• विदिशा मेडिकल कॉलेज के डॉ. चौकसे का विशिष्ट व्याख्यान
• “फाउंडेशन पाठ्यक्रम में संस्थान एंटी रैगिंग विषय को सम्मिलित करें”
• परिचय प्राप्त करने का विकृत रूप ही रैगिंग है- प्रो. अलकेश चतुर्वेदी
रायसेन। साँची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय में आज “जागरूकता और रैगिंग की रोकथाम” विषय पर विशिष्ट व्याख्यान आयोजित किया गया। विदिशा के अटल बिहारी वाजपेयी शासकीय मेडिकल कॉलेज के फॉरेंसिक साइंस एंड टॉक्सिकोलॉजी विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. विवेक चौकसे ने व्याख्यान दिया। डॉ. चौकसे ने कहा कि मेडिकल के पाठ्यक्रम की ही तरह सभी संस्थानों को अपने फाउंडेशन कोर्स में एंटी रैगिंग जागरूकता विषय को शामिल करना चाहिए।
डॉ. चौकसे ने कहा की जागरूकता ही किसी भी शिक्षण संस्थान में रैगिंग की रोकथाम में सहायक हो सकती है। उन्होंने बताया कि मौखिक रूप से जूनियर छात्र से परिचय प्राप्त करना, लिखित रूप से अपने कार्य अथवा असाइनमेंट सौंपना, गाली देना, मारपीट करना, मानसिक प्रताड़ित करना, मारने के लिए हाथ उठाना, कोई कार्य करवाना, इत्यादि रैगिंग की श्रेणी में आता है। डॉ. चौकसे ने बताया कि संस्थान की दीवार पर छात्र-छात्राओं का नाम लिखना भी रैगिंग की श्रेणी में आता है।
डॉ. चौकसे ने बताया कि 2009 में सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान के बाद यूजीसी और एमसीआई जैसी संस्थानों ने शिक्षण संस्थानों के लिए एंटी रैगिंग कमेटी बनाया जाना अनिवार्य किया है जिसमें शिक्षक, कर्मचारी, छात्र, बाह्य सदस्य हो सकते हैं। संस्थान को अपने परिसर में एंटी रैगिंग कमेटी की जानकारी, उनका मोबाइल नंबर इत्यादि लिख कर प्रदर्शित किया जाना आवश्यक है
यूजीसी के नियमों के अनुसार यदि कोई छात्र अपने जूनियर या सीनियर छात्र से भी रैगिंग करता है तो उसे सस्पेंड, संस्थान से निकाला जाना, आपराधिक मामला दर्ज करवाया जाने की प्रक्रिया भी की जा सकती है। प्रत्येक छात्र को संस्थान में प्रवेश के साथ ही शपथ पत्र भरना होता है कि वो यदि रैगिंग संबंधी गतिविधि में लिप्त पाया जाता है तो उसके विरुद्ध विधि पूर्वक कार्यवाई की जा सकती है, इसमें उसके अभिभावक के भी हस्ताक्षर होते हैं। डॉ. चौकसे ने बताया कि जिस संस्थान में रैगिंग होना साबित होता है यूजीसी उस संस्थान की ग्रांट भी रोक सकता है।
विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. अलकेश चतुर्वेदी ने कहा कि परिचय प्राप्त करने का विकृत स्वरूप ही रैगिंग है। उन्होंने कहा कि भारतीय परंपरा में तो नवागत का स्वागत मिष्ठान या उपहार से किया जाता है और भारतीय संस्कृति में रैगिंग की परंपरा नहीं है।
विश्वविद्यालय के छात्रों ने मुख्य वक्ता डॉ. चौकसे से एंटी रैगिंग संबंधी काफी सवाल भी पूछे। छात्रों को व्याख्यान के प्रारंभ में दो छोटी डॉक्यूमेंट्री भी दिखाई गईं जिससे वो रैगिंग के घृणित पक्ष से अवगत हो सकें।