धीरज जॉनसन की रिपोर्ट
दमोह शहर से करीब 10 किमी दूर ग्राम खबेना के अंतर्गत आने वाला सड़क विहीन आदिवासी टोला,जिसे यहां हड़ारी भी कहते है वह आज भी पक्की सड़क के इंतजार में पगडंडियों के सहारे पैदल शहर की ओर आता है जहां खतरा हमेशा विद्यमान रहता है।
करीब 125 की जनसंख्या वाले इस टोला में पहुंचने के लिए लगभग दो किमी तक पैदल चलना पड़ता है क्योंकि उबड़ खाबड़, पथरीले और खेतों की मेढ़ के कारण साइकिल और वाहन का चलना यहां मुश्किल है जिसका दर्द यहां के लोगों में झलकता है।
एक प्रायमरी स्कूल भी यहां दिखाई देता है जहां वर्तमान में 26 बच्चे पढ़ते है जिनमें से अधिकांश के पैरों में जूते-चप्पल दिखाई नहीं देते।
ग्रामीणों के साथ साथ स्कूल आने वाले शिक्षक को भी यहां से दो किमी पहले अपना वाहन रखकर पैदल आना पड़ता है पर इस रास्ते से आना भी जोखिम भरा काम है क्योंकि छोटी पहाड़ी और पानी से भरे गड्ढों के बीच से आने पर जहरीले जीव जंतुओं से सामना भी होता है। इस टोला में सड़क-नाली दिखाई नहीं देते और शौचालय शायद ही खोजने पर दृष्टव्य हों। कुछ कुटीर अवश्य दिखाई देती है।
यहां के भगवानसिंह, जगमोहन, कल्याण,मूरत ने बताया कि ग्राम पंचायत बासनी के अंतर्गत आने वाले इस टोला से 2 किमी दूर पक्का मार्ग मिलता है पर वहां तक जाने के लिए पहाड़ और खेतों के किनारे से जाना पड़ता है यहां तक कि साइकिल भी नहीं चल सकती।अगर कोई बीमार हो जाए तो खटिया पर ले जाना पड़ता है।
अस्पताल,बाजार पांच किमी दूर है। यहां करीब दो हैंडपंप है परंतु कुंआ नहीं है।
प्राथमिक शाला के शिक्षक बलराम ने बताया 26 बच्चे प्रवेशित है,सड़क नहीं है बच्चे दूर से आते है बारिश के समय खेतों,मेड़ों से आते समय जहरीले जीव जंतु मिलते है स्कूल में बाउंड्री भी नहीं है।अधिकतर श्रमिको के बच्चे है, जिनके पास जूते – चप्पल नहीं रहते है।
शिक्षक भी छह किमी दूर से आते है पर दो किमी पैदल चलना पड़ता है।हायर सेकेंडरी स्कूल दूर होने के कारण कुछ बच्चे आठवीं के बाद पढ़ाई छोड़ देते है।ग्रामीण सुविधाओं के इंतजार में वक्त व्यतीत कर रहे है।
न्यूज स्रोत:धीरज जॉनसन