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माँ नर्मदा जयंती 7 फरवरी 2022

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नर्मदा जी को गंगा के समान ही पवित्र माना जाता है। कुछ राज्यों में इनकी पूजा और पाठ बहुत बड़े स्तर पर किए जाते हैं। ऐसे में नर्मदा जयंती का इनके भक्तों के लिए विशेष स्थान है। लोग इसे नर्मदा जी के जन्मोत्सव के रूप में मनाते हैं। हिंदु पंचांग के अनुसार नर्मदा जयंती वर्ष के माघ महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को उनके जन्मदिन के रूप में मनाई जाती है। माना जाता है नर्मदा जी परिक्रमा करने से मनुष्य ऋद्धि-सिद्धि का स्वामी बन जाता है। नर्मदा जी पूजा अराधना करने से जीवन समृद्धि और शांति से भर जाता है। शास्त्रों में इनका पुण्यदायिनी और अलौकिक शब्दों द्वारा उल्लेख देखने को मिलता है।

नर्मदा जी अमरकंटक से बहते हुए स्थानों को पवित्र करके रत्नासागर में मिल जाती है। अपने इस सफर में नर्मदा जी कई जीवों का उद्धार करते हुए नज़र आती हैं। नर्मदा जयंती पूरे मध्यप्रदेश और अमरकंटक में बहुत विधि विधान से मनाई जाती है, इस राज्यों में यह पर्व बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है। नर्मदा नदी के समीप ही एक बहुत प्रसिद्ध भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग है। नर्मदा जी का सामाजिक रूप से भी बहुत महत्व है, पौराणिक कथाओं और भक्तों की श्रद्धा भावना से इनकी विशेषता साफ-साफ दिखाई देती है। इस दिन भक्तों द्वारा माता नर्मदा की पूजा की जाती है और व्रत रखें जाते हैं।

सुबह से ही लोग नर्मदा जी के तटों पर एकत्रित होते दिखाई देते हैं। हर जगह शोभा यात्रा के माध्यम से भ्रमण करते हुए श्रद्धालु भजन कीर्तन करते हुए दिखाई देते हैं। तटों पर इस दिन माता की विशेष आरती की जाती है और नर्मदा जी के किनारों पर बड़े स्तर पर त्योहार को मनाया जाता है। पूजा के बाद सभी को प्रसाद बाँटा जाता है और इस पूजा को कोई भी व्यक्ति, महिला, कन्या आदि कर सकते हैं। लोगों द्वारा भंडारों का आयोजन किया जाता है, जिससे पुण्य की प्राप्ति होती है। भक्तों द्वारा नदी की सफाई भी की जाती है, नदियों को दूषित करने वाले लोगों को बहुत पाप लगता है। इन देवी स्वरूप नदियों का हमें आदर करना चाहिए, जिससे कई प्राणियों और मानव जाति का जीवन चला हुआ है।

नर्मदा जयंती मनाने के कारण

नर्मदा जयंती को मनाने के कई कारण है, जिसके पीछे कई पौराणिक कथाएं एवं मान्यताएं छिपी हैं। नर्मदा जयंती माघ के महीने में जब शुक्ल पक्ष की सप्तमी आती है, उस दिन को इस पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को प्रत्येक वर्ष मनाया जाता है। नर्मदा जी की रेवा नाम से भी अराधना की जाती है।

अब जानते हैं कि क्यों इस दिन को मनाया जाता है। मान्यता के अनुसार नर्मदा जी में स्नान को गंगा स्नान के समान पवित्र माना गया है। इस दिन भक्त अपने पापों का नाश करके तन और मन की शुद्धि हेतु इस दिन को मनाते हैं। यह भी कहा जाता है इस स्नान से पुण्य की प्राप्ति होती है। वहीं एक कथा के अनुसार हिरण्यतेजा नाम के राजा ने चौदह हजार दिव्य वर्षों तक भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठिन तप्सया की थी। जिससे भगवान शिव ने उसे वर मांगने को कहा था।

तब राजा ने कहा था कि नर्मदा जी को पृथ्वी पर भेज कर प्राणियों व मानवजाति का उद्धार करें। इस नदी में ही राजा ने अपने पितरों का भी तर्पण किया था। तभी शिव जी के तथास्तु कह कर राजा हिरण्यतेजा को यह वरदान प्रसन्न हो कर दे दिया था। उस समय माता नर्मदा जी ने मगरमच्छ पर सवार हो कर पृथ्वी पर प्रस्थान किया और उदयाचल पर्वत पर जाकर उत्तर से पश्चिम दिशा की ओर बहना शुरू कर दिया था। इसी कारण से यह दिन नर्मदा जयंती के रूप में बहुत आस्था के साथ मनाया जाता है।

