हिंदू धर्म में हर महीने व्रत और त्योहार आते हैं। हिंदू धर्म में हर साल चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को शीतला अष्टमी मनाई जाती है। शीतला अष्टमी को बसौड़ा अष्टमी भी कहा जाता है। बसौड़ा शीतला माता को समर्पित त्योहार है। ये व्रत होली के आठवें दिन पड़ता है। मान्यता है कि इस दिन शीतला माता की विधि-विधान से पूजा करने से बीमारियों से मुक्ति मिलती है और घर में सुख-शांति आती है। जानें कब है शीतला अष्टमी-
शीतला अष्टमी 2022 तिथि-
शीतला अष्टमी हर साल चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। इस साल शीतला अष्टमी 25 मार्च को मनाई जाएगी। इस दिन शीतला माता की पूजा करने के साथ ही व्रत रखने का भी विधान है।
शीतला अष्टमी का शुभ मुहूर्त चैत्र कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि का प्रारंभ 24 मार्च 2022, गुरुवार को रात 12 बजकर 09 मिनट पर होगा। अष्टमी तिथि 25 मार्च को रात 10 बजकर 04 मिनट तक रहेगी।
शीतला अष्टमी महत्व-
हिंदू धर्म में शीतला अष्टमी का विशेष महत्व होता है। माना जाता है कि इस दिन माता शीतला की अराधना की अराधना करने से भक्तों के सभी कष्ट दूर होते हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इसके साथ ही रोगों से मुक्ति मिलने की मान्यता है। शीतला माता को शीतलता प्रदान करने वाला माना गया है। शीतला माता को अष्टमी के दिन बासी भोजन का भोग लगाया जाता है। इसके बाद इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन बासी भोजन करने से शीतला माता का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
शीतला अष्टमी की पूजा विधि-
-सबसे पहले शीतला अष्टमी के दिन सुबह जल्दी उठकर नहा लें।
-पूजा की थाली में दही, पुआ, रोटी, बाजरा, सप्तमी को बने मीठे चावल, नमक पारे और मठरी रखें।
-दूसरी थाली में आटे से बना दीपक, रोली, वस्त्र, अक्षत, हल्दी, मोली, होली वाली बड़कुले की माला, सिक्के और मेहंदी रखें।
-दोनों थालियों के साथ में ठंडे पानी का लोटा भी रख दें।
-अब शीतला माता की पूजा करें।
-माता को सभी चीज़े चढ़ाने के बाद खुद और घर से सभी सदस्यों को हल्दी का टीका लगाएं।
-मंदिर में पहले माता को जल चढ़ाकर रोली और हल्दी का टीका करें।
-माता को मेहंदी, मोली और वस्त्र अर्पित करें।
-आटे के दीपक को बिना जलाए माता को अर्पित करें।
-अंत में वापस जल चढ़ाएं और थोड़ा जल बचाकर उसे घर के सभी सदस्यों को आंखों पर लगाने को दें। बाकी बचा हुआ जल घर के हर हिस्से में छिड़क दें।
-इसके बाद होलिका दहन वाली जगह पर भी जाकर पूजा करें। वहां थोड़ा जल और पूजन सामग्री चढ़ाएं।
-घर आने के बाद पानी रखने की जगह पर पूजा करें।
-अगर पूजन सामग्री बच जाए तो गाय या ब्राह्मण को दे दें।