पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत बलूचिस्तान है. यहां के युवा सड़कों पर हैं. पाकिस्तान उसके अधिकार को कुचलने की कोशिश कर रहा है. पाकिस्तान ने बलूचिस्तान के साहित्यिक संगठन के बजट में भारी कटौती की है. इसको लेकर वहां के युवाओं में जबरदस्त आक्रोश है. बलूच छात्र संगठन (BSO) ने इस पर अफसोस जताया है. बीएसओ के छात्रों और सदस्यों ने बलूच भाषा और साहित्य को बढ़ावा देने में शामिल बलूचिस्तान के साहित्यिक संगठनों में बजटीय कटौती के लिए पाक सरकार और स्थानीय प्रशासन की निंदा की है.
बलोच छात्र संगठन ने आरोप लगाया है कि पाकिस्तान हससे हमारा अधिकार छीनने की कोशिश कर रहा है. द बलूचिस्तान पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, बलोच छात्र संगठन ने इसको लेकर क्वेटा प्रेस क्लब में एक प्रेस वार्ता की. इस दौरान उसने साहित्यिक संगठन के बजट में कटौती को रद्द करने की मांग की. छात्र संगठन ने कहा कि अगर उनकी मांगें पूरी नहीं हुईं तो जबरदस्त विरोध प्रदर्शन होगा. 2024-25 के वित्तीय बजट में उठाए गए इस कदम से कई शैक्षिक संगठन गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं.
बजट में कटौती से बलूचिस्तान को लगा धक्का
बलूचिस्तान अकादमी केच, बलूची अकादमी क्वेटा और इज्जत अकादमी पंजगुर जैसे प्रांत के कई संगठनों को बजट में कटौती से बड़ा धक्का लगा है. बीएसओ के जनरल सेक्रेटरी समद बलूच, बीएसओ के सूचना सचिव शकूर बलूच और अन्य नेताओं ने इस मुद्दे को जबरदस्त तरीके से उठाया है. उन्होंने कहा कि सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करने के लिए मातृभाषाओं का अस्तित्व महत्वपूर्ण है.
साहित्य स्कूलों के बजट में 70 से 90 प्रतिशत की कटौती
बीएसओ के महासचिव ने बताया कि जापान, ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड जैसे अग्रणी देश अपनी मातृभाषा को अधिक प्राथमिकता देते हैं. वे अपने बच्चों को अपनी मूल भाषाओं का इस्तेमाल करके शिक्षित करते हैं लेकिन हमारी संस्कृतियों और भाषाओं को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है. बीएसओ ने यह भी दावा किया कि स्थानीय प्रशासन ने बालोची और ब्राहवी साहित्य स्कूलों के बजट में 70 से 90 प्रतिशत की कटौती की है, जबकि अन्य का बजट पूरी तरह से समाप्त कर दिया गया है.
BSO ने स्थानीय प्रशासन को बताया PAK की ‘कठपुतली’
बीएसओ ने आगे कहा कि उसे अन्य साहित्यिक संगठनों और उनके बजटीय आवंटन से कोई दिकक्त नहीं है, लेकिन बलूची भाषा वाले स्कूलों के बजट में जो कटौती की गई है, उससे भाषाई पक्षपात के अलावा कुछ नहीं है. बीएसओ के नेताओं ने स्थानीय प्रशासन को पाकिस्तान की ‘कठपुतली’ बताया और कहा कि इस तरह की कार्रवाई प्रांत की औपनिवेशिक स्थिति को दर्शाती है.