नर्मदा जयंती से पौराणिक कथा

हिंदुओं के स्कंद पुराणान्तर्गत रेवाखंड में माता नर्मदा का उल्लेख है। कथानुसार भगवान शिव अंधकार नाम के असुर का नाश करके मेकल पर्वत पर तप्सया कर रहें थे, जिसे आज अमरकंटक के नाम से जाना जाता है। उस समय देवताओं ने अधर्म की राह पर हो रहे बुरे कार्यों से मुक्ति पाने के लिए भगवान श्री विष्णु से प्रार्थना की और सहायता मांगी। उस समय भगवान विष्णु ने समाधान हेतु महादेव जी से बोला था। जिस समय समाधान के लिए भगवान विष्णु निवेदन कर रहे थे, तब शिव मस्तक पर शोभायमान सोमकला से मात्र एक जल की बूंद पृथ्वी पर गिरी थी। उसके पश्चात वह पानी की बूंद एक प्यारी कन्या में रूपान्तरित हो गई।

कन्या के इस अदभुत रूप को देखकर सभी देवताओं ने कन्या की स्तुति करना आरंभ कर दिया। भगवान शिव ने उसी समय उसको नर्मदा नाम से पुकार कर अमरता का वरदान देते हुए कहा कि कोई भी प्रलय तुम्हारा कुछ नहीं कर सकती। नर्मदा जी को सोमोभ्द्वा के नाम से भी तभी जाना जाता है क्योंकि भगवान शिव की सोमकला से ही नर्मदा जी प्रकट हुए थे। नर्मदा जी का मेकलसुता नाम मेकल पर्वत यानि अमरकंटक से उद्गम के कारण से पड़ा था।

नर्मदा जी को उनके चंचल आवेग के गुण के कारण भक्त बहुत पसंद करते है और इसी की वजह से इनका प्रसिद्ध नाम रेवा पड़ा है। ऋषि वशिष्ट द्वारा लिखा गया है कि नर्मदा जी माघ शुक्ल पक्ष की सप्तमी, मकराशिगत और अश्र्विन नक्षत्र के समय रविवार के दिन प्रकट हुई थी जिस वजह से इन दिन को बहुत पवित्र माना गया है और नर्मदा जयंती का नाम देकर इसे मनाया जाता है।

वर्ष 2022 की नर्मदा जयंती

वर्ष 2022 में नर्मदा जयंती 7 फरवरी के दिन मनाई जाने वाली है और इस दिन सोमवार है। इस शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन नर्मदा जी की पूजा से सामान्य पूजा की अपेक्षा कई गुना फल मिलता है। इसलिए सप्तमी तिथि की अवधि के बारे में जानना बहुत जरूरी है। अंग्रेजी कैलेंडर से तुलना करके आपको इस अवधि के बारे में बताएंगे। हिंदू पंचांग की बात करें तो इसमें दिनों की गणना सूर्योदय के आधार पर की जाती है जिसके कारण हिंदू समय की गणना थोड़ी अलग होती है।

साल 2022 में नर्मदा जयंती की शुभ सम्तमी तिथि 07 फरवरी को 04 बजकर 37 मिनट पर शुरू हो जाएगी और अगली तारीक 08 फरवरी को मंगलवार की सुबह 06 बजकर 15 मिनट पर समाप्त हो जाएगी।

वहीं इस दिन सुबह 07ः03 पर सूर्योदय होगा और शाम में 06ः18 पर अस्त हो जाएगा। चंद्रमा का उदय भी सुबह ही हो जाएगा जिसका समय 11ः07 होगा और अगले दिन यानि 8 फरवरी शुरू होते ही रात में 12ः11 पर चन्द्रास्त हो जाएगा। नर्मदा जयंती के दिन सूर्योदय से पहले उठना बहुत आवश्यक है।

  नर्मदा जयंती का महत्व

हिंदू धर्म में भगवान शिव के साथ नर्मदा माता का भी वर्णन सुनने को बहुत आसानी से मिल जाता है। भगवान शिव का पुराणों व शास्त्रों में विशेष स्थान है, जिससे नर्मदा माता का महत्व भी बहुत बढ़ जाता है। अमरकंटक से प्रवाहित होने के कारण इस राज्य में नर्मदा जयंती का विशेष महत्व है और मध्यप्रदेश व नर्मदा नदी के साथ जुड़े स्थानों में नर्मदा जयंती को विशेष माना जाता है। माता नर्मदा के तट पर कई योगियों, महापुरुषों और ऋषियों ने कई वर्षों तक कठोर तप किया है।

पुराणों में ऐसा लिखा गया है कि नर्मदा मात्र ऐसी नदी है जिसकी परिक्रमा कोई भी कर सकता है चाहे वह किन्नर, नाग, गंधर्व आदि या मानव स्वयं हो। ऋषि मार्केडेयजी द्वारा रचित प्राचीन स्कंद पुराण के रेवाखण्ड में स्पष्ट लिखा गया है कि भगवान श्री विष्णु के हर एक अवतार ने माता नर्मदा के तट पर उनकी स्तुति करके उनकी अराधना की थी। जिससे कि इन नदी का महत्व और भी अधिक हो जाता है और इसी के साथ नर्मदा जयंती का भी महत्व स्पष्ट दिखाई पड़ता है। यह भी माना जाता है कि सर्प विष के प्रभाव को भी माता नष्ट कर अपने भक्तों की रक्षा करती है।

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