–सतधारा में सम्राट अशोक ने 272-238 ईसा पूर्व बनवाया था ईंटों का स्तूप
-सतधारा में उत्खनन के दौरान ही मिले थे बौद्ध सारिपुत्र व महागोपालन के अस्थि अवशेष
सलामतपुर रायसेन से अदनान खान की ग्राउंड रिपोर्ट।
प्रदेश में बौद्ध स्तूपों की बात हो तो सांची के अलावा दूसरा नाम ही नहीं सूझता जबकि यही खासियत सतधारा की भी है। इसे राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों में शामिल तो किया गया है। लेकिन प्रचार प्रसार के अभाव के चलते ये बौद्ध स्तूप वीरान पड़े हुए हैं। वहीं वर्ष 92 में यूनेस्को द्वारा यहां के विकास के लिए सर्वप्रथम 50 लाख रुपए की राशि दी गई थी। जिससे मात्र एक बाहरी दीवार व सीढ़ियां बनाई गईं और इस निर्माण पर भी यूनेस्को ने आपत्ति दर्ज कराई थी। उसके बाद कई बार करोडों रुपए की राशि यहां के विकास के लिए आई। और उस राशि से सतधारा बौद्ध स्तूप क्षेत्र में कई विकास कार्य करवाए गए हैं। उसके बाद भी सतधारा बौद्ध स्तूपों को सांची जैसी प्रसिद्ध नही मिल पाई।
भोपाल विदिशा मुख्यमार्ग से 5 किमी की दूरी पर स्थित सतधारा के स्तूप हैं उपेक्षा के शिकार-– सतधारा स्तूप की प्रसिद्धि और यहां सुविधाओं के नाम पर कोई ठोस प्रयास नहीं किया जा रहा है। विडंबना यह है कि वह पूरातत्व विभाग सतधारा के स्तूपों का अच्छे से प्रचार-प्रसार नहीं कर रहा है। वहीं यूनेस्को द्वारा प्रदत राशि से किया गया निर्माण कार्य भी संतोषजनक नहीं है। वर्ष 99 में हुए इस जीणोद्धार के बाद जनवरी 2005 में यूनेस्को के पुरा-विशेषज्ञों के दल ने इस पर असंतुष्टि जताते हुए इस को तोड़कर दोबारा निर्माण करने के निर्देश दिए थे। एक विचित्र स्थिति यह भी है कि उक्त भूमि पहले वन विभाग के अधीन थी। काफी समय बाद में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पास ट्रांसफर हुई है। यहां बिजली, संचार एवं अन्य आवश्यक व्यवस्थाओं के नाम पर कुछ भी नहीं है। यहां आने के लिए करोडों रुपए की राशि का सड़क मार्ग भी नया बनाया गया था। लेकिन वह भी अब जगह-जगह से खराब हो चुका है। उसके बाद भी पर्यटक यहां आने में असमर्थ होते हैं। इसलिए सांची से अधिक सुंदर इस स्थान को ना तो प्रसिद्धि मिल पा रही है। और और ना ही पर्यटन की दृष्टि से कोई लाभ हो पा रहा है। पुरातत्व विभाग द्वारा प्रशासन को कई बार पत्र लिखे जाने के बावजूद भी यहां पर व्यवस्थाएं नहीं सुधरी है।
