होलिका दहन गुरुवार, 17 मार्च को है। इस दिन दोपहर डेढ़ बजे से पूर्णिमा लग जाएगी। पूर्णिमा की पूजा भी इसी दिन ही करनी है। होलिका दहन का मुहूर्त देर शाम 9 बजकर 20 मिनट से रात्रि 10 बजकर 31 मिनट तक रहेगा। रंगभरी होली शुक्रवार, 18 मार्च को खेली जाएगी। शनि की साढ़ेसाती से प्रभावित चल रहे कुंभ राशि वाले चंद्रमा के अशुभ होने से होली सावधानी से ही खेलें।
होलिका दहन में होलिका की पूजा की जाती है। सर्वप्रथम प्रथम पूज्य गणेश जी का स्मरण कर, जहां पूजा करनी हैं, उस स्थान पर पानी छिड़क कर शुद्ध कर लें। पूजा करते समय पूजा करने वाले व्यक्ति को होलिका के पास जाकर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए। अग्नि उनके घर से ही मंगानी चाहिए, जहां संतान पैदा हुई हो-
‘चाण्डालसूतिकागेहाच्छिशुहारितवह्निना। प्राप्तायां पूर्णिमायां तु कुर्यात् तत्काष्ठदीपनम्॥’ (स्मृतिकौस्तुभ)
होलिका मंत्र- ‘असृक्पाभयसंत्रस्तै: कृता त्वं होलि बालिषै:। अतस्तवां पूजायिष्यामि भूते भूतिप्रदा भव।।’ का उच्चारण करते हुए तीन परिक्रमा करें। इसी मंत्र के साथ अर्ध्य भी दे सकते हैं। ताम्बे के एक लोटे में जल, माला, रोली, चावल, गंध, फूल, कच्चा सूत, बताशे-गुड़, साबुत हल्दी, गुलाल, नारियल आदि का प्रयोग करना चाहिए। साथ में नई फसल के पके चने की बालियां व गेहूं की बालियां आदि भी सामग्री के रूप में रख लें। इसके बाद होलिका के पास गोबर से बने खिलौने रखें। संभव हो तो बच्चों को लकड़ी के अस्त्र बनवाकर देें, जिससे वे दिन भर उत्साही सैनिक बने रहें और साथियों के संग खेलकूद करते हुए हंसे।
होलिका दहन मुहूर्त समय में जल, मौली, फूल, गुलाल तथा ढाल व खिलौनों की कम से कम चार मालाएं अलग से घर से लाकर सुरक्षित रख लेना चाहिए। इनमें से एक माला पितरों की, दूसरी हनुमान जी की, तीसरी शीतला माता की तथा चौथी अपने परिवार के नाम की होती है। कच्चे सूत को होलिका के चारों ओर तीन या सात परिक्रमा करते हुए लपेटना चाहिए। फिर लोटे का शुद्ध जल और पूजन की अन्य सभी वस्तुओं को प्रसन्नचित्त होकर एक-एक करके होलिका को समर्पित करें।
रोली, अक्षत व फूल आदि को भी पूजन में लगातार प्रयोग करें। गंध-पुष्प का प्रयोग करते हुए पंचोपचार विधि से होलिका का पूजन किया जाता है। पूजन के बाद जल से अर्ध्य दें। होलिका दहन होने के बाद होलिका में कच्चे आम, नारियल, भुट्टे या सप्तधान्य, चीनी के बने खिलौने, नई फसल का कुछ भाग- गेहूं, चना, जौ भी अर्पित करें। होली की पवित्र भस्म को घर में रखें। रात में गुड़ के बने पकवान प्रसाद गणेश जी को भेंट कर खाने चाहिए।