपत्र का वाचन किया गया .इस राष्ट्रीय वेबीनार का कुशल संचालन करते हुए संयोजक डा समता जैन ने उच्च शिक्षा विभाग द्वारा इस महाविद्यालय को यह वेवबीनार आयोजन का अवसर किए जाने पर उच्च अधिकारियों सहित क्षेत्रीय अतिरिक्त संचालक डा.मथुरा प्रसाद एवं जनभागीदारी अध्यक्ष माननीय श्री बारेलाल जी अहिरवार को कृतज्ञता ज्ञापित की. तथा बताया कि हिमाचल प्रदेश,हरियाणा ,पंजाब,उत्तराखंड,उत्तर- प्रदेश,छत्तीसगढ़ ,महाराष्ट्र ,केरल,आंध्रप्रदेश तथा मध्यप्रदेश सहित 10 राज्यों से 240 शिक्षाविदों और शोधार्थियों ने इसमें सहभागिता कर शोध पत्र प्रस्तुत किए हैं.जिनका प्रकाशन किया जा रहा है.

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