माघ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को षटतिला एकादशी कहते हैं. इस दिन भगवान विष्णु की सच्चे मन से उपासना करने और व्रत करने से मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है. इस दिन तिल के दान का भी विशेष महत्व होता है।
माघ माह भगवान विष्णु का महीना माना जाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार, माघ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को षटतिला एकादशी कहते हैं. इस दिन भगवान विष्णु की सच्चे मन से उपासना और व्रत करने से मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है. इस दिन तिल के दान का भी विशेष महत्व होता है. आइए षटतिला एकादशी के मौके पर आपको व्रत की कथा और इसके नियमों के बारे में बताते हैं.
उपवास और अन्य नियम
यह व्रत निर्जला या फलाहारी दोनों प्रकार से रखा जाता है. अन्य या सामान्य लोगों को फलाहारी या जलीय उपवास रखना चाहिए. इस व्रत में तिल स्नान, तिल युक्त उबटन लगाना, तिल युक्त जल और तिल युक्त आहार ग्रहण करना और तिल का दान जैसे ६ काम जरूर करने चाहिए. मुक्ति और मोक्ष प्राप्त करने के लिए इस दिन गोबर, कपास और तिल का पिंड भी बनाया जाता है. उसका पूजन करके संध्या काल में उसी से हवन किया जाता है.
षटतिला एकादशी की पौराणिक कथा
हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक, एक बार नारद मुनि भगवान विष्णु के पास बैकुण्ठ पहुंचे और उन्होंने षटतिला एकादशी व्रत के महत्व के बारे में पूछा. तब भगवान विष्णु ने बताया कि प्राचीन काल में पृथ्वी पर एक ब्राह्मण की पत्नी रहती थी. उसके पति की मृत्यु हो चुकी थी. वह मेरी अन्नय भक्त थी और श्रद्धा भाव से मेरी पूजा करती थी.
एक बार उसने पूरे एक महीने उपवास रखकर मेरी आराधना की थी. व्रत के प्रभाव से उसका शरीर तो शुद्ध हो गया लेकिन वह कभी ब्राह्मण या देवताओं के निमित्त अन्न दान नहीं करती थी, इसलिए मैंने सोचा कि यह स्त्री बैकुण्ठ में रहकर भी अतृप्त रहेगी, तब मैं स्वयं एक दिन उसके पास भिक्षा मांगने गया. जब मैंने उससे भिक्षा की याचना की तब उसने एक मिट्टी का पिण्ड उठाकर मेरे हाथों पर रख दिया. मैं वह पिण्ड लेकर अपने धाम लौट आया.
कुछ समय बाद वह देह त्याग कर मेरे लोक में आ गई. यहां उसे एक कुटिया और आम का पेड़ मिला. खाली कुटिया को देखकर वह घबराकर मेरे पास आई और बोली कि मैं तो धर्मपरायण हूं फिर मुझे खाली कुटिया क्यों मिली? तब मैंने उसे बताया कि यह अन्नदान नहीं करने और मुझे मिट्टी का पिण्ड देने से हुआ है.
फिर मैंने उसे बताया कि जब देव कन्याएं आपसे मिलने आएं तब आप अपना द्वार तभी खोलना जब तक वे आपको षटतिला एकादशी के व्रत का विधान न बताएं. स्त्री ने ऐसा ही किया और जिन विधियों को देवकन्या ने कहा था उस विधि से षटतिला एकादशी का व्रत किया. व्रत के प्रभाव से उसकी कुटिया अन्न धन से भर गई. इसलिए जो व्यक्ति इस एकादशी का व्रत करता है और इस दिन तिल और अन्न का दान करता है उसे मुक्ति और वैभव की प्राप्ति होती है.