धीरज जॉनसन की खास रिपोर्ट
दमोह जिले में प्रागैतिहासिक, पुरापाषाण,उत्तर पुरा पाषाण मध्यपाषाण, ताम्राशमयुगीन काल के माने जाने वाले चित्रित शैलाश्रय प्रकाश में आए है वैज्ञानिक सर्वेक्षण के बाद शैलचित्रों का महत्व भी आंका गया।इनमें मानव जीवन की विविध झांकियों का चित्रण मिलता है जिसमें शिकार करने जाते हुए मानव समूह विशेष उल्लेखनीय है इन्हे देखकर तत्कालीन परंपरा , सामाजिक, आर्थिक,धार्मिक रितिरिवाजों की जानकारी भी हासिल होती है। शैल चित्रों का सर्वेक्षण कर इन धरोहरों को प्रकाश में लाने का प्रयास भी किया जाता रहा है। इन शैल चित्रों में मानव आकृतियों के चित्रण के साथ ही नृत्य,आखेट,युद्ध के दृश्य स्पष्ट होते है।
अतीत को जानने की ललक ही दुर्गम भागों की ओर जाने के लिए प्रेरित करती है क्योंकि अधिकांश शैलाश्रय आज भी सुगम्य नहीं है रुचि के फलस्वरूप यह उम्मीद की जा सकती है कि निकट भविष्य में इन आदिमानव के कृतियों तक सुगमता से पहुंचा जा सकेगा जिन्होंने पुरानी परंपराओं को जीवित रखा।चट्टानों पर बनी अधिकाश आकृतियां लाल रंग की होने के कारण ग्रामीण इन्हे रक्त पुतरिया भी कहते है। इन्हे भित्ति चित्र भी कहा जाता है।
भिलौनी ग्राम के पास भी इसी तरह के चित्र चट्टानों पर बने है जिन्हे देखने जाना एक कठिन कार्य है क्योंकि यहां मार्ग नहीं है जंगली जानवरों का भय भी व्याप्त रहता है बड़ी बड़ी चट्टानों के मध्य चित्रों को खोजना भी मुश्किल होता है सोमवार को जब यहां जायजा लिया तो काफी लंबी दूरी पैदल तय करने के बाद नाले के दोनो ओर चट्टानों पर करीब पांच अलग अलग जगह चित्र दिखाई दिए कहीं मानव और जानवरों के अलग अलग चित्र बने थे तो कहीं झुंड में जानवरो को दर्शाया गया था,कुछ अस्पष्ट थे,एक स्थान पर तो यह आकृतियां काफी बड़ी बनी हुई थी पर ऊंचाई होने के कारण वहां पहुंचना नामुमकिन था गर्मी के मौसम में भी यहां नाले में पानी था।
राय बहादुर हीरालाल द्वारा सन 1919 में लिखित दमोह दीपक के अनुसार यहां सरहद पर एक गहरा नाला है चट्टानों पर रंगबिरंगे चित्र बने है कुछ रंग
गेरू सा दिखता है कुछ पुरातत्व वेत्ताओ का कहना है कि यह चित्र उस जमाने के है जब मनुष्य आदिम अवस्था में था।
उबड़ खाबड़ और दुर्गम स्थानों से चट्टानों पर उकेरे चित्रों को दिखाने में मदद करने वाले स्थानीय निवासी भल्लू पटेल ने बताया कि पीढ़ियों से इनके बारे में सुनते आ रहे है गांव के चरवाहों को भी इन चित्रों जानकारी है कि वे पहाड़ों में कहां पर है यहां आना जोखिम भरा काम है क्योंकि रास्ता भी नहीं है,इसलिए कोई यहां नहीं आता है। पर लोगों को प्राचीन काल के मानव सभ्यता की जानकारी होना चाहिए।
न्यूज स्रोत:धीरज जॉनसन