प्रत्येक वर्ष 30 जुलाई को स्वर्गीय गनेशी बाई की जयंती भी मनाई जाएगी
बक्सवाहा से अभिषेक असाटी
नगर परिषद के सभा कक्ष में विधायक प्रद्युम्न सिंह लोधी एवं भाजपा के कार्यकर्ताओं द्वारा प्रथम नगर गौरव दिवस बड़े ही उत्साह पूर्वक मनाया गया।
नगर परिषद द्वारा नगर बक्सवाहा में हर वर्ष स्वर्गीय गनेशी बाई खरे की जयंती गौरव दिवस के रूप में मनाई जाएगी इसी कार्यक्रम में नगर के प्रति अपनी निष्ठा से कार्य करने वाले लोगों का सम्मान किया जाएगा।
कौन थी स्वर्गीय गनेशी बाई
स्वर्गीय गनेशी बाई का जीवन अकेलेपन में ही व्यतीत हुआ इनका जीवन बड़ा ही संघर्ष में रहा उन्होंने अपने जीवन काल में जितने भी कार्य किए वह नगर के प्रति सराहनीय एवं सम्मानीय रहे गनेशी बाई का जन्म 1 दिसंबर 1938 को बक्सवाहा नगर में हुआ गनेशी बाई अपने पिता अयोध्या प्रसाद खरे की इकलौती संतान थी छोटी सी उम्र में ही माता-पिता मृत्यु हो गई 13 साल की उम्र में उनकी शादी एक सामान्य परिवार में हुई कुछ समय के बाद इन्हें एक पुत्री रत्न की प्राप्ति हुई लेकिन भाग्य ने साथ ना देते हुए कुछ समय बाद पुत्री की मृत्यु हो गई किसी तरह गनेशी बाई खरे अपने बेटी के जाने का गम नहीं भुला पाए की शादी के 2 वर्ष बाद उनकी पति की भी मृत्यु हो गई छोटी सी उम्र में निराशा मिलने के बाद वह अपने पिता के घर रहने आ गई उनके चचेरे भाई धर्मेंद्र नाथ खरे जो शिक्षक थे उन्होंने मिडिल स्कूल की पढ़ाई कराई और सन 1960 में उन्हें कन्या शाला बक्सवाहा में शिक्षिका के पद पर नियुक्त होने में अहम भूमिका भी निभाई। जिसके बाद स्वर्गीय गनेशी बाई खरे ने अपना पूरा जीवन अकेली रह कर व्यतीत किया उन्होंने धर्म के प्रति आस्था रखते हुए नगर में कई दान दिए नगर की एवं क्षेत्र के लोग गनेशी बाई खरे को बुआ के नाम से संबोधित करने लगे नगर में अधिकतर बच्चों की जन्म इन्हीं के हाथों से हुए क्योंकि उस समय दवाई की कोई ज्यादा व्यवस्थाएं नहीं थी। गरीब कन्याओं के विवाह में धार्मिक कार्यों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया 60 वर्ष की सरकारी सेवा करने के उपरांत रिटायर्ड होने पर उन्होंने अपनी सेवा की राशि बक्सवाहा के बालक प्राथमिक शाला भवन बड़ा बाजार का निर्माण कराया जिसे आज नगर के सभी लोग गनेशी बाई खरे प्राथमिक शाला के नाम से जानते हैं इसके बाद उन्होंने वृंदावन के हरिदास संस्थान में अपनी संपूर्ण जीवन की राशि वृंदावन के संत श्री 108 महंत किशोर दास जी महाराज को समर्पित कर देने के साथ वहीं रहने का फैसला लिया कई वर्ष महाराज के साथ रहने के बाद उनकी मृत्यु 30 जुलाई 2019 को वृंदावन धाम में हुई।