– शिवपुरी निवासी अर्थ शास्त्री दुर्गेश गौड़ की कलम से
-अमेरिका, दुनिया के सबसे बड़े ग्राहक का मंदी में जाने का मतलब कोरोना के बाद फिर दुनियां पर मंडी का गहराता खतरा
रंजीत गुप्ता शिवपुरी
शिवपुरी के युवा अर्थशास्त्री दुर्गेश गौड़ का कहना है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में ये जुमला आम है कि अगर अमेरिका को छींक आती है तो सारे विश्व को सर्दी लग जाती है। पर इस बार तो दो कदम आगे जाकर अमेरिका ने दुनिया को टैरिफ नाम के वायरल फीवर से ग्रसित कर दिया है। अमेरिका को पुन: नंबर 1 बनाने वाली नीति के चलते दोबारा चुने गए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका के आयात पर 10 प्रतिशत बुनियादी शुल्क व देश विशेष पर लागू अतिरिक्त जवाबी शुल्क लगाया गया है। ट्रंप व उनसे जुड़े नीति निर्माताओं का मानना है कि अमेरिका के बड़े हुए व्यापार घाटे, रोजगार, डॉलर की कीमत, आंतरिक घाटे, बाहरी निर्भरता, पूंजी के बहिर्गमन आदि समस्याओं का इलाज बड़े हुए आयात पर टैरिफ लगाकर किया जा सकता है। यद्धपि वैश्विक अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति व मुख्य धारा से जुड़े अर्थशास्त्री इस नीति से असहमत नजर आते हैं। जहां तक अमेरिका के बाहरी घाटे का सवाल है, यह वस्तुओं के मामले में घाटे में है तो सर्विसेज के मामले में लाभ में, परंतु कुल योग में स्थिति घाटे की ही है ।
अमेरिका में विनिर्माण के लिए श्रमिक लगत पूर्वी एशियाई, भारत, बांग्लादेश आदि देशों की अपेक्षा 12 से 15 गुणी है। जो स्वयं में ही अमेरिका को श्रम आधारित विनिर्माण में असंगत बनाता है । वहीं डॉलर जो कि वैश्विक अर्थव्यवस्था की व्हीकल करेंसी है, की कीमत कई बाहरी कारकों से नियमित होती है, जिसमें अमेरिकी चालू खाता घटा काफी गौण है । महंगाई और आंतरिक अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर टैरिफ की बढ़ोत्तरी कम से कम शुरुआत में वस्तुओं को महंगा बनाएगी। जो अर्थशास्त्र के बेसिक सिद्धांत मांग के नियम के हिसाब से घटे हुए उपभोग से साथ अमेरिका की आर्थिक विकास दर को भी कम करेगा व निरंतर घाटे के बजट व शटडाउन जैसे माहौल में टैक्स कलेक्शन पर भी विपरीत असर डालेगा । अमेरिका की विकास दर अपने पूर्व अनुमान 1.5त्न से नीचे गिरने की आशंका व्यक्त की जाने लगी है । अमेरिका, दुनिया के सबसे बड़े ग्राहक का मंदी में जाने का मतलब कोरोना के बाद फिर दुनियां पर मंडी का गहराता खतरा। कुछ भविष्यवक्ता अर्थशास्त्री तो इस घटना को 1930 वाले , स्मूट हाले टैरिफ एक्ट से जोड़ते हैं, जिसने दुनियां को पहले महामंदी फिर महायुद्ध में धकेलने में भूमिका निभाई थी।
बहरहाल भारत पर अमेरिका ने 27 प्रतिशत जवाबी शुल्क लागू किया है। व भारत को सतर्कता सूची वाले देशों में शुमार किया है। राहत के तौर पर भारत के फार्मा एवं पेट्रोलियम क्षेत्र को टैरिफ से छूट दी गई है जो भारतीय निर्यात के लिए राहत की खबर है। इसके साथ ही विश्व के निर्यात इंजिन चीन पर कुल 54 प्रतिशत, वियतनाम पर 46 प्रतिशत, बांग्लादेश 37 प्रतिशत, इंडोनेशिया 32 प्रतिशत, ताइवान 32 प्रतिशत, कंबोडिया 49 प्रतिशत शुल्क लगाया है। भारत पर लगाए गए 27 प्रतिशत शुल्क की अपेक्षा इन देशों पर अधिक शुल्क भारत को प्रतियोगी लाभ उपलब्ध करता है। ट्रंप के वर्तमान तेवर व अमेरिका में उनकी स्वीकार्यता देखकर लगता नहीं कि जल्दी इस नीति में कुछ फेरबदल होने वाला है। भारत को भी इस डायनेमिक को एक मौके के समान लेना चाहिए व बदले में शुल्क लगाने की अपेक्षा अमेरिका से द्विपक्षीय व्यापार समझौते में मौका तलाशना चाहिए। भारत के बड़े मैन्युफैक्चरिंग कॉम्पिटिटर्स चीन, वियतनाम, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, ताइवान आदि पर अधिक शुल्क से जो प्रतियोगी लाभ हैं, उन्हें पी एल आई इनसेंटिव्स द्वारा घरेलू क्षमता विकास में सुनिश्चित करना चाहिए। वर्तमान में बड़ी विदेशी कंपनियां चीन प्लस वन की पॉलिसी पर काम कर रही हैं ।
यह सही मौका है जब भारत प्लस वन में खुद को स्थापित करे। भारत एवं अमेरिकी अर्थव्यवस्था में जो पूरक विशेषताएं हैं जैसे अमेरिका के पास बढ़ी पूंजी तो भारत के पास किफायती उन्नत श्रमिक, अमेरिकी तकनीक तो भारतीय कार्यक्षमता एवं बढ़ा घरेलू बाजार और दोनों की लोकतांत्रिक आस्था आदि भारत को अमेरिका का स्वाभाविक साझेदार बनाते हैं।
अत: यह वैश्विक अर्थव्यवस्था का वह नाजुक दौर है जो नई संभावनाओं की शुरुआत कर सकता है व वैश्विक सप्लाई चेन में भारत को नई भूमिका में स्थापित कर सकता है।