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मध्‍य प्रदेश के जैन तीर्थ बावनगजा में आदिनाथजी की 84 फीट ऊंची मूर्ति का 1008 कलशों से मस्तकाभिषेक

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बड़वानी। दिगंबर जैन सिद्ध क्षेत्र बावनगजा पर विराजित 84 फीट ऊंची विश्व प्रसिद्ध भगवान श्री आदिनाथजी की मूर्ति का 1008 कलशों से मस्तकाभिषेक किया गया। भगवान का यह मनोहारी जलाभिषेक देखने शुक्रवार को बड़ी संख्या में जैन धर्मावलंबी बावनगजा पहुंचे। भगवान आदिनाथ भगवान के मोक्ष कल्याणक पर पूजन कर निर्वाण लाडू चढ़ाया गया। कार्यक्रम विद्या सागर महाराज के शिष्य मुनि अक्षय सागर के ससंघ सानिध्य में संपन्न हुआ। इस अवसर पर तलहटी से भगवान आदिनाथ के चरणों तक मुनिश्री के संघ सहित शोभायात्रा निकाली गई। महिलाएं मंगल कलश और निमाड़ की विद्यासागर पाठशाला के बच्चे पंच रंगी झंडे लेकर जय घोष करते हुए चल रहे थे।

इन्‍होंने किया भगवान का अभिषेक

प्रथम अभिषेक बाकानेर और इंदौर के दोशी परिवार में किया। निर्वाण लाडू दिनेश भाई कठलाल गुजरात को प्राप्त हुआ। शांतिधारा अनिल जैन और ध्वजारोहण विजय वीणा छाबड़ा ने किया। मंगलाचरण धामनोद की विद्या सागर पाठशाला के बच्चों ने प्रस्तुत किया। मुनिश्री अक्षय सागर ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा तीसरे और चौथे काल में तीर्थंकरों तीर्थ प्रारंभ होता है। धर्म क्षेत्र में अव सर्पिणी काल चल रहा है। अवसर्पिणी काल में नाभिराय और भगवान आदिनाथ चौदहवे औरचौबीसवे कुल कर हुए और भगवान ऋषभ देव हुए जो कि अवधि ज्ञानी थे। उनके द्वारा ही प्राणी मात्र के कल्याण का मार्ग मिलने वाला था भगवान के पास कला, विज्ञान, शिल्प की जानकारी थी।

ऋग्वेद, यजुर्वेद में भी उल्लेख

भगवान ऋषभ देव की आयु 84 लाख पूर्व प्रमाण थी जिसमें 20 लाख पूर्व युवावस्था में था और 63 लाख पूर्व राज्य काल रहा। भारत का ये सौभाग्य है। इसी राज्य काल में जब भोग भूमि से 10 प्रकार के वृक्ष से सब मिलना बंद हो गया तब ऋषभ देव के द्वारा शट कर्म का ज्ञान हो गया। भारतीय संस्कृति के प्रथम सूत्र धार भगवान ऋषभ देव है। कर्म युग के आदिसृष्टा, आप ही है। आप के ही द्वारा अंक, अक्षर, गणित का ज्ञान दिया। आपके द्वारा जो आपकी बेटी ब्राह्मी को लिपि का ज्ञान दिया गया वही ब्राह्मी लिपि बन गई। आयुर्वेद का ज्ञान दिया। जैन धर्म और भगवान आदिनाथ के लिए ऋग्वेद, यजुर्वेद में भी उल्लेख आता है। भगवान ऋषभनाथ का स्मरण मात्र से 68 तीर्थ यात्रा का पुण्य मिलता है। भागवत गीता में भी आध्यात्मिक साधना का प्रथम प्रवर्तक ऋषभ देव ही है। धर्म का पहला उपदेश यदि किसी ने बताया है तो वह ऋषभ देव ने बताया है।

बावनगजा के बारे में

यह क्षेत्र बावनगजा 20वे तीर्थंकर भगवान मुनिसुव्रत भगवान के समय का है यानी करोड़ों वर्ष पूर्ण का है उसके बाद और 4 तीर्थंकर मोक्ष गए। यह क्षेत्र और सिद्ध क्षेत्र किसी ने बनाए नही बल्कि जहां पर महापुरुष कठिन तपस्या कर मोक्ष को प्राप्त करते है तो सिद्ध क्षेत्र बन जाते है। शिव पुराण में भी बताया है कि विश्व का कल्याण करने वाला कोई है तो वो ऋषभ देव है। मंगलाचरण में सबसे पहले भगवान आदिनाथ को नमस्कार किया गया है।

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