पूर्वांचल में गंगा नदी के किनारे बसे मिर्ज़ापुर से 8 किमी दूर विंध्याचल की पहाड़ियों में मां विंध्यवासिनी का मंदिर है। ये 51 शक्तिपीठों में से एक है। इसे जागृत शक्तिपीठ माना जाता है। शिव पुराण में मां विंध्यवासिनी को सती माना गया है तो श्रीमद्भागवत में नंदजा देवी कहा गया है। मां के अन्य नाम कृष्णानुजा, वनदुर्गा भी शास्त्रों में वर्णित हैं। शास्त्रों में इस बात का भी उल्लेख मिलता है कि आदिशक्ति देवी कहीं भी पूर्णरूप में विराजमान नहीं हैं।
विंध्याचल ही ऐसा स्थान है जहां देवी के पूरे विग्रह के दर्शन होते हैं। देवी को उनका नाम विंध्य पर्वत से मिला और विंध्यवासिनी नाम का शाब्दिक अर्थ है, वह विंध्य में निवास करती हैं। जैसा कि माना जाता है कि धरती पर शक्तिपीठों का निर्माण हुआ, जहां सती के शरीर के अंग गिरे थे, लेकिन विंध्याचल वह स्थान और शक्तिपीठ है, जहां देवी ने अपने जन्म के बाद निवास करने के लिए चुना था।
3 बार रूप बदलती हैं माता
मां विंध्यावासनी की दिन में 4 बार आरती की जाती है। इन चारों आरती का अपना अलग महत्व है। प्रथम आरती सुबह होती है, जिसमें माता का श्रृंगार बाल रूप में होता है। दोपहर में होने वाली आरती में माता के यौवन रूप के दर्शन होते हैं। शाम और रात के समय की जाने वाली आरती में माता के वृद्धावस्था स्वरूप की पूजा की जाती है।