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बिलासपुर के लिए गौरव की बात,कारसेवा में शामिल हुईं मां और बेटी

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बिलासपुर। शहर के लिए यह गौरव की बात है कि विश्वहिन्दू परिषद के आह्वान पर 30 अक्टूबर 1990 को अयोध्या में आयोजिक कारसेवा में मां-बेटी दोनों ने अपनी सहभागिता निभाई। जानकी और आरती ये दो ऐसे नाम हैं जो बिलासपुर संभाग के कारसेवकों के साथ ही विहिप,भाजपा और संघ परिवार से जुड़े कार्यकता्रओं के लिए गर्व करने वाली बात है। पहली कारसेवा में जब जानकी अयोध्या जाने के लिए तैयार हो रही थी तब उ आरती भी साथ जाने की जिद पर अड़ गई। अयोध्या में जुटने वाली भारी भीड़ और उत्तरप्रदेश में अपनी विचारधारा से विपरीत समाजवादी पार्टी की सरकार के रवैये को लेकर विहिप,संघ और भाजपा के प्रमुख पदाधिकारी तो सशंकित थे ही,आरती की जिद ने जानकी की भी चिंता बढ़ा दी।

पहले तो उनको समझाई,लाखों की भीड़ जुटने और पुलिस के नकारात्मक रवैये की भी बात बताई। अयोध्या ना जाने की बात भी कही। आरती नहीं मानी। आरती की भी जिद थी कि मां को अकेले जाने नहीं देगी,उनके साथ वह भी जाएगी और साये की तरह उनके साथ रहेगी। बेटी की दुलार और जिद के आगे जानकी को भी हार माननी पड़ी। अयोध्या साथ चलने की सहमति दे दी। बस फिर क्या था। आरती खुशी-खुशी तैयारी करने लगी। जानकी गुलाबाणी बताती हैं कि फाफामऊ स्थित गंगानदी पर बने पुल पर पुलिस ने जो बर्बरता दिखाई उससे सभी के रूह कांप गए। बेटी को लाठी लगी और ब्रिज पर ही गिर पड़ी। पुल के ऊपर भगदड़ की स्थिति बन गई थी। पुलिस की बर्बरता देखिए पुरुषों के साथ ही महिलाओं पर भी जमकर लाठी भांजी। आरती की पीठ पर लाठी लगी और वह गिर पड़ी। बेसुध हो गई। माया वाजपेयी की कमर की हड्डी टूट गई। उस दौर के भयावहता की बात अब कहानी जैसे लगने लगी है। कारसेवा के दौरान प्रयागराज से अयोध्या के बीच सफर बेहद ही कठिनाई भरा रहा।

कारसेवकों को पैदल ही रास्ता तय करना पड़ा। नदी व नाले पार करने के साथ ही पथरीली जमीन पर चलना पड़ा। जंगल के रास्ते पार करना पड़ा। उस दौर की कठिनाइयों,पुलिस की घेराबंदी और अयोध्या पहुंचने कारसेवकों का संकल्प। इन सब बातों को लेकर नईदुनिया ने जानकी गुलाबाणी से बात की। जानकी ने अपने संस्मरण तो सुनाए साथ ही यह संकल्प भी लिया कि प्राण प्रतिष्ठा के बाद जब आम लोगों के लिए रामलला के दर्शन सुलभ होंगे,परिवार के सदस्यों के साथ अयोध्या जाएंगी और रामलला के दर्शन करेंगी।

पहली सूची में 30 लोगों का था नाम

जानकी बताती हैं कि विहिप के आह्वान जब शहर से कारसेवा में जाने वालों की सूची बनी तब उनका नाम भी शामिल था। उस दौर में वह भाजपा महिला मोर्चा की शहर अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल रहीं थी। लिहाजा कार सेवा में जाने के लिए शहर की महिलाओं से संपर्क करना और उनको राजी करने की जिम्मेदारी भी वे निभा रहीं थी। पहले जत्थे में 30 लोगों का नाम था। इसमें अर्जुन तिर्थानी,कौशल्या तिर्थानी के अलावा गोड़पारा की तीन महिलाओं का भी नाम शामिल था। सूची बनने के बाद हमारी तैयारी प्रारंभ हुई। विहिप के पदाधिकारियों का साफ निर्देश था कि जरुरत का सामान ही बैग में लेकर निकलना है। बैग खुद को ही लेकर चलना है,इसलिए उतना ही सामान रखा जाए जिसकी आवश्यकता पड़ेगी। तैयारी,सामान पैक करने की नहीं थी,मानसिक रूप से तैयार होने की जरुरत थी। अयोध्या कूच करने से पहले हम सब एक दूसरे के संपर्क में थे। संपर्क में रहने का कारण भी साफ था। एक दूसरे का संबल बढ़ाना और साथ-साथ कारसेवा के लिए यात्रा प्रारंभ करना था। हम सभी कारसेवा के लिए पूरी तरह तैयार हो गए थे। तय तिथि में सारनाथ एक्सप्रेस से हम सब रवाना हुए। मेरे साथ बेटी आरती भी थी। रेलवे स्टेशन में जब कारसेवकों ने साथ में आरती को देखा तो एक दूसरे का मुंह ताकने लगे। बोल कुछ नहीं पा रहे थे और ना ही सवाल कर रहे थे।मन की भावनाओं को समझते हुए तब मैने कहा कि जिद के आगे मैं हार गई,इसलिए साथ ले आई। बेटी की साहस और भावना को सुनकर सभी खुश हुए।

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