धीरज जॉनसन की रिपोर्ट
दमोह:मानव सभ्यता के प्रारंभिक काल से मनुष्य ने शत्रुओं और प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिए पत्थरों की दीवार का निर्माण किया जिसने बाद में वृहद प्राचीर का रूप लिया जिसके साक्ष्य भी उपलब्ध होते है। प्रदेश में ऐतिहासिक युग में निर्मित किले सुरक्षा की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण हैं।
दमोह में भी अनेक किले विद्यमान हैं, जो पहाड़ी की मुरम और लाल बलुआ पत्थरों से निर्मित है इसी कारण यहां बड़े किलों का निर्माण संभव हुआ।जिले के हटा तहसील के ग्राम भिलौनी के पास भी एक प्राचीन किला दिखाई देता हैं जो खंडहर में तब्दील तो हैं पर जिले के अन्य जिलों की अपेक्षा अभी भी सुरक्षित है।
कहा जाता है कि इसे फतहसिंह ने 1643 में बनवाया था,जहां चूना निर्मित पत्थरों से दीवार और द्वार बने हैं गुंबज/बुर्ज और छत कुछ- कुछ सुरक्षित है मुख्य द्वार के भीतर काफी बड़ा खुला स्थान,सुरक्षा कक्ष, चौड़ी प्राचीर और एक बावड़ी भी दिखाई देती है जो चौथी मंजिल से देखने पर बहुत खूबसूरत दिखाई देती है अगर इसे साफ कर दिया जाए तो यहां पानी भी मिल सकता है दीवार और झरोखों का निर्माण सुंदर ढंग से किया गया है बाहर की ओर कुछ दूरी पर एक नाला भी दिखाई देता हैl
स्थानीय लोगों ने बताया कि अगर यहां छोटा पुल बन जाए तो किले तक जाना आसान हो जाएगा। पर आश्चर्य है कि पुरातत्व विभाग के अधीन होने के बावजूद यहां पहुंच मार्ग नहीं है ऊबड़~खाबड़ रास्तों से होकर वहां पहुंचना पड़ता है बारिश में वह भी बंद हो जाता है,
परिसर में स्वच्छता है जिसे देख कर लगता है कि इस संरक्षित स्मारक की साफ सफाई तो की जाती है परंतु दुर्गम मार्ग होने के कारण लोगों का यहां आना कम है।
यहां के चौकीदार भल्लू पटेल का कहना था कि विभाग की ओर से इसका नाम जटाशंकर किला है पर इसे भिलौनी का किला भी कहा जाता है वर्षो पहले यहां जंगल था बाद में विभाग द्वारा सफाई की गई किले में आने के लिए रास्ता नहीं है बारिश में तो तैर कर और चट्टानों को पकड़ पकड़ के यहां पहुंचना पड़ता है प्रतिवर्ष यहां मेला भरता है।
“ऐतिहासिक महत्व का स्थल है और आज भी बेहतर अवस्था में है परंतु पहुंच मार्ग की कमी है बारिश के मौसम में जाना कठिन है,अगर यहां गेट,फैंसिंग और पेयजल की व्यवस्था हो जाए तो पर्यटकों की संख्या में इजाफा हो सकता है”
डॉ सुरेंद्र चौरसिया मार्गदर्शक,रानी दमयंती पुरातत्व संग्रहालय, दमोह
न्यूज स्रोत:धीरज जॉनसन