देश में समलैंगिक विवाह को वैध बनाने की मांग की जा रही है। इससे संबंधित याचिकाओं पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है। जिसमें पांच जजों की बेंच इसकी वैधता पर विचार करेगी। इस बेंच में मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस रविंद्र भट्ट, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल हैं। शीर्ष अदालत के समक्ष याचिकाओं में विशेष विवाह अधिनियम, विदेशी विवाह अधिनियम और हिंदू विवाह अधिनियम सहित विभिन्न अधिनियमों के तहत समान-लिंग विवाह को मान्यता देने की मांग की गई है। अब ये जानते हैं कि आखिर ये मुद्दा है क्या, केन्द्र सरकार क्यों इसका विरोध कर रही है और कैसे यह सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा।
क्या है मुद्दा?
बीते साल 25 नवंबर को दो गे कपल सुप्रीम कोर्ट पहुंचे और स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग की। इसके बाद अदालत की तरफ से नोटिस जारी किया गया था। माना जा रहा है कि याचिकाकर्ता इसके जरिए समाज में LGBTQIA+ समुदाय के साथ भेदभाव खत्म करने की मांग कर रहे हैं।
कैसे हुई शुरुआत?
साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया था। चीफ़ जस्टिस की अगुवाई में सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने एकमत से ये फ़ैसला सुनाते हुए धारा 377 को रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 को अतार्किक और मनमाना बताते हुए कहा कि यौन प्राथमिकता प्राकृतिक और निजी मामला है। इसमें राज्य को दख़ल नहीं देना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि किसी भी तरह का भेदभाव संविधान के समानता के अधिकार (आर्टिकल 14) का हनन है। उसके बाद से ही समलैंगिक विवाह को वैध बनाने की मांग जोर पकड़ रही है।
समर्थन में तर्क
दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग (DCPCR) इस याचिका के समर्थन में है। आयोग ने सरकार से समलैंगिक परिवार इकाइयों को प्रोत्साहित करने के लिए हस्तक्षेप की मांग भी की है। उनकी दलील है कि कई स्टडीज में ये बात साबित हुई है कि समलैंगिक जोडे़ अच्छे माता-पिता बन सकते हैं। वहीं, दुनिया 50 से ज्यादा ऐसे देश हैं, जहां समलैंगिक जोड़ों को कानूनी तौर पर बच्चा गोद लेने की अनुमति है। इसके अलावा इंडियन साइकियाट्रिक सोसाइटी (IPS) भी इसके समर्थन में आ गई है।
विरोध में तर्क
केंद्र सरकार लगातार इसके विरोध में रही है। केन्द्र सरकार ने दलील दी कि यह एक नई सामाजिक संस्था बनाने के समान है। साथ की केन्द्र ने इस तरह के विवाह को ‘देश के सामाजिक लोकाचार से दूर शहरी अभिजात्य अवधारणा’ बताया। केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट से कहा कि ये संसद के क्षेत्राधिकार का मामला है और सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर फैसला नहीं कर सकता। ये नीतिगत मामला है और बड़ी संख्या में हितधारकों से परामर्श करने की आवश्यकता है। जमात उलेमा-ए-हिंद और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ जैसे संगठन भी समलैंगिक विवाह के खिलाफ हैं।
अदालती कार्रवाई
25 नवंबर, 2022: दो समलैंगिक जोड़ों ने विशेष विवाह अधिनियम के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। जिसके बाद अदालत ने याचिका पर नोटिस जारी किया।
14 दिसंबर, 2022: सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक जोड़े द्वारा दायर एक अन्य याचिका पर नोटिस जारी किया। एक भारतीय नागरिक और एक अमेरिकी नागरिक सहित विवाहित जोड़े ने विदेशी विवाह अधिनियम, 1969 के तहत अपनी शादी को कानूनी मान्यता मांगी।
6 जनवरी, 2023: सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली, केरल और गुजरात सहित विभिन्न उच्च न्यायालयों के समक्ष लंबित समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली सभी याचिकाओं को शीर्ष अदालत में स्थानांतरित करने का निर्देश दिया।
12 मार्च, 2023: केंद्र ने समान-सेक्स विवाह का विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक हलफनामा दायर किया, जिसमें कहा गया कि भारतीय परिवार की अवधारणा में एक जैविक पुरुष और महिला शामिल है और अदालत के लिए पूरी विधायी नीति को बदलना संभव नहीं होगा।
13 मार्च: SC ने याचिकाओं के व्यापक संदर्भ और वैधानिक शासन और संवैधानिक अधिकारों के बीच अंतर-संबंध पर विचार करते हुए मामले को संविधान पीठ को भेज दिया। शीर्ष अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 145(3) के प्रावधानों के मद्देनजर उठाए गए मुद्दों को पांच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा सुलझाना उचित समझा।
1 अप्रैल, 2023: जमीयत उलमा-ए-हिंद ने समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने वाली याचिकाओं का विरोध किया, जिसमें दावा किया गया कि समलैंगिकता पर प्रतिबंध लगाने पर इस्लाम की स्थिति निर्विवाद और स्थापित है।
6 अप्रैल: दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग (DCPCR) ने एक हस्तक्षेप आवेदन दायर किया, जिसमें समान-लिंग विवाह और समान-लिंग वाले जोड़ों को गोद लेने के अधिकार का समर्थन किया गया।
15 अप्रैल, 2023: सुप्रीम कोर्ट ने पांच जजों की बेंच के गठन को अधिसूचित किया, जो समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगी।
17 अप्रैल: एनसीपीसीआर ने कहा कि समान लिंग वाले माता-पिता द्वारा गोद लिए गए बच्चों का संपर्क सीमित होगा और उनका समग्र व्यक्तित्व विकास प्रभावित होगा। यह लैंगिक भूमिकाओं और लिंग पहचान की उनकी समझ को प्रभावित कर सकता है।
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