मनुष्य अपने जीवन में जैसा कर्म करता है, उसी के अनुरूप ही उसे फल मिलता है। मनष्य जैसा बोता है, वैसा ही काटता है। सुकर्मो का फल अच्छा तथा कुकर्मो का फल बुरा होता है। दूसरों को पीडित करने वाला व्यक्ति एक दिन स्वयं पीड़ा के सागर में डूब जाता है। जो दूसरों का भला करता है, ईश्वर उसका भला करता है। कहा भी है, ‘कर भला हो भला’ । पुण्य से परिपूर्ण कर्म कभी भी व्यर्थ नहीं जाते। जो दूसरों का शोषण करता है, वह कभी सुख की नींद नहीं सो सकता। ‘जैसी करनी वैसी भरनी’ वाली बात प्रसिद्ध है। मनुष्य को हमेशा अच्छे कर्मों में रुचि लेनी चाहिए। दसरों का हित करना तथा उन्हें संकट से मुक्त करने का प्रयास मानवता की पहचान है। मानवता के पथ पर बढ़ने वाला व्यक्ति मानव तथा दानवता के पथ पर बढ़ने वाला व्यक्ति दानव कहलाता है। मानवता की पहचान मनुष्य के शुभ कर्म हैं