सलामतपुर रायसेन से अदनान खान की रिपोर्ट।
नगर की जामा मस्जिद में गुरुवार रात्रि को 27 दिन की तरावीह पूरी हुई। इस दौरान तरावीह पढ़ाने वाले मदरसतुल ईमान जामा मस्जिद सलामतपुर के तालिबे इल्म हाफिज मोहम्मद नज़र निवासी बाँसखेड़ा को हदिये के रूप में नई मोटरसाइकिल दी गई। तरावीह के बाद जामा मस्जिद के पेशे ईमाम नसीम अहमद ने मुल्क में अमन ओ चेन के लिए दुआ की। दुआ के बाद बस्ती के सभी लोगों को तबर्रुख वितरण किया गया। वहीं पेशे ईमाम नसीम अहमद ने बताया कि माह ए रमज़ान की सत्ताइसवीं रात को ही शबएकद्र यानी परम समाननीया रात कहा जाता है। यह अल्लाह की खास मेहरबानी की रात है। इसीलिए अमूमन इसे ही ‘शबएकद्र’ कहा जाता है। क्योंकि इसे परम पवित्रता का दर्जा प्राप्त है। छब्बीसवां रोज़ा इसीलिए मुकद्दस पवित्र कहा जाता है क्योंकि इस रोज़े के दिन के बाद इफ़तार के बाद सत्ताइसवीं रात शुरू हो जाती है। जिसे शबएकद्र कहा जाता है। यह रात शबएकद्र इबादत के लिहाज से ऊंचा मुकाम रखती है। सवाल उठता है कि शबएकद्र क्या है? जवाब यह है कि शब का मतलब है रात। कद्र का मतलब है समान। इस तरह शबएकद्र के मायने हुए समान की रात। रमज़ान माह के आखिरी अशरे यानी निजात मुक्ति/छुटकारा के अशरे में आने वाली शबएकद्र दरअसल समान की रात है। अब दूसरा सवाल यह है कि इस शबएकद्र की ऐसी क्या खासियत है कि जो इसे इतनी अहमियत दी गई है? इसका जवाब उन्होंने यह बताया है कि जैसे नदियों में कोई नदी बहुत खास होती है। पर्वतों में कोई पर्वत बहुत खास होता है। दरख्तों में कोई दरख़्त बहुत खास होता है । परिंदों में कोई परिंदा और दिनों में कोई दिन बहुत खास होता है। वैसे ही रातों में कोई रात बहुत खास होती है। वो है शबएकद्र इसीलिए ये खास है। क्योंकि इसी रात को पवित्र कुरआन का नुजूल हुआ था। सूरहकद्र में जिक्र है यानी अल्लाह का इशारा है कि यकीनन हमने इसे कुरआन को शबएकद्र में नाज़िल किया। शबएकद्र हजार महीनों से बेहतर है। शबएकद्र में इबादत यानी अल्लाह की इनायत होना है।
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