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सावन मास में धार्मिक अनुष्ठानों की गूंज,75 साल से है परंपरा वैदिक विधान से हुआ महा रूद्राभिषेक

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कमल याज्ञवल्क्य
बरेली (रायसेन) । पवित्र श्रावण मास का प्रारंभ हो गया है. इसी के साथ श्रावण मास में होने वाले धार्मिक अनुष्ठानों का क्रम भी बरेली सहित अंचल में प्रारंभ हो गया. नगर के मंदिरों में शिव आराधना और भजन कीर्तन और शिवजी पर जलाभिषेक और पूजा शुरू हो गई है. श्रावण के पवित्र महीने में भोले की भक्ति में लीन रहेंगे नगर एवं क्षेत्रवासी. इसके अलावा बरेली सहित अंचल में श्री रूद्राभिषेक के अनुष्ठान भी जारी हैं. साथ ही नगर सहित अंचल के गांवों में कई घरों में नित्य रामायण की चौपाईयाँ भी गूंज रहीं हैं. सावन के महीने में सम्पूर्ण श्रीराम चरित मानस के पाठ की परंपरा भी रही है.

75 साल से जारी है रूद्राभिषेक की परंपरा

क्षेत्र के विख्यात कर्मकांड भास्कर गुरूजी चित्रकूट वालों द्वारा जामगढ़ में स्थापित संस्कृत पाठशाला में श्रावण मास पर विश्व कल्याण की कामना के साथ करीब पचहत्तर साल पहले शुरू हुई महा रूद्राभिषेक की परंपरा अभी भी जारी है. इसी परंपरा के अनुसार चित्रकूट धाम से आए सेवा निवृत्त शिक्षाविद् और विद्वान पंडित

चन्द्रदत्तजी त्रिपाठी और संस्कृत पाठशाला के आचार्य शेषनारायण पांडेय के सानिध्य में विप्रगण पंडित गौरीशंकर तिवारी,पंडित संतोष शर्मा,पंडित प्रदीप शर्मा ,पंडित कमल किशोर शर्मा पंडित नरेंद्र शर्मा एवं पंडित सुजय पाराशर , पंडित विवेक व्यास, मनोज शर्मा, राजेश तिवारी, कमल याज्ञवल्क्य, सुनील भारद्वाज, रामविलास शर्मा तथा रघुनंदन शर्मा आदि विप्रों ने मिट्टी से बने करूणा सागर भगवान भोलेनाथ, नंदी और गणों की पूजा करते हुए विल्वपत्र पुष्प आदि से भव्य श्रृंगार किया. वेद मंत्रोच्चार के साथ रूद्राष्टाध्यायी, शिव महिम्न: स्त्रोत और नम: शिवाय के जाप के साथ करीब पांच घंटे तक सभी भक्त शिव उपासना में लीन रहे.

भोले को लगाया भांग का भोग

संस्कृत पाठशाला जामगढ़ में महा रूद्राभिषेक के दौरान करूणा सागर भगवान भोलेनाथ को पत्थर के सिल पर घंटों तक घोंटी हुई भांग और बादाम पिस्ता से बनी ठंडाई का भोग भी लगाया गया. उल्लेखनीय है कि कर्मकांड भास्कर गुरूजी चित्रकूट वालों के साधना धाम संस्कृत पाठशाला में पूज्य गुरूजी चित्रकूट वालों की परंपरा अनुसार विश्व के कल्याण की कामना के साथ वैदिक विधान से मिट्टी से निर्मित भगवान शिव जी का महा रूद्राभिषेक किये जाने की परंपरा है.

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