272-238 ईसा पूर्व सम्राट अशोक ने सतधारा में बनवाया था ईंटो का स्तूप–हलाली नदी के दाएं किनारे पहाड़ी पर स्थित बौद्ध स्मारक सताधारा की खोज ए कन्धिम ने की थी। मौर्य सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए स्तूप का निर्माण कराया था। इस स्थल पर छोटे-बड़े कुल 27 स्तूप, दो बौद्ध बिहार तथा एक चैत्य है। वर्ष 1989 में इस स्मारक को राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित किया गया। ईसा पूर्व 272-238 में सम्राट अशोक ने सांची स्तूप निर्माण के समय ही सतधारा में ईंटों का स्तूप बनवाया था। यहां मौजूद वैदिक स्तंभ में कमल पुष्प, आलेख सिंह, वेष्टित वृक्ष, मानवाकृति आदि अलंकरण सहित दानदाताओं के कई अभिलेख भी हैं। उत्खनन के दौरान बौद्ध सारिपुत्र तथा महागोपालन के अस्थि अवशेष मिले। यहां शैलाश्रय में बौद्ध का व्यक्ति चित्र, आठ स्तूप, बारह बिहार और एक मंदिर है। यह स्थान मौर्य काल में विकसित हुआ और गुप्त काल से इसकी उपेक्षा शुरू हुई।
सतधारा स्तूप क्षेत्र में नही है बिजली की व्यवस्था– भोपाल-विदिशा स्टेट हाईवे 18 रोड से सतधारा स्तूपों की दूरी लगभग 5 किलोमीटर है। यहां पर जाने के लिए 1 करोड़ रुपए की लागत से नहर से लगकर सीसी रोड डाला गया था। वह भी जगह जगह से खराब हो गया है। वहीं सतधारा स्तूप परिसर में बिजली लाइट की व्यवस्था नही है। यहां पर रात भर सिर्फ 1 सोलर लाइट के भरोसे सुरक्षा व्यवस्था की जाती है। और अभी गर्मी के मौसम में पर्यटकों यहां नही आते हैं। क्योंकि यहां पर छांव की कोई व्यवस्था भी नही है। पर्यटन विभाग को इस और ध्यान देकर सतधारा स्तूप क्षेत्र की व्यवस्थाएं बेहतर करनी चाहिए।
इनका कहना है-
पर्यटकों के बैठने के लिए सतधारा में लगभग 6 गजीफे बनाए गए हैं। यह स्थान सांची से कहीं अधिक सुंदर है।सतधारा स्तूपों का जीणोद्धार जारी है। उन्होंने कहा कि कुछ वर्ष पहले सतधारा स्तूपों तक जाने के लिए सड़क भी बन गई है। लेकिन पर्यटक सांची जितना यहां पर नहीं आते हैं।
संदीप महतो, स्तूप प्रभारी सतधारा
में पिछले हफ्ते बड़े ही हर्ष, उल्लास और उमंग के साथ सतधारा के बौद्ध स्तूप अपने परिवार के साथ गया था। मन में कई सारी उमंगे और उत्सुकता थी कि वहां के स्तूप की प्राकृतिक सौन्दर्यता तो मंत्रमुग्ध कर देगी। किन्तु तब परिवार और बच्चों के साथ वहां जाना एक श्राप और सज़ा जैसा लगा। क्योंकि यहां पर सुविधाओं के नाम पर कुछ भी नही है। जबकि यह स्थान सांची से अधिक सुंदर है। हमारा तो सारा मज़ा ही किरकिरा हो गया और हमें स्तूप का आनंद लिए बिना ही घर वापस लौटना पड़ा।
जगन रेड्डी, पयर्टक भोपाल
प्रत्येक रविवार को लगभग सौ पर्यटक इतिहास और पुरातत्व का आनन्द लेने सतधारा बौद्ध स्तूप आते हैं। चारों ओर हरियाली का मनमोहक द्रश्य और शांत वातावरण पर्यटकों का मन मोह लेता है। किन्तु पर्यटकों का वहां मन फीका पड़ जाता है जब उन्हें पीने तक का पानी यहां नसीब नहीं होता है। ऐतिहासिक स्थल होने के बावजूद आज तक पुरातत्व विभाग द्वारा यहां पानी की कोई स्थायी व्यवस्था नहीं की गई है। यहां पर सिर्फ एक हैंडपंप है उसमें भी कभी पानी आता है कभी नही आता। शासन प्रशासन को यहां की व्यवस्थाओं पर ध्यान देना चाहिए।
असद खान, पर्यटक विदिशा