पढाई की उम्र में भी पेट की आग बुझाने की खातिर गंदगी की बीच घूम रही जिंदगी
देवेंद्र तिवारी सांची रायसेन
सरकार प्रशासन जहां एक तरफ जनकल्याणकारी योजनाएं एवं मुख्यमंत्री जनसेवा अभियान से कार्यक्रम चला रहे हैं वहीं इन योजनाओं से कोसों दूर पेट की आग बुझाने कांधे पर बोरिया टांगें गंदगी के ऊपर दारोमदार जिंदगी इनमें बूढ़े जवान बच्चे के साथ ही महिला युवतियां बूढी महिला तक गंदगी के बीचोबीच पेट की आग बुझाने रोटी तलाश करते आसानी से दिखाई दे जाती है । आखिर सरकार की योजनाएं इन तक न पहुंच पाना कहीं न कहीं सवाल खड़े कर रहे हैं।।
जानकारी के अनुसार जहां एक तरफ इन दिनों मुख्यमंत्री जनसेवा अभियान चलाया जा रहा है तथा सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं को जमीनी स्तर पर उतार कर घर घर लाभ पहुंचाने की कवायद चल रही है तब इस विश्व विख्यात नगर में जहां कहीं गंदगी के ढेर लगे दिखाई देते हैं उन गंदगी में जिंदगी मंडराती हुए दिखाई दे जाती है तब सरकार की योजनाएं व क्रियान्वित करने वालों के लिए सवाल खड़े हो रहे हैं । एक तरफ सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं को घर घर पहुंचाने तथा हर व्यक्ति को इन योजनाओं से लाभान्वित करने के लिए अभियान चलाया जा रहा है ताकि जमीनी स्तर पर विभिन्न योजनाएं क्रियान्वित की जा सके । इन योजनाओं को जमीनी स्तर पर मूर्तरूप देने बड़े पदों पर बैठे जनप्रतिनिधि अधिकारी कर्मचारियों की लंबी फौज जुटी हुई है तो वहीं दूसरी ओर इस ऐतिहासिक स्थली पर जगह जगह लगे गंदगी के ढेरों के बीचोबीच जिंदगी भी पेट की आग बुझाने रोजी रोटी ढूंढते दिखाई दे जाते हैं ऐसा भी नहीं है कि इनमें लगे गरीब किसी विशेष उम्र के हों परन्तु यहां बुजुर्ग महिला पुरूष युवा युवतियां तो लगे ही हुए है बल्कि इनके बीचोबीच उस उम्र के नौनिहालों भी लगे रहते हैं जिनके स्कूलों आंगनबाड़ी केंद्रों पर बैठने के दिन होते हैं ।ऐसा भी नहीं है कि यह लोग केवल इस स्थल पर ही आसानी से दिखाई दे जाते हैं बल्कि पैदल चलने वाले यह लोग दूरदराज गांवों में भी आसानी से दिखाई दे जाते हैं तब सवाल खड़े होने लगते हैं कि सरकार अथवा प्रशासनिक अधिकारी कर्मचारी क्या इतने गंभीर है कि जनकल्याणकारी विभिन्न योजनाओं को ऐसे लोगों तक पहुंचाने में सफल होंगे तथा सरकार की विभिन्न जनकल्याणकारी योजनाओं को ऐसे लोगों को लाभ हो सकेगा अथवा जमीनी स्तर पर पहुंचाने हजारों लाखों रुपए खर्च व्यर्थ हो जायेगे । ऐसे लोगों को झुंड सुबह से ही अपने घरों से निकल कर जहां गंदगी दिखाई दे जाती है उसके बीचोबीच से अपनी रोजी रोटी तलाश करते नजर आ जाते हैं तथा यह लोग अपने पेट भरने के लिए घरों से रोटी मांग कर पेट की आग बुझाकर फिर अपनी जिंदगी गंदगी के बीचोबीच उतार देते हैं कभी कभी तो लोग इनपर चोरी के तक आरोप लगा देते हैं बावजूद इसके इनकी जिंदगी कचरे कूड़ो के बीच निकलती रहती है तब सरकारों की जनहित कारी तथा जनकल्याण कारी योजना मात्र खाना पूर्ति करते हुए संपन्नो तक ही सिमट कर तो नहीं रह जाती हालांकि गरीबी के दौर से गुजरने वाले आज भी सरकार की विभिन्न जनकल्याणकारी योजनाओं के इंतजार में आसानी से दिखाई दे जाते हैं जबकि संपन्न लोग जो अपनी अधिकारी कर्मचारियों मजबूत पैंठ रखते हैं उन तक ही यह योजना सिमट कर रह जाती है तथा धरातल पर पहुंचने के पहले ही दम तोड देती है ।ऐसा भी नहीं है कि इनपर जिम्मेदारों की नजर न पहुंच पाती है ।तब लगने लगता है कि सरकारो की सेकंडों जनकल्याणकारी योजनाएं चलाई तो जा रही है परन्तु पात्रता की श्रेणी में रहने वाले आज भी गंदगी के बीचोबीच अपनी रोजी रोटी तलाश कर रहे हैं तथा जो अपात्रता रखने वाले लोग पात्रता की श्रेणी में शामिल होकर सबसे पहले लाभ उठाने में सफल रहते हैं तथा सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाने के नाम पर हजारो लाखों रुपए की बलि चढ़ जाती हैं । इससे न केवल इनकी जिंदगी कचरे कूड़ो में रह जाती है बल्कि योजनाओं में पात्रता की श्रेणी भी बदल जाती है इसके साथ ही सरकारों के मंसूबे भी धरे के धरे रह जाते हैं ।